प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकारों के पास नहीं खाका

Air Pollution

जब दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है, तब सर्वोच्च न्यायालय की नाराजगी स्वाभाविक ही नहीं, आवश्यक भी है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने यहां तक कह दिया कि ‘हमें लगता है कि कुछ नहीं हो रहा है और प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। केवल समय बर्बाद किया जा रहा है।’ सख्त कार्रवाई की चेतावनी देते हुए अदालत ने केंद्र, दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों को औद्योगिक व वाहनों से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है। महज 24 घंटे के भीतर कार्रवाई करके दिखाने की चेतावनी की गंभीरता समझने की जरूरत है। यहां प्रदूषण लगातार ऐसे बना हुआ है कि बहुत सारे लोगों को सांस लेने में परेशानी हो रही है। शहरों में न धूप निकल रही है और न हवा साफ है। साल-दर-साल बढ़ते जा रहे प्रदूषण का कोई ठोस इलाज सरकार के पास नहीं है।

पराली जलाने की घटनाएं इस साल पहले की तुलना में ज्यादा हुई हैं। ऐसा लगता है कि सरकारों ने पराली जलाने की समस्या के सामने घुटने टेक दिए हैं। पंजाब में सामने चुनाव हैं। इस हालात में सरकार किसानों पर कड़े कदम नहीं उठा सकती। कोई भी सरकार किसानों को नाराज कर जोखिम नहीं लेना चाहती है। अफसोस, सरकार की नीतियां ऐसी हैं कि लोग ज्यादा से ज्यादा वाहन खरीद रहे हैं। दिल्ली में कभी सड़कों पर वाहनों की संख्या को कम करने के लिए मेट्रो रेल चलाई गई थी, सीएनजी जैसे इंतजाम किए गए थे, लेकिन वाहनों और प्रदूषण की समस्या समय के साथ बढ़ती चली जा रही है। प्रदूषण घटाने की बड़ी-बड़ी कोशिशें नाकाम हो रही हैं। क्या सरकारों के दावे कागजी ही हैं? क्या सरकारों के पास ऐसे उपाय हैं, जिनसे तत्काल राहत मिले? क्या 24 घंटे में दिल्ली में प्रदूषण को कम किया जा सकता है? दिल्ली दुनिया के 10 प्रदूषित शहरों में सबसे अधिक प्रदूषित है।

प्रदूषण की लड़ाई को राजनीतिक रंग दे दिया गया है। दिल्ली में यमुना की गंदगी, पराली और वायु प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे भी राजनीति के शिकार हैं जिसकी वजह से कोई ठोस नीति नहीं बन पा रही है। केंद्र और न ही राज्य सरकारों के पास प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कोई खाका नहीं है। दिल्ली के हालात इसी तरह बने रहे तो स्थिति और भी भयानक होगी। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सख्त फैसले लेने होंगे। तभी इसका समाधान निकलेगा। हमें नये विकल्प की तलाश करनी होगी। वाहनों में डीजल पेट्रोल की खपत कम करनी होगी। डीजल-पेट्रोल का वैकल्पिक उपाय निकालना होगा जिसकी वजह से कार्बन उत्सर्जन कम होगा। कागजी लीपापोती नहीं, जमीनी कार्रवाई से ही राहत मिलेगी।

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