उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध का जिम्मेदार कौन?

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जब-जब अपराध बढ़ता है, तब-तब अंगुलियां पुलिस पर उठती है। सच में अगर देखा जाय, तो पुलिस अपनी आदत और पूर्व से चली आ रही परिपाटियों की वजह से बदनाम होती जा रही है। जो भी हो, पुलिस महकमा कभी अपनी छवि नहीं बदल पाएगा, क्योंकि कुछ दाग ऐसे होते हैं जो अच्छे लगते हैं।

सामाजिक समरसता, शांति, कानूनराज कायम करने अपराध व अपराधियों पर अंकुश लगाकर नागरिकों को सुरक्षा का अहसास कराने में पुलिस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पुलिस की कार्यशैली का सीधा प्रभाव सरकार की छवि पर पड़ता है। चुनाव के समय पुलिस की कार्यशैली ही चुनावी मुद्दा बनती है। अगर पुलिस न्यायप्रिय अपराध नाशक होती है तो रामराज्य की कल्पना साकार होने लगती है। पुलिस जब राग द्वेष से ग्रस्त होकर स्वार्थ में कार्य करती है तो खाकी वर्दी दागदार होने लगती है।

चुनाव के बाद हुए सत्ता परिवर्तन के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि हर स्तर पर बदलाव परिलक्षित होगा। बदलाव तो हर स्तर पर दिखाई देने लगा लेकिन पुलिस में कोई खास बदलाव नजर नहीं आ रहा है। योगी सरकार का असर हर तरफ दिख रहा है लेकिन अपराधों में कमी नहीं आ पा रही है जो चिंता का विषय है। जनवरी से अबतक जो आंकड़े सामने आये हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि हमारी पुलिस अपराधों पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है।

अगर आँकड़ों पर नजर डाली जाय तो जनवरी में डकैती की 16 घटनाएँ हुयी थीं, किन्तु मार्च में यह बढ़कर 23 हो गयी जबकि अप्रैल में छलाँग मारकर 33 हो गयी है। इसी तरह जनवरी में लूट की 249 तो मार्च में बढ़कर 421 हो गयी तथा अप्रैल में 412 हो गयी है। जनवरी में हत्या की 286 घटनाएँ हुई थी, लेकिन मार्च इनकी संख्या बढ़कर 396 हो गयी। अप्रैल में हत्या की घटनाएँ बढ़कर 399 हो गयी।

संगीन अपराधों की श्रेणी में आने वाले दुराचार की घटनाओं पर अगर नजर दौड़ाई जाय तो जनवरी में 240 घटनाएँ हुई थी, जबकि मार्च में इनकी संख्या बढ़कर 318 हो गयी और अप्रैल में संख्या छलाँग लगाकर 396 पहुँच गयी है। पुलिस की कार्यशैली में अन्य विभागों की अपेक्षा सुधार नजर नहीं आ रहा है, जबकि पुलिस को भी दूसरे विभागों की तरह योगी के रंग में रंग जाना चाहिए था।

योगी जी के शपथ लेने के बाद चलाये गये पहले एन्टी रोमियो अभियान की आड़ में जो तमाशा पुलिस ने शुरू किया था, उससे रोमियो का कम, भले लोगों का पार्को व अन्य सार्वजनिक जगहों पर बैठना जरूर दूभर हो गया था। कुशल तो यह था कि योगी जी को समय रहते इसका पता चल गया और उन्होंने समय रहते नकेल कस दी।

योगी सरकार के गठन के बाद यह सही है कि अराजकता की घटनाओं में थोड़ी वृद्धि हुई है, जिन पर योगी जी सख्त नाराजगी व्यक्त करते हुये कठोर कार्यवाही करने के निर्देश दे चुके हैं। पुलिस प्रशासन में व्यापक फेरबदल भी किया जा रहा है, किन्तु फेरबदल समस्या का निदान नहीं है। सरकार की मंशा के अनुरूप पुलिस को भी अपनी कार्यशैली में बदलाव लाना होगा।

जब भी कोई नयी सरकार आती है, तब समाज विरोधी तत्व सरकार के रंग में रंगकर रंगबाजी या अपराधिक कार्यवाही करने लगते हैं। इसका सीधा असर सरकार पर पड़ता है और सरकार के साथ साथ पार्टी बदनाम होने लगती है और विरोधियों को विरोध करने का अवसर मिल जाता है। पुलिस अगर न्यायप्रिय हो जाय तो समाज की तमाम समस्याओं का निराकरण स्वत: हो जाय क्योंकि पुलिस लोकतांत्रिक प्रणाली के सभी अंगों से जुड़ी होती है और उसका हस्तक्षेप होता है। पुलिस की कार्यशैली पर अगुंली उठाने से पहले यह भी देख लेना उचित होगा कि पुलिस अपने उत्तरदायित्यों का निर्वहन अपेक्षा के अनुरूप क्यों नहीं कर पा रही है? पुलिस रातदिन काम करती है और उसे आराम करने का अवसर तक ठीक से नहीं मिल पाता है। पुलिस का कार्य अगर अपने मूल उद्देश्यों तक सीमित रहे तब तो पुलिस से शांति व्यवस्था अमनचैन भय अपराध व अपराधीमुक्त समाज बनाने की उम्मीद की जा सकती है।ब-जब अपराध बढ़ता है, तब-तब अंगुलियां पुलिस पर उठती है। सच में अगर देखा जाय, तो पुलिस अपनी आदत और पूर्व से चली आ रही परिपाटियों की वजह से बदनाम होती जा रही है। जो भी हो, पुलिस महकमा कभी अपनी छवि नहीं बदल पाएगा, क्योंकि कुछ दाग ऐसे होते हैं जो अच्छे लगते हैं।

सामाजिक समरसता, शांति, कानूनराज कायम करने अपराध व अपराधियों पर अंकुश लगाकर नागरिकों को सुरक्षा का अहसास कराने में पुलिस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पुलिस की कार्यशैली का सीधा प्रभाव सरकार की छवि पर पड़ता है। चुनाव के समय पुलिस की कार्यशैली ही चुनावी मुद्दा बनती है। अगर पुलिस न्यायप्रिय अपराध नाशक होती है तो रामराज्य की कल्पना साकार होने लगती है। पुलिस जब राग द्वेष से ग्रस्त होकर स्वार्थ में कार्य करती है तो खाकी वर्दी दागदार होने लगती है।

चुनाव के बाद हुए सत्ता परिवर्तन के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि हर स्तर पर बदलाव परिलक्षित होगा। बदलाव तो हर स्तर पर दिखाई देने लगा लेकिन पुलिस में कोई खास बदलाव नजर नहीं आ रहा है। योगी सरकार का असर हर तरफ दिख रहा है लेकिन अपराधों में कमी नहीं आ पा रही है जो चिंता का विषय है। जनवरी से अबतक जो आंकड़े सामने आये हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि हमारी पुलिस अपराधों पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है।

अगर आँकड़ों पर नजर डाली जाय तो जनवरी में डकैती की 16 घटनाएँ हुयी थीं, किन्तु मार्च में यह बढ़कर 23 हो गयी जबकि अप्रैल में छलाँग मारकर 33 हो गयी है। इसी तरह जनवरी में लूट की 249 तो मार्च में बढ़कर 421 हो गयी तथा अप्रैल में 412 हो गयी है। जनवरी में हत्या की 286 घटनाएँ हुई थी, लेकिन मार्च इनकी संख्या बढ़कर 396 हो गयी। अप्रैल में हत्या की घटनाएँ बढ़कर 399 हो गयी।

संगीन अपराधों की श्रेणी में आने वाले दुराचार की घटनाओं पर अगर नजर दौड़ाई जाय तो जनवरी में 240 घटनाएँ हुई थी, जबकि मार्च में इनकी संख्या बढ़कर 318 हो गयी और अप्रैल में संख्या छलाँग लगाकर 396 पहुँच गयी है। पुलिस की कार्यशैली में अन्य विभागों की अपेक्षा सुधार नजर नहीं आ रहा है, जबकि पुलिस को भी दूसरे विभागों की तरह योगी के रंग में रंग जाना चाहिए था।

योगी जी के शपथ लेने के बाद चलाये गये पहले एन्टी रोमियो अभियान की आड़ में जो तमाशा पुलिस ने शुरू किया था, उससे रोमियो का कम, भले लोगों का पार्को व अन्य सार्वजनिक जगहों पर बैठना जरूर दूभर हो गया था। कुशल तो यह था कि योगी जी को समय रहते इसका पता चल गया और उन्होंने समय रहते नकेल कस दी। योगी सरकार के गठन के बाद यह सही है कि अराजकता की घटनाओं में थोड़ी वृद्धि हुई है, जिन पर योगी जी सख्त नाराजगी व्यक्त करते हुये कठोर कार्यवाही करने के निर्देश दे चुके हैं। पुलिस प्रशासन में व्यापक फेरबदल भी किया जा रहा है, किन्तु फेरबदल समस्या का निदान नहीं है।

सरकार की मंशा के अनुरूप पुलिस को भी अपनी कार्यशैली में बदलाव लाना होगा।
जब भी कोई नयी सरकार आती है, तब समाज विरोधी तत्व सरकार के रंग में रंगकर रंगबाजी या अपराधिक कार्यवाही करने लगते हैं। इसका सीधा असर सरकार पर पड़ता है और सरकार के साथ साथ पार्टी बदनाम होने लगती है और विरोधियों को विरोध करने का अवसर मिल जाता है। पुलिस अगर न्यायप्रिय हो जाय तो समाज की तमाम समस्याओं का निराकरण स्वत: हो जाय क्योंकि पुलिस लोकतांत्रिक प्रणाली के सभी अंगों से जुड़ी होती है और उसका हस्तक्षेप होता है।

पुलिस की कार्यशैली पर अगुंली उठाने से पहले यह भी देख लेना उचित होगा कि पुलिस अपने उत्तरदायित्यों का निर्वहन अपेक्षा के अनुरूप क्यों नहीं कर पा रही है? पुलिस रातदिन काम करती है और उसे आराम करने का अवसर तक ठीक से नहीं मिल पाता है। पुलिस का कार्य अगर अपने मूल उद्देश्यों तक सीमित रहे तब तो पुलिस से शांति व्यवस्था अमनचैन भय अपराध व अपराधीमुक्त समाज बनाने की उम्मीद की जा सकती है।ब-जब अपराध बढ़ता है, तब-तब अंगुलियां पुलिस पर उठती है। सच में अगर देखा जाय, तो पुलिस अपनी आदत और पूर्व से चली आ रही परिपाटियों की वजह से बदनाम होती जा रही है। जो भी हो, पुलिस महकमा कभी अपनी छवि नहीं बदल पाएगा, क्योंकि कुछ दाग ऐसे होते हैं जो अच्छे लगते हैं।

सामाजिक समरसता, शांति, कानूनराज कायम करने अपराध व अपराधियों पर अंकुश लगाकर नागरिकों को सुरक्षा का अहसास कराने में पुलिस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। पुलिस की कार्यशैली का सीधा प्रभाव सरकार की छवि पर पड़ता है। चुनाव के समय पुलिस की कार्यशैली ही चुनावी मुद्दा बनती है। अगर पुलिस न्यायप्रिय अपराध नाशक होती है तो रामराज्य की कल्पना साकार होने लगती है। पुलिस जब राग द्वेष से ग्रस्त होकर स्वार्थ में कार्य करती है तो खाकी वर्दी दागदार होने लगती है।

चुनाव के बाद हुए सत्ता परिवर्तन के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि हर स्तर पर बदलाव परिलक्षित होगा। बदलाव तो हर स्तर पर दिखाई देने लगा लेकिन पुलिस में कोई खास बदलाव नजर नहीं आ रहा है। योगी सरकार का असर हर तरफ दिख रहा है लेकिन अपराधों में कमी नहीं आ पा रही है जो चिंता का विषय है। जनवरी से अबतक जो आंकड़े सामने आये हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि हमारी पुलिस अपराधों पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है।

अगर आँकड़ों पर नजर डाली जाय तो जनवरी में डकैती की 16 घटनाएँ हुयी थीं, किन्तु मार्च में यह बढ़कर 23 हो गयी जबकि अप्रैल में छलाँग मारकर 33 हो गयी है। इसी तरह जनवरी में लूट की 249 तो मार्च में बढ़कर 421 हो गयी तथा अप्रैल में 412 हो गयी है। जनवरी में हत्या की 286 घटनाएँ हुई थी, लेकिन मार्च इनकी संख्या बढ़कर 396 हो गयी। अप्रैल में हत्या की घटनाएँ बढ़कर 399 हो गयी।
संगीन अपराधों की श्रेणी में आने वाले दुराचार की घटनाओं पर अगर नजर दौड़ाई जाय तो जनवरी में 240 घटनाएँ हुई थी, जबकि मार्च में इनकी संख्या बढ़कर 318 हो गयी और अप्रैल में संख्या छलाँग लगाकर 396 पहुँच गयी है। पुलिस की कार्यशैली में अन्य विभागों की अपेक्षा सुधार नजर नहीं आ रहा है, जबकि पुलिस को भी दूसरे विभागों की तरह योगी के रंग में रंग जाना चाहिए था।

योगी जी के शपथ लेने के बाद चलाये गये पहले एन्टी रोमियो अभियान की आड़ में जो तमाशा पुलिस ने शुरू किया था, उससे रोमियो का कम, भले लोगों का पार्को व अन्य सार्वजनिक जगहों पर बैठना जरूर दूभर हो गया था। कुशल तो यह था कि योगी जी को समय रहते इसका पता चल गया और उन्होंने समय रहते नकेल कस दी। योगी सरकार के गठन के बाद यह सही है कि अराजकता की घटनाओं में थोड़ी वृद्धि हुई है, जिन पर योगी जी सख्त नाराजगी व्यक्त करते हुये कठोर कार्यवाही करने के निर्देश दे चुके हैं। पुलिस प्रशासन में व्यापक फेरबदल भी किया जा रहा है, किन्तु फेरबदल समस्या का निदान नहीं है। सरकार की मंशा के अनुरूप पुलिस को भी अपनी कार्यशैली में बदलाव लाना होगा।

जब भी कोई नयी सरकार आती है, तब समाज विरोधी तत्व सरकार के रंग में रंगकर रंगबाजी या अपराधिक कार्यवाही करने लगते हैं। इसका सीधा असर सरकार पर पड़ता है और सरकार के साथ साथ पार्टी बदनाम होने लगती है और विरोधियों को विरोध करने का अवसर मिल जाता है। पुलिस अगर न्यायप्रिय हो जाय तो समाज की तमाम समस्याओं का निराकरण स्वत: हो जाय क्योंकि पुलिस लोकतांत्रिक प्रणाली के सभी अंगों से जुड़ी होती है और उसका हस्तक्षेप होता है।

पुलिस की कार्यशैली पर अगुंली उठाने से पहले यह भी देख लेना उचित होगा कि पुलिस अपने उत्तरदायित्यों का निर्वहन अपेक्षा के अनुरूप क्यों नहीं कर पा रही है? पुलिस रातदिन काम करती है और उसे आराम करने का अवसर तक ठीक से नहीं मिल पाता है। पुलिस का कार्य अगर अपने मूल उद्देश्यों तक सीमित रहे तब तो पुलिस से शांति व्यवस्था अमनचैन भय अपराध व अपराधीमुक्त समाज बनाने की उम्मीद की जा सकती है।

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