बच्चों का करें संपूर्ण विकास

इन बातों का रखें विशेष ध्यान

हर अभिभावक चाहता है कि उनका बच्चा हर मायने में उनसे बेहतर हो। पढ़ाई-लिखाई, कमाई से लेकर खेलकूद और सोशल लाइफ हर जगह वे अपने बच्चों को आगे देखना चाहता है। अगर आप भी ऐसे ही माता-पिता में से एक हैं, तो आपको अभी से अपने बच्चे को ट्रेनिंग देनी शुरू कर देना चाहिए। आप बच्चे की परवरिश में सिर्फ पैसा लगाएंगे तो ऐसा नहीं हो पाएगा। आपको इन्वॉल्व होकर उन्हें टाइम भी देनी होगी।

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जब आप बच्चे के साथ टाइम स्पेंड करेंगे तो वे न केवल इमोशनली स्ट्रॉन्ग बनेंगे, बल्कि उनका मानसिक विकास भी तेजी से होगा। शुरूआती सालों में इन्हीं दोनों बातों का सबसे अधिक महत्व होता है। आगे की ज़िंदगी का मजबूत फाउंडेशन तैयार होता है। वे न केवल पढ़ाई-लिखाई के मामले में अच्छा परफॉर्म करते हैं, बल्कि उनकी सोशल लाइफ भी अच्छी होती है। आप यह काम तीन स्टेजेज में कर सकते हैं।

बच्चों को घर पर ही बुनियादी चीजें पढ़ाएं

अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा पढ़ाई-लिखाई में अच्छा हो तो शुरू से ही उसकी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दें। जब वे स्कूल या प्री-स्कूल जाना शुरू न करें, तब से ही उन्हें कुछ बुनियादी चीजों की शिक्षा दें। बच्चों को घर पर पढ़ाने का यह सिलसिला आगे भी बनाए रखें। भले ही आगे चलकर स्कूलों में टीचर्स कितना ही ध्यान क्यों न दें, आप उनसे लैंग्वेजेस और मैथ्स के बुनियादी सवाल-जवाब जरूर करें। अगर किसी चीज को वे ठीक से समझ न पाए हों तो उनका कॉन्सेप्ट क्लीयर करें। जब बच्चों का कॉन्सेप्ट कलीयर होता है, तब उनमें पढ़ाई को लेकर आत्मविश्वास आता है। यही आत्मविश्वास उन्हें आगे भी मदद करता है। साथ ही आपके साथ रहने के चलते बच्चा अधिक खुश रहता है और आत्मविश्वासी बनता है।

आपको क्या करना है?

  • बच्चे के लिए उपलब्ध रहें, चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, उनके लिए समय जरूर निकालें।
  • बच्चों को सही-गलत में फ़र्क करना सिखाएं।
  • बच्चों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करें।
  • बच्चों को अपने विचार और आइडियाज व्यक्त करना सिखाएं।

जब बच्चा प्री-स्कूल जाना शुरू करे तो उनके शिक्षकों के संपर्क में रहें

जब बच्चे प्री-स्कूल यानी प्ले ग्रुप या नर्सरी में जाना शुरू करते हैं तो वे पहली बार घर के अपने जाने-पहचाने कंफर्ट जोन से बाहर निकलते हैं। हर समय उन्हें संभालने और समझाने के लिए अभिभावक साथ नहीं होते। बतौर अभिभावक आप भी पहली बार बच्चे को बाहर भेज रहे होते हैं। कुछ अभिभावक के लिए यह थोड़ा राहत देने वाला वक़्त होता है, क्योंकि जब बच्चे बाहर होते हैं, तब उन्हें अपने लिए थोड़ा अपने लिए टाइम मिल जाता है। उन पर से बच्चे को संभालने का बोझ थोड़ा कम हो जाता है। पर यहीं पर ज्यादातर अभिभावक गलती कर बैठते हैं।

बच्चे को बाहर भेजने का यह मतलब नहीं है कि आपकी ज़िम्मेदारी कम हो गई है। आप को अब भी उसकी पढ़ाई-लिखाई पर उतना ही ध्यान देना होगा। वह क्या सीख रहा है, क्या नहीं आपको पता होना चाहिए। उसे क्या नहीं सीखना चाहिए इस पर भी आपकी नजर पहले जैसी ही होनी चाहिए।

आपको क्या करना है?

  • बच्चे के शिक्षकों के नियमित संपर्क में रहें।
  • बच्चे को दूसरे बच्चों से दोस्ती करने, उनके साथ खेलने-कूदने के लिए प्रेरित करें।
  • यह सुनिश्चित करें कि बच्चे पढ़ाई के अलावा दूसरी गतिविधियों में भी भाग लें।
  • अपने बच्चे से भविष्य के बारे में बात करें। मसलन यह जानने की कोशिश करें कि वह जीवन में क्या बनना चाहता है।
  • जब आपके और बच्चे के दिमाग में यह बात स्पष्ट हो कि उसे क्या बनना है तो उसे उसका लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सही दिशा में बढ़ने में मदद करें।
  • बच्चों को अपनी-पसंद और नापसंद जाहिर करने और उसके अनुसार चुनाव करने की आजादी है। हाँ, आजादी देते समय उन्हें यह जरूर बताएं कि आजादी के साथ-साथ ज़िम्मेदारी भी आती है। उन्हें इसका पालन करना होगा।
  • बच्चों को किसी धर्म, जाति या देश से नफरत करना न सिखाएं।

बतौर अभिभावक आप भी पहली बार बच्चे को बाहर भेज रहे होते हैं। कुछ अभिभावकों के लिए यह थोड़ा राहत देने वाला वक़्त होता है, क्योंकि जब बच्चे बाहर होते हैं, तब उन्हें अपने लिए थोड़ा टाइम मिल जाता है। उन पर से बच्चे को संभालने का बोझ थोड़ा कम हो जाता है। पर यहीं पर ज्यादातर अभिभावक गलती कर बैठते हैं।

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