महंगाई अब मुद्दा ही नहीं रही
चाहे पिछले सालों की तुलना में संसद के कामकाज के आंकड़े अच्छे दिखते हैं लेकिन एक स्वस्थ, तार्किक, मुद्दों पर आधारित बहस लगभग गायब सी हो गई है और उसकी जगह मुद्दाविहिन, अतार्किक बहस ने ले लिया है। राजनीति के सिद्धांत खत्म होते जा रहे हैं। सत्ता हासिल करना ही आज एकमात्र सिद्धांत रह गया है।
खुशी भरने वाला हो हर कर्म
अब सवाल यह है कि विनाश की ओर बढ़ रहे समय में कोई पल उत्सव कैसे हो सकता है?
अत: प्रत्येक जन को सृजन व संरक्षण के लिए संकल्प लेना होगा।
धुंध से दुर्घटनाओं का कहर
नहरों और माइनरों के असंख्य पुल टूटे हुए हैं।
खास करके ग्रामीण क्षेत्र में पुलों की टूटी हुई रैलिंग की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
संयमित भाषा ही उच्च राजनीति का आधार
राजनीति (Politics) और भाषा का गहरा संबंध है। काबिल राजनेता गंभीर से गंभीर बात को भी संयम व संकोच भरे शब्दों में कह देता है लेकिन स्वार्थी और अयोग्य नेता अपनी राजनीति चमकाने व मीडिया की सुर्खियां बटोरने के लिए भाषा का प्रयोग इतनी गैर-जिम्मेदारी से करत...
कर्जमाफी के अलावा कृषि की कोई सुध नहीं
जिस राज्य में विधान सभा चुनाव होते हैं वहां सरकार तय रेट के मुताबिक फसल खरीद लेती है
जबकि रही दूसरे राज्यों में वही फसल कम रेटों पर खरीदी जाती है।
नागरिकता व जनसंख्या रजिस्टर पर भी भ्रम
केंद्र व राज्य सरकारें सत्तापक्ष व विपक्ष ने एक ऐसा माहौल बना दिया है
कि आम व्यक्ति को समझ ही नहीं आ रही कि संविधान की महत्वता का आधार क्या है?
सर्दी में जीवों की भी ली जाए सुध
पारा शून्य से थोड़ा ऊपर | Animal birds
उत्तर भारत में इस सप्ताह से सर्दी ने अपना असली रूप धर लिया है। पारा शून्य से थोड़ा ऊपर ही रह गया है। कड़ाके की ठंड के इस दौर से आदमी जम रहे हैं, लेकिन जीव-जंतुओं (Animal birds) पर क्या गुजर रही है, यह तो भगवान ही ...
उम्मीद है सरकार जल संरक्षण को एक क्रांति का रूप देगी
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्य नदियों के पानी के लिए कानूनी लड़ाई तो लड़ रहे हैं लेकिन इन राज्यों में पानी की बचत को लेकर जागरूकता मुहिम नाम की कोई चीज ही नहीं।
क्यों नहीं लिया जा रहा सबक
महानगरों की सुंदरता की अपेक्षा सुरक्षा कहीं अहम मुद्दा है। मुआवजा देने के बाद मामले के समाधान पर चुप्पी साधने की औपचारिकताओं से अब तौबा हो और भयानक हादसों के होने पर सरकार संवेदनशीलता का प्रमाण दे व अपने कर्तव्यों को निभाए।
क्षेत्रवाद का प्रभाव
ताजा परिणामों से यह स्पष्ट है कि राज्यों के मुद्दों को राष्ट्रीय पार्टियों ने अनदेखा किया है,
जिस कारण लोगों ने एक बार फिर क्षेत्रीय पार्टियों या छोटी पार्टियों में दिलचस्पी दिखाई है।
साम्प्रदायिक राजनीति की बजाय भारतीय पहचान पर हो जोर
अब भाजपा घर-घर जाकर लोगों को समझाएगी कि कानून आखिर है क्या,
लेकिन इस बिल को जब कानून बनाया जा रहा था तब भाजपा घर-घर क्यों नहीं गई?
युवाशक्ति को संभालना होगा
अब अपने ही लूट रहे Youth
कोई वक्त था जब अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह की सेनाओं ने देश में लूटपाट करने के मकसद से हमला किया था, उस वक्त आम ग्रामीण भी अपनी पूंजी व देश बचाने के लिए हमलावार सिपाहियों के साथ भिड़ जाते थे। विदेशी आक्रमण का सामना करने के ल...
गेहूँ की फसल पर सूंडी का हमला
पंजाब में कृषि विभाग की हिदायतों का पालन कर पराली जलाने की बजाय उसे खेत में समेटने की वजह से गेहूँ की फसल पर सूंडी का हमला हो गया है। कुछ क्षेत्रों में किसानों ने फसल नष्ट करने की खबरें भी आ रही हैं। हरियाणा के किसान भी पंजाब के हालत देखकर चिंतित हैं...
प्रदूषण सरकारों के लिए कोई मुद्दा नहीं रहा!
हमारे पास स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग जैसी बहादुर युवती नहीं जो अपने देश के शासकों को भारतीय फिÞजां दूषित होने का ताना मार सके। लोग जहर जैसा पानी पीकर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। नदियां दूषित नाले बनती जा रही हैं। नदियों की संभाल केवल रैलियां व सार्वजनिक संभाओं तक सीमित है।
जालसाजों व ठगी तंत्र से आमजन को बचाने की आवश्यकता
भले ही पुलिस शिकायत मिलने पर मामला तो दर्ज करती है
लेकिन कुछ मामलों को ही सुलझाया जाता है।