भारत को मैन्युफैक्चरिंग में कैसा स्थान चाहिए तय करना जरूरी

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मध्य चीन में स्थित फॉक्सकॉन की फैक्ट्री से भयावह कहानियां सामने आ रही हैं। यह कंपनी एप्पल आईफोन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। मध्य चीन में फिर से कोरोना फैल रहा है। रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि काम करने वाले लोग फैक्ट्री से भाग रहे हैं। कोविड संक्रमण रोकने के नाम पर कड़े नियम लागू किये गये हैं और लोगों को क्वारंटाइन किया जा रहा है, लेकिन कामगारों की शिकायत है कि अकेले रखे गये लोगों को खाने-पीने की वस्तुओं की आपूर्ति कम हो रही है तथा चिकित्सा व्यवस्था भी ठीक नहीं है। इस संयंत्र परिसर में लगभग दो लाख लोग रहते हैं। उन्हें पहले से ही कई परेशानियां थीं, जो अब और बढ़ गयी हैं। भाग रहे कामगारों को वापस बुलाने की कोशिश हो रही है, पर वे बोनस प्रस्तावों को आम तौर पर ठुकरा दे रहे हैं। कथित रूप से परिसर में फिल्माये गये एक वीडियो में दिखाया गया है कि एक कमरे में अलग रह गये कामगारों की मौत हो गयी है, जबकि फॉक्सकॉन का कहना है कि वहां कोई मौत नहीं हुई है।

अनेक मुश्किलों से जूझते कामगारों की ऐसी कई खबरें आयी हैं। वे खबरें भारत के लिए अहम हैं क्योंकि फॉक्सकॉन और कुछ अन्य कंपनियां आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत दिये गये प्रस्तावों से आकर्षित होकर भारत में संयंत्र लगा रही हैं। वेदांता और फॉक्सकॉन का एक संयुक्त उपक्रम गुजरात के अहमदाबाद में स्थापित हो रहा है, जहां एक सेमीकंडक्टर फैब इकाई, एक डिस्प्ले फैब इकाई तथा एक सेमीकंडक्टर एसेंबली व टेस्टिंग इकाई लगायी जायेगी। वेदांता ने कहा है कि इस परियोजना में कुल डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश होगा तथा इससे करीब एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। यह सही है कि भारत को निवेश और रोजगार बढ़ाने के लिए त्वरित कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन यहां यह सवाल भी उठता है कि क्या भारत को भी चीन की तरह वैसी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां स्थापित करनी चाहिए, जहां मामूली वेतन की निम्न स्तर की नौकरियां हों।

ऐसी फैक्ट्रियों में ज्यादातर काम असेंबली का होता है। भले ही चीन में खास तरह की बहुत मैन्युफैक्चरिंग हो रही हो, लेकिन वह देश उच्च स्तर का नवोन्मेषी देश नहीं बन सका है। उसकी छवि एक सीमित सस्ते उत्पादक देश की ही है। कारोबार से होने वाले लाभ का बड़ा हिस्सा चिप डिजाइनर और ब्रांड के पास चला जाता है तथा मूल्य शृंखला का मामूली निचला हिस्सा चीन के हिस्से में आता है। अब चीन में भी निर्माण खर्च में वृद्धि हो रही है और यह भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि वह चीन का सतही संस्करण बन जाए। एक अध्ययन में बताया गया है कि चीन के हिस्से में कम वेतन की नौकरियां आती हैं, जबकि मुनाफा अन्य देशों को चला जाता है। वह मैन्युफैक्चरिंग का वैसा मुकाम नहीं है, जहां भारत पहुंचना पसंद करेगा।

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