प्रेरणास्त्रोत: विचार बदलो

Inspiration change thoughts
एक घने जंगल में किसी ज्ञानी महात्मा का आश्रम था। आश्रम में उनके पांच शिष्य थे। महात्मा प्रतिदिन अपने शिष्यों को ज्ञान की विभिन्न बातें बताया करते थे। ज्ञान की बातें सुनकर पांचों शिष्यों को यह अभिमान हो गया कि वे भी किसी महात्मा से कम नहीं हैं। पांचों शिष्य जब भी गांव शहर में जाते तो कई दुष्ट लोग उन पर तरह-तरह के ताने कसा करते और कई तरह से रिझाया व सताया भी करते।
एक दिन शिष्यों ने महात्मा से कहा, ‘गुरु जी! हम लोग जब भी गांव या शहर में जातें हैं, तो दुष्ट लोग हमें क्यों सताते हैं?’ यह सुनकर महात्मा ने मुस्कराते हुए कहा, ‘मेरे प्रिय बच्चो ! जब पौधा जमीं से निकलता है, तो वह नन्हां पौधा ही कहलाता है, यदि पौधा यह सोचे कि वह एक विशाल वृक्ष है, तो ऐसा सोचना उसकी सरासर मूर्खता है।’ यह जवाब सुनकर शिष्य बोले, ‘गुरु जी, हम समझे नहीं, आखिर आप कह क्या रहे हैं?’ महात्मा बोले, ‘तुम मेरे शिष्य हो, लेकिन तुम्हें इस बात का अभिमान हो गया है कि तुम किसी महात्मा से कम नहीं हो, लेकिन महात्मा बनने के लिए अभी तुम्हें सांसारिक ज्ञान की कई सीढ़ियों का सफर तय करना है। इन सीढ़ियों पर चढ़ते-चढ़ते तुम्हें हितैषियों और अहित करने वाले दुष्टों के भेद का ज्ञान भी मिल जाएगा।
अर्थात किसी द्वारा अच्छा कहने पर प्रसन्न न होंगे और किसी के कष्ट देने पर दुखी भी न होंगे। बाहरी जगत का मोह त्यागकर आंतरिक जगत में विचरण करने वाला व्यक्ति ही एक सच्चा भक्त बन सकता है। यह सुनकर शिष्यों ने अभिमान की धारणा त्याग दी।
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