हँसिये और स्वस्थ रहिए

मानव की स्वभावगत प्रवृत्तियों में से एक बड़ी मोहक प्रवृत्ति है हास्य विनोद की। मनुष्य के अतिरिक्त सभी जानवर खाना एकत्र कर सकते हैं, प्यार जता सकते हैं, परन्तु हंस नहीं सकते। यह वरदान तो सिर्फ मनुष्यों को ही मिला है।
‘हँसी क्या है’ इसकी परिभाषा सर्वप्रथम अंग्रेज फिलासफर थामस हाब्स ने दी। अचानक प्रसन्न होने से जो भाव उत्पन्न हो, वही हँसी है। प्रसिद्ध जापानी कवि नागूची ने भगवान से वरदान मांगा था कि जब जीवन के किनारे की हरियाली सूख गई हो, सूर्य ग्रहण ग्रस्त हो गया हो, मेरे मित्र मुझे कांटों में अकेला छोड़ कर कतरा गये हों व आकाश का सारा क्रोध मेरे भाग्य पर बरस रहा हो तो हे भगवान! मुझ पर इतनी कृपा करना कि मेरे होंठों पर हँसी की उजली लकीर खिंच जाये।
कई लोग 50-60 के होने पर भी 30-35 के लगते हैं, क्योंकि उनका चिन्ता से क्या वास्ता? हँसते रहो और तरूण बने रहो। हँसना निश्चय ही चिन्ता व मानसिक तनाव को कम कर देता है। बहुत से वक्ता अपने भाषण में हास्य विनोद का पुट रखते हैं ताकि श्रोता देर तक सुनने के पश्चात भी न उकताये। राहुल सांकृत्यायन ऐसे ही वक्ता थे। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी श्रोताओं को हँसा-हँसा लोट-पोट कर देने हेतु विख्यात थे। यहां तक कि श्रोता उनका भाषण रिकार्ड करके रखते थे। हँसने से मस्तिष्क की कार्य क्षमता बढ़ जाती है। गांधीजी ने तो यहां तक कह दिया था, ‘मुझ में हास्य का भाव न होता तो मैंने बहुत पहले ही आत्महत्या कर ली होती।’
बीरबल के हास्य विनोद से सरोबार चुटकुलों ने अकबर के हृदय को किस प्रकार जीत लिया था, यह तो सब जानते ही हैं। एक हंसमुख डॉक्टर को देखकर आधी बीमारी तुरन्त भाग जाती है। साक्षात्कार में भी वह व्यक्ति आसानी से चुन लिया जाता है, जो हँसमुख स्वभाव का हो।
एक विनोदप्रिय नेता के पीछे अनुगामियों की कतार जुट जाती है। यदि सद् व्यवहार के हाथ हास्य विनोद का मेल हो जाये तो मानों सोने पे सुहागा हो जाएगा। सचमुच हँसी दिमाग के बोझ को समाप्त कर देती है। सफर में एक चुटकुला श्रोता को हँसा सकता है और सुनाने वाले को परिचित बना सकता है, हँसने का शरीर पर तुरन्त प्रभाव पड़ता है।
फ्रेंच फिलासकर शेफर्ट की यह उक्ति सदैव याद रखनी चाहिए, ‘मैं उसे जिंदगी का सबसे व्यर्थ दिन मानता हूँ, जिस दिन मुझे हंसना याद न रहा हो।’
मनुष्य हास्य विनोद की अचूक औषधि से कड़वा पत्थर भी पचा सकता है। ‘हास्य विनोद’ से सफल जीवन के अधिकारी बनें और अन्य व्यक्तियों के मन को आह्लादित करते रहें।

-धीरज लोढ़ा

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