राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस : बस जिन्दगी देश के नाम

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फ्रट लाईन वॉरियर्स के रूप में काम कर रहे विश्व भर के डॉक्टरों को ‘सच कहूँ’ का सेल्यूट (National Doctors Day 2021)

हर साल एक जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। जिंदगी में डॉक्टर का कितना महत्व है, ये हम इस कोरोना काल में अच्छी तरह से समझ चुके हंै। डॉक्टर इंसान के रूप में भगवान के समान होता है, जो इंसान को उसके मर्ज से उबारता है। पाठकों को बता दें कि भारत में एक जुलाई को विधानचंद्र रॉय के जन्म दिन के रूप में डॉक्टर्स-डे मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने 1991 में राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाने की शुरूआत की थी। देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। उनका जन्म दिवस और पुण्यतिथि दोनों इसी तारीख को पड़ती है। इस दिन डॉक्टरों के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है। हमारे जीवन में डॉक्टरों द्वारा दिए गए योगदान को सराहा जाता है। राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस आज ‘सच कहूँ’ भी फं्रट लाईन वॉरियर्स के रूप में काम कर रहे विश्व भर के डॉक्टरों को सेल्यूट करता है। जिन्होंने अपने परिवार व अपनी जिन्दगी की परवाह किए बिना देश को कोरोना से बचाया।

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अंतिम सांस तक रोगियों की सेवा ही इनके जीवन का लक्ष्य

  • चिकित्सा समाज को गौरवान्वित कर रहे हैं डॉ. गौरव इन्सां

सच कहूँ/सुनील वर्मा सरसा। आज भी मानव जीवन को सुरक्षित बनाने के एकमात्र ध्येय के साथ चिकित्सा समाज अपनी सेवाओं में तल्लीन है। नित्य नई बीमारियों से रूबरू होकर उनका शमन करने वाले चिकित्सा समाज कोरोना संक्रमण जैसी वैश्विक बीमारी से लड़ते हुए फ्रंटलाइन वॉरियर्स के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जो सबसे बड़ी मानव सेवा मानी जा रही है। राष्टÑीय डॉक्टर्स-डे पर आज समूचा देश ईश्वर का दूसरा स्वरूप समझे जाने वाले इन चिकित्सकों के प्रति कोटि-कोटि आभार प्रकट कर रहा है। जिन्होंने कोरोना संकट के समय में अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अधिकांश जिंदगियों को मौत के मुंह से लौटाया है। चिकित्सक समाज में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले एक ऐसे ही चिकित्सक शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल के सीएमओ डॉ. गौरव अग्रवाल इन्सां से सच कहूँ अपने पाठकों से रूबरू करवा रहा है। जो न केवल अन्य चिकित्सकों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए भी अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

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धन संबंधी मोह को रखा हाशिए पर

डॉ. गौरव अग्रवाल वर्ष 2012 से शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल में जनरल फिजिशियन के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। फिलहाल वे 6 अपै्रल 2015 से शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल में बतौर सीएमओ पद की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। सुविधाओं को हाशिए पर रख मानव सेवा को अपने जीवन का प्राथमिक लक्ष्य समझकर सेवा करने वाले डॉ. गौरव अग्रवाल को यह मर्म पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के सानिध्य से मिला। डॉ. गौरव कहते हैं कि बड़े शहरों में हर जगह चिकित्सक और अस्पताल मिल जाएंगे। लेकिन ग्रामीण आंचल में डॉक्टरों की कमी रहती है। इस लिए वह पूज्य गुरु जी की पावन शिक्षाओं पर चलते हुए बड़े शहरों के अस्पतालों से यहां आये।

पैकेज को छोड़कर सरसा में सेवाएं देनी शुरू की। 

डॉ. गौरव शिक्षित परिवार का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे चार बहन भाई हैं। उनके पिता रामकृष्ण भारतीय रिर्जव बैंक में थे, जिनका दो साल पूर्व देहांत हो गया है। माता निर्मला अग्रवाल हाउस वाइफ है। इनके भाई डॉ. राजीव अग्रवाल बैंगलोर में एमडी बाल रोग विशेषज्ञ हैं जबकि दूसरे भाई संजीव अग्रवाल शिक्षाविद् हैं। वहीं बहन गिरिजा पटीर बैंकिंग सेक्टर में सेवारत हैं। उनकी धर्मपत्नी संदीप कौर शिक्षिका है। अपने जीवन में आध्यात्मिकता, सरलता, विनयशीलता, सौम्यता, मूल्य, आदर्श, संहिताओं का आदर, माधुर्यता आदि अनेक गुणों को समेटे डॉ. गौरव कहते हैं कि इन गुणों को धारण करने के लिए पूज्य गुरु जी की सद् प्रेरणाएं आधार बनी हैं। यही कारण है कि वे साढ़े 3 लाख प्रति महीने का पैकेज छोड़कर डेरा सच्चा सौदा के शाह सतनाम जी स्पेशलिटी अस्पताल में मरीजों की सेवा कर रहे हैं।

चिकित्सक समाज ने किया अहर्निशं कार्य

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गौरव अग्रवाल कोरोना संक्रमण के अपने अनुभव सांझा करते हुए कहते हैं कि संक्रमण की पहली वेव के मुकाबले दूसरी वेव कहीं अधिक खतरनाक थी। इस कठोर समय में भी सभी चिकित्सकों एवं नर्सिंग स्टॉफ ने इसे नियंत्रण में करने में अहर्निशं कार्य किया और अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा सुश्रुषा की। डॉ. गौरव अग्रवाल कहते हैं कि पहली वेव में तो वह खुद कोरोना संक्रमण के शिकार हो गए थे, लेकिन दूसरी वेव में पूज्य गुरु जी द्वारा बताया गया इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने वाला काढ़ा व भांप के सेवन से वे पूरी तरह सुरक्षित रहे। हालांकि इस दौरान उन्होंने वैक्सीन भी लगवा ली। डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि बतौर चिकित्सक उनकी जीवन की प्राथमिकता अंतिम सांस तक रोगियों को नया जीवन देना है और इसके लिए वे पूरी तरह तत्पर हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. अपनी जिन्दगी जीने के लिए नहीं जीता बल्कि दूसरों को जिन्दगी देने के लिए जीता है।

15 दिन में तैयार होगा आॅक्सीजन प्लांट

डॉ. गौरव अग्रवाल इन्सां ने बताया कि अगर कोरोना महामारी की तीसरी वेव यानि बच्चों की लहर आती है तो अस्पताल प्रशासन इसकी भी तैयारियां शुरू कर दी है। अस्पताल में आॅक्सीजन प्लांट लगाया जा रहा है। ताकि भविष्य में आॅक्सीजन की किल्लत का सामना न करना पड़े। उन्होंने बताया कि आॅक्सीजन प्लांट 15 दिन में बनकर तैयार हो जाएगा। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि प्लांट से रोजाना 100 सिलेंडर भरें जा सकेंगे। इसके अलावा तीसरी वेव को लेकर अन्य तैयारियां भी की जा रही है।

डॉक्टरों के लिए नई ऊर्जा लेकर आया पूज्य गुरु जी का रूहानी संदेश

सच कहूँ/राजू ओढां। कोरोना काल में जब लोगों में खौफ चरम सीमा पर था तब डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा सुनारिया से भेजी गई रूहानी चिट्ठी राहत लेकर आई। चिट्ठी में पूज्य गुरु जी ने इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने के कुछ और टिप्स व काढ़ा इस्तेमाल करने की सलाह दी। ये काढ़ा लोगों के लिए वरदान साबित हुआ। चिकित्सकों के हौंसले को उस समय और गति मिली जब पूज्य गुरु जी ने साध-संगत क ो कोरोना वॉरियर्स का हौंसला बढ़ाने के वचन फरमाए। जिसके बाद साध-संगत ने अस्पतालों में जा-जाकर चिकित्सीय स्टाफ को इम्यूनिटी बढ़ाने वाले फल व काढ़ा भेंट कर उन्हें सराहनीय सेवाओं के लिए सेल्यूट किया। इस कार्य के बाद चिकित्सीय स्टाफ दोगुने उत्साह के साथ कोरोना के साथ लड़ाई में उतर गए। आज राष्टÑीय चिकित्सक दिवस पर जब कुछ चिकित्सकों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू जी ने न केवल उनका हौंसला बढ़ाया अपितुु इम्यूनिटी बढ़ाने का काढ़ा भी भिजवाया। हम इस कार्य के लिए पूज्य गुरु जी के आभारी हैं।

कोरोना काल में चिकित्सीय स्टाफ ने अपनी परवाह किए बगैर लोगों को बचाने में जी-जान लगा दी। इस दौरान जब चिकित्सीय स्टाफ भी कोरोना की चपेट में आने लगा तो हमारा हौंसला खोने सा लगा था। इसी बीच डेरा सच्चा सौदा के फॉलोवर्स ने हमारे बीच आकर न केवल हमारा हौंसला बढ़ाया अपितु हमें इम्यूनिटी बढ़ाने वाले फल व औषधि भी मुहैया करवाई। हम आभारी है गुरू जी के जिन्होंने हमारे बारे में सोचा ही नहीं अपितु हमारा हौंसला भी बढ़ाया।

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-डॉ. गुरविन्द्र सिंह, एमओ (सीएचसी ओढां)

किसी का हौंसला बढ़ाना बहुत बड़ी बात होती है। पूज्य गुरु जी ने सुनारिया से चिट्ठी भेजकर हम चिकित्सकों का न केवल हौंसला बढ़ाया अपितु आमजन को जरूरी टिप्स भी बताए। कोरोना काल में अनेक चिकित्सकों को इसका ग्रास बनना पड़ा। इस विकट परिस्थिति में डेरा सच्चा सौदा के वॉलेंटियर ने हम सभी का हौंसला बढ़ाकर हमें कोरोना से लड़ने के लिए और मजबूत किया। हम इस कार्य के लिए हम पूज्य गुरू जी का आभार व्यक्त करते हैं।

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-डॉ. मुकुल भाटिया।

कोरोना काल में स्थिति काफी विकट हो गई थी। स्टाफ खुद ही चपेट में आना शुरू हो गया था। जिसके चलते कहीं न कहीं हौंसला भी डगमगाने सा लगा था। ऐसे में डेरा सच्चा सौदा के वॉलेंटियर्स ने जब हमारे बीच आकर हमारा हौंसला बढ़ाया तो हमें एक नई उर्जा मिली।सेवादारोंं ने हमें इम्यूनिटी बढ़ाने के फल व औषधि भी मुहैया करवाई। मैं समस्त स्टाफ की ओर से पूज्य गुरू जी व सेवादारों का आभार व्यक्त करता हूंं।

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-डॉ. सुमित जैन (सीएचसी ओढां)।

अस्पताल में लोग जब बुखार से पीड़ित होकर आते थे तो भय होना स्वाभाविक था। क्योंकि कोरोना किसी क ा लिहाज नहीं करता। सेवादारों ने अस्पताल में आकर हमारा हौंसला बढ़ाया तो एक नई उर्जा मिली। इम्यूबूस्ट औषधि लोगों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुई। मैं व मेरा स्टाफ पूज्य गुरू जी के आभारी हैं जिन्होंने कोरोना वॉरियर्स की चिंता की।

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-डॉ. पुष्पेन्द्र ढ़ाका (ओढां)।

कोरोना ठीक होने के तीन महीने बाद लगवाएं टीका

कोरोना काल के संकट में डॉक्टरों व सहयोगी स्टॉफ ने कोरोना योद्धा के रूप में अपनी सेवाएं दी। इस कड़ी में डॉ. अमनदीप अग्रवाल का नाम भी शामिल हैं, जो रविवार को जरूरतमंद मरीजों का मुफ्त इलाज करते हैं। क्षेत्र के लोग डॉ. अमनदीप अग्रवाल के उपचार से संतुष्ट हैं और उन्हेें कोरोना विशेषज्ञ मानते हैं। सच कहूँ के संगरूर से प्रतिनिधि नरेश कुमार ने डॉ. अमनदीप अग्रवाल की विशेष बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।

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प्रश्न. अस्पताल में अक्सर कोरोना के मरीज किस शिकायत के साथ जांच के लिए आते हैं?

उत्तर: रोगी आमतौर पर बुखार, खांसी, गले में खराश, बुखार, पेट खराब, सिरदर्द के लक्षण लाते हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो केवल कमजोरी और शरीर में दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल आते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें खांसी, जुकाम था 4-5 दिन पहले बुखार या पेट खराब हो गया था जो ठीक हो गया था लेकिन वह कमजोरी छोड़ गया या कभी-कभी बुखार या सिरदर्द या दम घुटने लगता है।

प्रश्न. कई मरीज जो कोरोना से ठीक हो चुके हैं, उनमें कुछ शिकायतें 1-2 महीने या उसके बाद भी बनी रहती हैं। इसके क्या कारण हैं?

उत्तर: कोरोनरी हृदय रोग से ठीक होने वाले मरीजों को कोरोनरी हृदय रोग होने की संभावना उतनी ही कम होती है जितनी जल्दी शरीर के विभिन्न हिस्सों में बार-बार सूजन या रक्त के थक्के होते हैं। ये आवर्तक बुखार, थकान या हड्डी के फ्रैक्चर, सांस की तकलीफ के कारण होते हैं। गले में खराश, खांसी, आदि।

प्रश्न. कोरोना बीमारी से ठीक होने के कितने समय बाद कोरोना का टीका लगवाना चाहिए और क्यों?

उत्तर: भारत सरकार के आज तक के दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोरोना बीमारी से ठीक होने के तीन महीने बाद ही कोरोना टीकाकरण किया जाना चाहिए क्योंकि इस दौरान शरीर में रोग से लड़ने के लिए स्वाभाविक रूप से एंटीबॉडी होती है, जो बीमारी को रोकने में अधिक प्रभावी होती है।

प्रश्न: कौन-सा टीका बेहतर है?

उत्तर: एक बहुत ही वरिष्ठ वैक्सीन वैज्ञानिक ने कहा है कि यदि कोई महामारी है, तो सबसे अच्छा टीका जो आपको मिल सकता है, वह है पहला, एक अच्छे टीके का लाभ जिससे प्रतीक्षा करते समय आपके संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाएगी।

प्रश्न. क्या गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं को भी लग सकती है कोरोना की वैक्सीन?

उत्तर: स्तनपान कराने वाली माताओं को भी कोरोना का टीका लग सकता है, लेकिन गर्भवती महिलाओं पर कोई सुरक्षा परीक्षण नहीं किया गया है।

प्रश्न. आम जनता में कोरोना की वैक्सीन को लेकर काफी डर है, भ्रांतियां फैली हुई हैं। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर: कोरोना के टीके सुरक्षित हैं और अक्सर रोग से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली के निर्माण में सफल होते हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो टीकाकरण शुरू होते ही डॉक्टर और कर्मचारी अपने स्वयं के टीकाकरण क्यों करवाते?

डॉ. रविकांत खुद हार गए जिन्दगी की जंग

  • ईलाज के साथ गीत गाकर मरीजों का करते थे मनोरंजन, दुनिया रखेगी याद

सच कहूँ/देवीलाल बारना
कुरुक्षेत्र। कहते हैं कि डॉक्टर भगवान का रूप है। कोरोना काल में मरीजों की सेवा करने वाले भी भगवान से कम नहीं हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों की जान बचाई। कोरोना की इस लड़ाई में कई डॉक्टर रूपी योद्धा अपनी जान को भी गवां गए। ऐसे ही धर्मनगरी में ईलाज के साथ-साथ गानों के जरिए मरीजों का मनोरंजन करने वाले डॉ. रविकांत को दुनिया याद रखेगी। कोरोना काल के दौरान दी गई उनकी सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता। कोरोना के शुरूआती दौर में जब अपने भी अपनों से डरने लगे थे, उस समय में लगातार 9 माह तक डॉ. रविकांत ने कोरोना मरीजों की सेवा की। अपने परिवार से अलग रहकर वे लगातार आईसोलेशन वार्ड में ड्यूटी देकर कोरोना मरीजों का ईलाज करते रहे। डॉ. रविकांत की धर्मपत्नी सरोज ने बताया कि 13 अप्रैल 2021 को उन्हें मालूम पड़ा कि वे कोरोना संक्रमित हो गए हैं। पहले चार दिन घर में ही आईसोलेट रहे।

इसके बाद डॉ. रविकांत अस्पताल में जाकर भर्ती हो गए। इसी दौरान वह स्वयं, दोनों बेटियां भारती व प्रियंका व बेटा अभिनव भी कोरोना संक्रमित हो गए। सरोज बताती हैं कि यह समय बहुत संकट का समय था और कोरोना संक्रमित होते हुए अपनी संभाल की। 1 मई को डॉ. रविकांत के गले में दिक्तत हुई व 3 मई को वे कोरोना से जंग हार गए। सरोज बताती हैं कि एक तरफ जहां पूरा परिवार कोरोना संक्रमित और दूसरी ओर डॉ. रविकांत का चले जाना, ऐसा लग रहा था जैसे परिवार के ऊपर दु:खों का पहाड़ टूट गया हो। लेकिन पूरे परिवार को गर्व भी है कि उन्होंने 9 माह तक अनेकों कोरोना मरीजों की जान बचाई।

जहां भी गए लोग हो गए मुरीद

डॉ. रविकांत अपने स्वभाव के कारण जाने जाते रहे हैं। जहां भी उनकी ड्यूटी लगी वहीं लोग उनके स्वभाव के मुरीद हो गए। बता दें कि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से बीएएमएस की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात 2003 में उनकी आयुष विभाग में नियुक्ति हुई ओर पहली पोस्टिंग फतेहाबाद जिले के गांव लहरियां में हुई। यहां उन्होंने 14 वर्ष तक अपनी सेवाएं दी। 14 साल बाद जब उनकी बदली कुरुक्षेत्र जिले के गांव सारसा में हुई तो लहरियां गांव के लोग उन्हे जाने देने के लिए तैयार नहीं थे। 2017 में वे पिहोवा के गांव सारसा में बतौर एएमओ आ गए और यहां भी उनके स्वभाव के कारण उनको गांव में पूरा मान-सम्मान मिलता रहा।

परिवार से अलग रहकर की मरीजों की सेवा

सच कहूँ से विशेष बातचीत में डॉ. रविकांत की धर्मपत्नी सरोज कहती हैं कि अगस्त 2020 में उनकी डयूटी आईसोलेशन वार्ड में लगा दी गई। डयूटी के बाद उन्होने घर में अलग कमरे में रहने का फैसला लिया और परिवार की सुरक्षा के लिए अलग ही रहे। हालांकि डॉ. रविकांत अस्थमा के मरीज भी थे लेकिन बावजूद इसके वे पूरी लग्न से आईसोलेशन वार्ड में मरीजों का ईलाज करते थे।

मरीजों को सुनाते थे गीत

आईसोलेशन वार्ड में ड्यूटी के दौरान डॉ. रविकांत कहते थे कि मरीजों के लिए खुश रहना बहुत जरूरी है। मरीजों को खुश करने के लिए वे रोजाना दवा बुटी देने व चैकअप करने के उपरांत मरीजों के बीच गाना सुनाते थे। ‘कोरोना से जीत जाएंगे हम’, एक गीत उन्होंने लिखा और अक्सर वे यह गाना गाते रहते थे।

कोरोना काल कम संसाधन, फिर भी चिकित्सकों का हौंसला बुलंद

सच कहूँ/संदीप सिंहमार
हिसार। महामारी से लड़ना भी किसी आम जंग से कम नहीं होता। दो देशों के बीच होने वाली किसी भी लड़ाई में सरहद पर रक्षा करने वाले सैनिक अपनी जान की बाजी लगाकर देश व उसके नागरिकों को बचाने का काम करते हैं तो ठीक उसी तरह वैश्विक महामारी कोविड-19 कोरोनावायरस के दौरान भी चिकित्सकों का कुछ ऐसा ही जज्बा देखने को मिला। इस जंग में भी लड़ाई लड़ने वालों की शहादत हुई है।

कोरोना पीड़ित मरीजों की जान बचाने में सबसे मुख्य भूमिका निभाने वाले चिकित्सकों को जान गंवानी पड़ी। ऐसी स्थिति में और भी चिंतनीय स्थिति हो जाती है जब हमारे पास इस जंग को जीतने के लिए संसाधनों की भी कमी हो। ऐसा होते हुए भी भारत के चिकित्सा जगत के चिकित्सकों ने अपनी अहम जिम्मेदारी का निर्वाहन किया। देश में यदि अस्पतालों व उनमें प्रयोग किए जाने वाले चिकित्सकीय उपकरणों की कमी नहीं होती तो हमारे चिकित्सक तनाव मुक्त होकर कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों को बेहतर उपचार दे सकते थे।

जरूरी उपकरण जुटाए सरकार

अस्पतालों में कोविड-19 मरीजों को बचाने में अह्म भूमिका निभाने वाली आॅक्सीजन की कमी का मामला देश भर में नहीं पूरे विश्व भर में गूंजता रहा। खैर देरी से ही भली आखिर आॅक्सीजन की कमी पूरी हो गई लेकिन वेंटिलेटर की कमी कोविड-19 की पहली लहर में भी थी दूसरी लहर में भी और तीसरी लहर की आशंका के बीच भी वेंटिलेटर के मुद्दे पर राज्य व केंद्र सरकार किसी भी स्तर पर काम करती नजर नहीं आ रही है।

ग्रामीण क्षेत्रों को भी संभालना होगा

अब तक हमने सिर्फ शहरी क्षेत्रों में सुविधाओं की बात की है यदि ग्रामीण क्षेत्रों में उप स्वास्थ्य केंद्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की बात की जाए तो यहां वेंटिलेटर की सुविधा तो दूर की बात मरीजों के लेटने के लिए बेड तक भी उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य विभाग समय पर यहां जरूरी दवाएं भी उपलब्ध नहीं कर पाया, जिसका गुस्सा भी स्वास्थ्य कर्मियों व चिकित्सकों को ही झेलना पड़ा।

डर था, फिर भी मजबूत इरादोें के साथ किया कोरोना का सामना

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सच कहूँ/लाजपतराय
यमुनानगर। कोरोना का दौर ऐसा था जिसने एक बार तो डॉक्टरों को भी सहमने पर मजबूर कर दिया। हालांकि इस खौफ के बीच देश के डॉक्टरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना वायरस से लड़ने और लोगों की जिन्दगियां बचाने में पूरी ताकत लगा दी। आज चिकित्सक दिवस पर पाठकों को रादौर के ऐसे डॉक्टर से रू-ब-रू करवा रहें हैं जिन्होंने कोरोना वॉरियर्स के रूप में अनुकरणीय योगदान दिया। सच कहूँ से विशेष बातचीत में रामा नर्सिंग होम के संचालक व कोरोना योद्धा डॉ. एससी सैनी ने हर सवाल का बेबाकी से जबाव दिया। उन्होंने कोरोना काल में सामने आई समस्याओं को भी हमारे साथ सांझा किया और कई मुद्दों पर सरकार को भी घेरा। तो आइये जानते हैं डॉ. एससी सैनी के विचार।

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प्रश्न: आप कोरोना मरीजों के बीच में रहे, ये कठिन समय कैसा रहा?

उतर: जब परिवार की बात आ जाती है तो हम सभी सतर्क रहते हैं। डर भी लगता है। लेकिन हमने सावधानियां बरती अपनी तरफ से। हम जब भी कोविड सेंटर में रहते थे तो किसी के संपर्क में नहीं आते थे और जब भी हम बाहर निकलते थे तो पीपीई कीट को डिस्पोज करके निकलते थे। हालांकि फिर भी हम अपने परिवार के पास जाने से डरते थे। कई बार तो ज्यादा समय के लिए दूरी बना कर रखनी पड़ती थी। ताकि हमारे परिवार में मौजूद बुजुर्ग, बच्चे इसकी चपेट में न आ जाएं।

प्रश्न: कोविड ट्रीटमेंट के दौरान सबसे बड़ी परेशानी आपने क्या देखी?

उतर: कोविड ट्रीटमेंट के दौरान जो सबसे बड़ी मैंने परेशानी देखी वो ‘डर’ था। मरीज का इलाज तो चल रहा था लेकिन उन्हें मानसिक रूप से ऐसा तैयार किया जाता कि उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। हम उनके साथ हैं। इसके साथ ही उनके तनाव को दूर करने के लिए घर जैसा माहौल देना पड़ता था। इसलिए जिन मरीज मानसिक रूप से ज्यादा स्ट्रोंग रहे हैं वो जल्दी रिकवर हुए हैं।

प्रश्न: सरकार कोरोना महामारी से निपटने में कितनी सफल रही है?

उतर: भले ही सरकार को महामारी आने का पहले पता नहीं होता, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन से मिले संकेत अनुसार सरकार को राजनीति को छोड़कर प्राथमिकता से इसे संभालना चाहिए। अभी खतरा बरकरार है और सरकार को ज्यादा सचेत होने की जरूरत है। सरकार वैक्सीनेशन को हथियार बनाते हुए लोगों को भी ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें। अभी कोरोना महामारी का संक्रमण कम हुआ है लेकिन खत्म नहीं हुआ हैं इसलिए लोगों को भी इसे हलके में नहीं लेना चाहिए।

प्रश्न: सरकार को आप क्या कहना चाहेंगे?

उतर: मैं तो सरकार से ये ही कहना चाहुंगा कि हरियाणा सरकार द्वारा डॉक्टर डिग्री करने वाले बच्चों की दाखिला फीस बढ़ाने का जो फैसला लिया गया है, वो गलत है। अगर वो लागू होता है तो ये होनकार बच्चों के लिए बैकफुट गियर साबित होगा। छात्र डॉक्टर बनने का सपना ही छोड़ देंगे। छात्र तो पहले ही महामारी के दौरान हुई डॉक्टर्स की मौतों को देखकर सहमे हुए हैं। अगर ऐसे में दाखिला फीस की मार पड़ती है तो देश को भावी डॉक्टर कहां से मिलेंगे। कोरोना महामारी से सबक लेते हुए सरकार को चाहिए कि देश में बड़ी संख्या में मेडिकल कॉलेजों की स्थापना करें और मेडिकल शिक्षा को सस्ता करे।

-संकलन व संपादन: विजय शर्मा, डिजाईनिंग: रोहित सैनी

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