ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता

Rural-areas

नए वर्ष में शिक्षा पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए बडेÞ-बडेÞ लक्ष्य निर्धारित करते हए नीतियां बनायी जाती हैं किंतु शिक्षा क्षेत्र में वित्तीय आवंटन में वृद्धि किए बिना विशेषकर अवसंरचना सुविधाएं उपलब्ध कराए बिना विकासशील देशों की तुलना में हमारे देश में स्कूली शिक्षा की स्थिति खराब है। गैर-सरकारी संगठन प्रथम द्वारा प्रकृति एनुअल स्टैटस आॅफ एजुकेशन रिपोर्ट 2020 में पाया गया कि पिछले दो वर्षो मेंं प्राइवेट स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है। कोरोना महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में दूरस्थ शिक्षा तंत्र तक पहुंच के प्रावधान के बारे में इस सर्वेक्षण में पाया गया कि जब स्कूल बंद थे तो ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कों का पंजीकरण 66.4 प्रतिशत और लड़कियों का पंजीकरण 73 प्रतिशत था। वर्ष 2018 और 2020 के बीच प्राइवेट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की ओर लोगों का रूझान, लोगों की वित्तीय स्थिति में गिरावट क्या स्थायी स्कूलों का बंद होना भी हो सकता है। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि महामारी के कारण स्कूलों में पंजीकरण न करने वाले बच्चों की संख्या जो 2018 में 4 प्रतिशत थी 2020 मे बढ़कर 5.5 प्रतिशत हो गयी है।

इसका कारण यह है कि पिछले वर्ष मार्च से स्कूलों के बंद रहने के कारण बच्चे कक्षा 1 में प्रवेश लेने की परवाह नहीं कर रहे हैं। यूनिसेफ द्वारा बच्चों पर कोरोना महामारी के प्रभाव के आकलन में 5773 सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों का सर्वेक्षण किया गया और उसमें पाया गया कि चार में एक परिवार में माता यह आश्वस्त नहीं है कि महामारी के बाद उसका बच्चा स्कूल जाएगा। यह मूल्यांकन सात राज्यों में किया गया। जिन परिवारों में यह सर्वेक्षण किया गया उनमें दिहाडी मजदूर, वेतन भोगी कामगार और बेरोजगार लोग शामिल थे। इस सर्वेक्षण के परिणामों से पता चला कि इन परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब है कुछ सरकारी सेवाओं में सुधार हुआ। इस वर्ष बीच में पढाई छोेड़ने वाले बच्चों की दर एक बड़ी चुनौती है और इसमें वृद्धि हो सकती है। एक अन्य आकडों के अनुसार वर्ष 2018-19 में ड्राप आउट दर कम करने में सफलता मिली थी और प्राथमिक स्तर पर यह 2.72 तथा माध्यमिक स्तर पर 9.74 तक पहुंच गयी थी। किंतु प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर सकल पंजीकरण दर 91.64 और 79.54 प्रतिशत थी। ये आंकडे वर्ष 2017-18 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के 75वें परिवार सर्वेक्षण पर आधारित हैं।

उच्च ड्राप आउट दर वास्तव में एक चुनौती है और यह बढ़ती जा रही है। सभी को शिक्षा उपलब्ध कराने के लक्ष्य को ध्यान में रख्ते हुए नई शिक्षा नीति 2020 में वर्ष 2030 तक पूर्व प्राथमिक विद्यालयों में शत् प्रतिशत पंजीकरण का लक्ष्य रखा गया है और इसे सफल बनने के लिए प्रभावी और पर्याप्त अवसंरचना उपलब्ध करायी जानी चाहिए और इसके लिए एक समुचित रूपरेखा भी बनायी जानी चाहिए। कार्य अवसरों के स्वरूप में बदलाव को देखते हएु शिक्षा में भी बदलाव किया जाना चाहिए। इसलिए विश्वभर में आज शिक्षा को अधिक व्यावहारिक बनाए जाने पर बल दिया जा रहा है। भारत जैसे देश में श्रम शक्ति अधिक है इसलिएं यहां पर ऐसी नीति की आवश्यकता और भी अधिक है। डिजिटल शिक्षण के बारे में बहुत बातें की जा रही हैं। राज्य सरकारों द्वारा संचालित स्कूलों में अधिकतर छात्र जाते हैं। वहां पर डिजिटलीकरण की स्थिति की स्थिति अच्छी नहीं है। केवल 56 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट कनेक्शन है। लॉकडाउन के दौरान आनलाइन या आॅफ लाइन शिक्षण सामग्री की आपूर्ति भी पर्याप्त नहीं रही है। लगभग दो तिहाई ग्रामीण स्कूली छात्रों को कोई भी सामग्री नहीं मिली। आंध्र प्रदेश में लगभग 65 प्रतिशत और राजस्थान में लगभग 40 प्रतिशत छात्रों को पाठ्य पुस्तकें तक नहीं मिली।

खबरों के अनुसार यहां तक कि हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी 10 प्रतिशत से अधिक छात्रों के पास स्मार्ट फोन उपलब्ध नहीं थे और 18 प्रतिशत छात्रों के पास समुचित कनेक्टिवटी नहीं थी। अनेक उपमंडलों और विकास खंडों में स्कूलों और कॉलेजों की आवश्यकता है क्योंकि इन क्षेत्रों में केवल कुछ लोग ही अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेज सकते हंै। जनता की दशाओं को ध्यान में रखे बिना शिक्षा के निजीकरण पर बल देने से उन लोगों की शिक्षा की स्थिति में गिरावट आएगी जो प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने की स्थिति में नहीं हैं। दिल्ली और राज्यों की राजधानी में आलीशान भवनों में बैठे लेगों को जमीनी वास्तविकता का अहसास नहीं है इसीलिए ऐसे निर्णय लिए जाते हैं और उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति का अंदाजा नहीं है। देश में शिक्षा क्षेत्र की उपेक्षा स्पष्टत: दिखायी देती है और इसका नुक्सान गरीब और कमजोर वर्गों के छात्रों को उठाना पड़ता है जिनके पास बेहतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए समुचित सुविधाएां या साधन नहीं है। इस बात का खुलासा अनेक सर्वेक्षणों में किया जा चुका है और इन सर्वेक्षणों में इस बात पर बल दिया गया है कि शिक्षा प्रणाली पर निगरानी रखी जाए और अध्यापकों के प्रशिक्षण पर बल दिया जाए।

साथ ही छात्रों के कौशल विकास को भी प्रमखता दी जाए। इस स्थिति में इस समस्या पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए और विशेषकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के स्कूलों और कालेजों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। केवल राष्ट्रीय नीतियों की घोषणा करने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए जमीनी स्तर पर सुधारात्मक कदम उठाने होंगे तभी जनता को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करायी जा सकती है और इस दिशा में पहला कदम शिक्षा क्षेत्र के लिए पर्याप्त बजट और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराकर उठाया जा सकता है।

-धुर्जति मुखर्जी

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