बेटा, बहुत भयानक कर्म था, सूली से सूल हो गया। यह साध-संगत की सेवा का ही फल है।’’

Param Pita Shah Satnam Singh ji Sachkahoon

यह बात 10 अक्तूबर, 1988 की है। मैं बिजली बोर्ड में लाईनमैन के पद पर नियुक्त था। मुझे मासिक सत्संग पर आश्रम में जाना था परंतु छुट्टी न मिलने के कारण नहीं जा सका। उसी दिन शाम को मैं सांगला गांव में एक हजार वोल्टेज पर काम कर रहा था। अचानक दुर्घटना हुई और बिजली की तार मेरे कंधे को छू गई। कपड़ों में आग लग गई और मेरा शरीर बुरी तरह झुलस गया। मैं दो दिन तक अस्पताल में बेहोश रहा। मेरी हालत गंभीर थी। इस सारी दुर्घटना की जानकारी मेरे रिश्तेदार पुरूषोत्तम लाल के माध्यम से पूजनीय परम पिता जी के पास जा पहुंची।

पूजनीय परम पिता जी ने प्रसाद देते हुए फरमाया, ‘‘यह प्रसाद जंगीर सिंह को जाकर खिला दो।’’ उन्होंने यह प्रसाद लाकर मुझे दिया। मैंने उस प्रसाद को ग्रहण किया और लगभग बीस दिन में मैं बिल्कुल स्वस्थ हो गया, जबकि डॉक्टरों के अनुसार मुझे ठीक होने में लगभग एक वर्ष लगना था। मैं साध-संगत के सहयोग से मासिक सत्संग में पहुंचा तो प्यारे सतगुरू पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने वचन फरमाए, ‘‘बेटा, बहुत भयानक कर्म था, सूली से सूल हो गया। यह साध-संगत की सेवा का ही फल है।’’ इस प्रकार पूजनीय परम पिता जी ने मुझे नई जिंदगी बख्शी।
श्री जंगीर सिंह, लोहाखेड़ा, फतेहाबाद(हरियाणा)

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