हिंसा का ताडंव राजनीतिक विफलता

Raising Violence, political failure
राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ दिल्ली में हिंसा का ताडंव जारी है। लगातार चौथे दिन हुई हिंसा में डेढ़ दर्जन के करीब मौतें हो चुकी हैं। हैरानी की बात यह है कि देश की राजधानी में हमारे पास सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त ही नहीं हैं। पुलिस अधिकारियों का यह बयान बहुत निराशा जनक है कि पुलिस कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण हिंसा नहीं रोकी जा सकी।
वास्तविकता तो यह है कि सरकार को सोमवार को ही कड़े कदम उठाने चाहिए थे। सीएए विरोधी व समर्थकों के मध्य हुई झड़पों में एक व्यक्ति पिस्तौल तानकर खड़ा नजर आ रहा था। इस बात से इंकार करना काफी कठिन है कि यह दंगे अचानक हुए हैं। दंगाईयों का हथियारबंद होकर सड़कों पर उतरना, टायर मार्किट को आग लगाना, कुछ घरों को आग के हवाले करने की कोशिश जैसी घटनाएं पूरी तरह साजिश का हिस्सा नजर आ रही हैं। बल्कि सीएए का विरोध तो लगभग पिछले 75 दिनों से चल रहा था। परंतु टकराव कहीं नहीं हुआ था, एक राजनेता धरनार्थियों को केवल तीन दिन के अंदर हटाने की चेतावनी का बयान देता है और अगले दिन ही हिंसा शुरू हो जाती है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी जायज है कि विवादित बयान के बाद सबंधित नेता के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? राजनीतिक पार्टियों ने अपने बड़बोले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई तो क्या करनी ऐसे नेताओं के बयान की निंदा भी नहीं की, जिसका परिणाम यह है कि हिंसा पैदा करने वाले नेताओं के हौंसले बढ़ते गये। शमर्नाक बात यह है कि दंगे तब हो रहे थे जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दिल्ली में मौजूद थे और वह धार्मिक सद्भावना के लिए भारत की प्रशंसा कर रहे थे।
अब भी जरूरी है कि हालातों को काबू किया ताकि ये दंगे दूसरे राज्यों में ना फैलें। राजनीतिक पार्टियों को अमन व भाईचारे की अपील करने के लिए आगे आना चाहिए, किसी कानून का विरोध जायज है और सुप्रीम कोर्ट भी कानून की पड़ताल करेगी। सुप्रीम कोर्ट विरोध करने के अधिकार को जायज मानती है। शाहीन बाग का धरना खत्म करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थ भेजकर धरना खत्म करने के लिए उचित कदम उठाया था, इसके बावजूद कोई नेता धरने खत्म की चेतावनी दे तो यह लोकतंत्र और शासन प्रबंधों का अपमान है। केन्द्र व दिल्ली सरकार को सख्त उठाते हुए अमन शांति कायम करनी चाहिए। हिंसा संविधान के विरूद्ध है, बेशक ऐसी हिंसा वह किसी कानून के हक में हो या विरोध में। पार्टी कोई भी हो वह न्याय को अपनी बपौती नहीं बना सकती। अमन-चैन व शांतपूर्वक विरोध ही देश की ताकत है।

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