राजस्थान सीमा से सटे आठ गांवों के लोगों के सूखे हलक

खारियां। (सच कहूँ/सुनील कुमार) राजस्थान सीमा से सटे सिरसा जिले के करीब आठ गांव पिछले काफी वर्षों से पीने के पानी को तरस रहे है। आठ गांवों के प्रतिनिधियों ने मम्मड़ ब्रांच व नथोर माइनर में टेल तक पानी पहुंचाने की मांग को लेकर जिला उपायुक्त सिरसा को ज्ञापन सौंपा। इस अवसर पर पीने व खेती के लिए भाखड़ा के पानी के लिए तरसते ग्रामिणों की समस्या से जिला प्रशासन को अवगत करवाते हुए विभिन गावों के प्र्रतिनिधि सुभाष झोरड़, मम्मड़ खेड़ा के निर्वतमान सरपंच बलदेव बैनीवाल, कोठा सैनपाल के निर्वतमान सरपंच दिलराज सिंह, हंसराज झोरड़, बलवंत नम्बरदार, मोहन सिंह सिद्धू, गुरविंद्र भंगू ने बताया कि उनके गांव केहरवाला, मम्मड़ खेड़ा, कालूआना, दोरवाला, मत्तुवाला, सैनपाल, सैनपाल कोठा व नथोर एमएमके ब्रांच की टेल पर पड़ते हैं और यहां का भूमिगत पानी बहुत ज्यदा लवणीय है जिससे ना तो उनकी फसले अच्छी पैदावार देती है और ना ही ग्रामिणों का स्वास्थ्य ठीक रहता है।

जिसके लिए उन्हें केवल पीने व फसलों के लिए केवल नहरी पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। परेशान ग्रामीण पीने के पानी के लिए 1000 रूपए प्रति टैंकर किमत चुकार दूसरे गावों से पानी मंगवाने के लिए मजबूर है। जोकि गरीब परिवारों के लिए बेहद मुश्किल हो रहा है।

फसलें भी हो रही प्रभावित

इसके साथ फसलों के लिए पानी न पहुंचने से गत वर्ष व इस बार भी उनकी फसलें प्रभावित हुई हैं। किसानों को नरमा, ग्वार या अन्य फसलों में मजबूरी में ट्यूबवैल का लवणीय पानी देना पड़ता है। जिससे ना तो फसलों में अच्छी बढवार होती है और ना ही अच्छी फैदावार होती है। परिणामस्वरूप किसानों को महंगे डीजल के खर्च व कम पैदावार से आथिर्Þक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि सिंचाई विभाग द्वारा समय पर अच्छे ढंग से माइनर की सफाई नहीं करवाई जाती है, और सफाई के नाम पर मात्र खानापूर्ति कर दी जाती है। इस समय माइनर में घास व झाड़ियां उगी हुई है।

गुहार लगाने के बाद भी समस्या ज्यों कि त्यों

किसानों की इस समस्या से अवगत करवाते हुए नथोर गांव के सरपंच प्रतिनिधि सुभाष झोरड़ ने कहा कि ग्रामीणों द्वारा संबंधित विभाग व प्रशासन से बार-बार गुहार लगाने के बावजूद भी उनकी समस्या ज्यों कि त्यों बनी हुई है। हर बार चेताने का बावजूद भी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा केवल झूठे आश्वासन दिए जा रहे हैं। इसलिए अगर इस बार इन गावों के ग्रामिणों की इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो मजबूरन उन्हें आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा। जिसके लिए केवल प्रशासन ही जिम्मेवार होगा।

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