‘पूजनीय परम पिता जी की लाठी’, किराये दार ने छोड़ दी शराब

सरसा। यह बात सन् 1985 की है। मैं पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन करने के लिए सरसा आश्रम पहुंचा। उस समय मजलिस के दौरान पूजनीय परम पिता जी स्टेज पर विराजमान थे। मैं जाकर मजलिस में बैठ गया। कुछ देर के बाद पूजनीय परम पिता जी ने मुझसे पूछा, ‘‘तेरी ड्यूटी रामा मंडी में है?’’ मैंने कहा, ‘‘पिता जी, आजकल मेरी ड्यूटी सरदूलगढ़ मार्कफेड में है।’’ उसके बाद पूजनीय परम पिता जी कहने लगे, ‘‘बेटा, तू नामचर्चा में जाता है?’’ इस पर मैंने कहा, पिता जी, मैं नामचर्चा में कभी नहीं गया। उसके बाद फिर फरमाया, ‘‘तू शब्द बोलता है?’’ मैंने कहा, ‘पिता जी, मैंने कभी भी शब्द नहीं बोला।’ लगभग पन्द्रह दिन के बाद मेरा स्थानान्तरण रामा मण्डी हो गया जबकि विभाग की ओर से कोई तैयारी नहीं थी। उसके बाद मैं नामचर्चा में भी जाने लगा। पूजनीय परम पिता जी की मेहर से मुझे मजलिस व नामचर्चा में शब्द बोलने की सेवा भी मिल गई। तब मुझे इस बात का आभास हुआ कि उस दिन पूजनीय परम पिता जी ये सारी बातें इसीलिए कर रहे थे।

इसी तरह सन् 1988 में मेरी बदली रामा मंडी से मुल्लांपुर मार्कफैड शाखा में हो गई। मुल्लांपुर जाने से पहले हमारा मकान भटिण्डा में था, जिसे हमने किराए पर देने का फैसला कर लिया। हम एक ऐसे व्यक्ति को मकान दे बैठे, जिसने पूजनीय परम पिता जी से नाम तो लिया हुआ था परन्तु वह शराब का प्रतिदिन ही सेवन करता था। हमें इस बात का पता बाद में चला। एक दिन वह शराब के नशे में धुत्त था और उसे रिक्शा पर लाया गया। इस दौरान रिक्शा चालक ने उसका बटुआ निकालने की तीन-चार बार कोशिश की। लेकिन जब वह बटुआ निकालने की कोशिश करता तो पूजनीय परम पिता जी उसे लाठी से रोक देते। आखिरकार रिक्शा चालक बेबस होकर उसे घर छोड़ गया। अगले दिन रिक्शा चालक फिर घर आया तथा अंदर आने लगा। किरायेदार की पत्नी ने उसे रोका और कहा कि तुझे रात को पैसे दे दिये थे तो अब क्या करने आया है? उसने रात वाली सारी बात बताई और शर्मिंदा होकर कहने लगा कि आप किसे मानते हो? जिसको आप मानते हो उसकी कोई तस्वीर दिखाओ। जब उसको तस्वीर दिखाई तो उसने कहा कि जब भी मैं बटुआ निकालने की कोशिश करता था तो यही बाबा जी लाठी के साथ मुझे रोक देते थे। मुझे भी इनके दर्शन करवाओ। उसके बाद उसने मासिक सत्संग पर नाम-शब्द की दात प्राप्त की। इस घटना के बाद हमारे किरायेदार ने भी शराब पीनी बंद कर दी।
श्री सतपाल सिंह, बठिंडा (पंजाब)