कारगिल दिवस पर विशेष: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले

Kargil Vijay Diwas

देश की सेवा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे संजीव कुमार

कुरुक्षेत्र (सच कहूँ, देवीलाल बारना)। ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का बाकी यहीं निशां होगा।’ ये पंक्तियां कारगिल युद्ध में अपने प्राणों को देश सेवा करते हुए न्यौछावर करने वाले धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र के बाबैन खंड के गांव कौलापुर में जन्में संजीव कुमार पर स्टीक बैठती हैं। संजीव कुमार का एक वाक्या युवाओं को देश सेवा की प्रेरणा देता है। वे अक्सर अपनी माँ से कहते थे कि माँ मैं सेना में भर्ती होऊंगा और सीमा पर देश की रक्षा करते हुए दुश्मनों का सीना गोलियों से छलनी करूंगा। संजीव कुमार वह योद्धा थे, जो मर कर भी देशवासियों के दिल में जगह बना गए। उस माँ पार्वती व पिता रणजीत का दिल देखिए, जिन्होंने अपने बेटे व चार बहनों के इकलौते भाई संजीव कुमार को देश सेवा को समर्पित कर दिया।

1998 में हुए थे सेना में भर्ती

10 अप्रैल 1979 को माता पार्वती की कोख से जन्म लेकर व पिता रणजीत सिंह की गोद में खेल कर बड़े हुए संजीव कुमार के अंदर शुरू से ही देश सेवा के भाव थे, शायद इसीलिए चार बहनों का इकलौता भाई होने के बावजूद 24 फरवरी, 1998 को सेना में भर्ती हो गए। लगभग 18 वर्ष की उम्र में जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था कि मन में देश सेवा का जज्बा लिए संजीव कुमार फौज में भर्ती होने के मात्र सवा साल के बाद कारगिल की जंग में दुश्मनों को धूल चटाने के लिए मैदान में उतर गए।

फौज के उच्चाधिकारियों ने संजीव कुमार वाली बटालियन को कारगिल क्षेत्र के द्रास में तैनात कर दिया। 6 जुलाई 1999 का वह दिन जब संजीव कुमार व अन्य साथियों की दुश्मनों से जंग चल रही थी तो दुश्मनों से लोहा मनवाते हुए जिंदगी की जंग हार गए। वे मरकर भी हमेशा के लिए अमर हो गए और भारत माता के चरणों में प्राण न्यौछावर कर देश के इतिहास में अपना और अपने परिवार का नाम सुनहरे अक्षरों में लिख गए।

गांव में संदेश आया तो बुझ गया था हर घर का चुल्हा

संजीव कुमार के शहीद होने की इस खबर का गांव मे जैसे ही पता चला तो पूरे गांव के हर घर का चुल्हा ठंडा हो गया। इस घड़ी में गांव की मिट्टी भी अपने आप को गौरवांवित महसूस कर रही थी कि उसने ऐसे सपूत को जन्म दिया जो देश सेवा के लिए काम आया है। पूरा आसमान भारत माता के जयकारों व संजीव कुमार अमर रहे के जयकारों से गुंजायमान हो गया।

शहीद की याद में बनाया स्मारक युवाओं में भर रहा देश सेवा का जूनुन

संजीव कुमार के पिता ने अपने बेटे की याद में गांव में शहीद स्मारक बनवाया और उसमें संजीव कुमार की प्रतिमा लगवाई, जो आज भी युवाओं में देश सेवा का जज्बा भर रही है। वहीं गांव में शहीद संजीव कुमार के नाम पर एक विशाल प्रवेश द्वार बनवाया गया है। वहीं गांव कौलापुर में सरकारी स्कूल शहीद संजीव कुमार के नाम पर है। गांव की एक सड़क का नाम भी शहीद संजीव कुमार के नाम पर रखा गया है।

 

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