कोरोना खात्मे की भूल से महामारी का खौफनाक मंजर

The horrific scene of the epidemic due to the Corona extermination

कोरोना वो शब्द और सत्य है जिसने समूची दुनिया को सकते में डाल दिया। 2019 के आखिरी कुछ हफ्तों में ही यह साफ हो गया था कि हो न हो यह भारी महामारी है जो जल्द जाने वाली नहीं। उस वक्त चेते नहीं और जब चेतना था तब लापरवाह हो गए। अब इसे चाहे बहुरूपिया कहें, नया यूके वैरिएँट कहें, डबल म्यूटेशन वाला कहें या फिर सीधे शब्दों में इंसान की तासीर को भाँप चकमा दे-देकर नए-नए तरीकों से साँसों का गच्चा देने वाला दुश्मन। कुछ भी कह लें इस अदृश्य वायरस ने समूची दुनिया को हिला तो दिया ही।

कोविड-19 पर जितने भी नए शोध या खुलासे सामने आ रहे हैं हर बार स्क्रिप्ट कुछ अलग होती है। समूची दुनिया में बेबसी का आलम है। कहीं मजबूरियों की तो कहीं अनदेखियों की। कीमत हर कोई चुका रहा है। ज्यादातर बेकसूर तो कई सारे कसूरवार भी कम नहीं। कोई खुद जान देकर कीमत चुका रहा तो कोई दूसरों को संक्रमित कर जाने-अनजाने मौत के मुहाने पर पहुँचा रहा है। भारत में अब पहली बार हालात बद से बहुत बदतर हुए हैं। अब रोजाना संक्रमितों के नए और अक्सर रिकॉर्ड बनाते आँकड़े डराते हुए सामने आते हैं। उससे भी ज्यादा दिखने और सुनाई देने वाली जानी-अनजानी मौतों की सँख्या चिन्ताजनक है।

सबसे ज्यादा शर्मसार और रोंगटे खड़े करने वाला सत्य शमसान और कब्रस्तान भी दिखाने से नहीं चूक रहे हैं। कहीं ग्रिल पिघल रही तो कहीं बर्नर ही गल रहे हैं। चिता के लिए लकड़ियाँ भी नसीब नहीं हो पा रही हैं। दफनाने के लिए जगह की कमीं अलग चुनौती बनती जा रही है। हैरान और हलाकान करने वाली बड़ी हकीकत यह भी है कि शवों की लंबी कतार तो कहीं अंतिम संस्कार के लिए टोकन जैसी व्यवस्था करनी पड़ रही है। आँकड़ों के घोषित-अघोषित सच से रू-ब-रू कराती सच्चाई किसी हॉरर फिल्म के बेहद डरावने सीन से कम नहीं है। लेकिन फिर भी सवाल बस इतना कि जब पता है कोरोना 2021 में जाने वाला नहीं और वक्त ठहरने वाला नहीं तो दोनों में तालमेल बिठाने की जुगत क्यों नहीं?

सरकार, हुक्मरान और आवाम तीनों को इस कठिन दौर में मिलजुलकर सख्त फैसले लेने और मानने ही होंगे। जिन्दगी की खातिर कड़े फैसले ही कोरोना की चुनौती और नए बदलते रूपों से बजाए लड़ने के, कड़ी को तोड़ने के लिए सहज और आसान उपाय होंगे। बस सख्ती और ध्यान इस पर देना होगा कि इस बार फिर पहले जैसी कड़ी तिबारा जुड़ न पाए वरना कोरोना कौन से रूप में आ जाए? कोरोना संक्रमण की कड़ी तोड़ने का हमारा और दुनिया का बीते बरस का बेहद अच्छा अनुभव रहा।

लापरवाही और कोरोना के बेअसर हो जाने के भ्रम में सब के सब इतने बेफिक्र हुए कि मुँह से मास्क हटा, दो गज की दूरी घटा पूरी मजबूती से आए कोरोना को पहचान नहीं पाए। कई राज्यों के उच्च न्यायालयों ने हालात पर चिन्ता जताई है। जितनी स्वास्थ्य व्यवस्थाएँ हैं, जनसँख्या और महामारी के आँकड़ों के सामने ऊंट के मुँह में जीरे समान है। बस सबसे अहम यह है कि बेहद सीमित संसाधनों से ही लोगों की जान बचाना है। यह बहुत ही बड़ी चुनौती है। हालात वाकई में मेडिकल इमरजेंसी जैसे हैं। किसी कदर बढ़ते संक्रमण को केवल और केवल रोकना होगा बल्कि दोबारा न हो इसके लिए पाबन्द होना होगा।

पहले भी और अब भी कोरोना की भयावहता के लिए हम खुद ही जिम्मेदार थे और हैं। दरअसल जनवरी-फरवरी में वैक्सीनेशन की शुरूआत के साथ कोरोना के आँकड़ों में तेजी से आई गिरावट के चलते लोगों ने जैसे मास्क को भुला दिया। आम तो आम खास भी बिना मास्क के दिखने लगे और दो गज की दूरी नारों व विज्ञापनों तक सीमित रह गई। बस यहीं से नए म्यूटेशन ने घेरना शुरू कर कुछ यूँ चुनौती दी कि संक्रमण के हर दिन नए हालात जैसे रिकॉर्ड बनाने पर आमादा हो गए। इसका मतलब यह कतई नहीं कि वैक्सीन कारगर नहीं।

नए शोध के अनुसार खांसने, छींकने से ही नहीं, बल्कि संक्रमितों के सांस छोड़ने, बोलने, चिल्लाने या गाना गाने से भी फैल सकता है। वायरस के बेहद तेजी से फैलने की यही बड़ी वजह है। द लांसेट की जिस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है, उसे अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन के 6 विशेषज्ञों ने संयुक्त रूप से तैयार किया है। पहले के दावे को कि कोरोना संक्रमण खांसते या छींकते समय निकलने वाले बड़े ड्रॉपलेट्स से या फिर किसी इंफेक्टेड सतह को छूने से ही फैलने के दावों को खारिज जरूर किया है लेकिन बार-बार हाथ धोने और आसपास की सतहों को साफ करने जैसी बातों पर ध्यान रखना जरूरी भी बताया है।

ऐसी स्थिति में सुरक्षा प्रोटोकॉल में तुरंत बदलाव किए जाने की जरूरत है। भारत में संक्रमण के हालातों को देखते हुए लांसेट कोविड-19 कमीशन के इंडिया टास्क फोर्स के सदस्यों ने सलाह दी है कि सरकार को तत्काल 10 या उससे अधिक लोगों के मिलने जुलने या जुटने पर अगले 2 महीने के लिए रोक लगा देनी चाहिए। ‘भारत की दूसरी कोरोना लहर के प्रबंधन के लिए जरूरी कदम’ जारी रिपोर्ट बेहद चिन्ताजनक है जो कहती है कि जल्द ही देश में हर दिन औसतन 1750 मरीजों की मौत हो सकती है जो जून के पहले सप्ताह में 2320 तक पहुंच सकती है!

इस बार 40 दिन से कम समय में भी कोरोना के नए मामले में 8 गुना वृद्धि हुई है पिछले साल सितंबर में इतने ही मामले आने में 83 दिन का समय लगता था। नियमित स्वास्थ्य परीक्षण भी नहीं रोका जाना चाहिए वरना संकट और गहरा सकता है। बच्चों के नियमित लगने वाले टीकाकरण और जचकी जैसी सुविधाओं को भी नजर अंदाज करना ठीक नहीं होगा क्योंकि इसे जच्चा बच्चा के स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ सकता है।

देश बहुत ही नाजुक स्थिति में है। 18 अप्रेल को एक दिन में मिले घोषित संक्रमितों का आँकड़ा 2 लाख 61 के करीब जा पहुँचा। विशेषज्ञों के दावों और रिसर्च से साफ हो गया है कि संक्रमण रोकना बेहद कारगर और आसान था जो आगे भी रहेगा। दुनिया की अब तक की तमाम महामारियों की तुलना में सबसे सस्ता और कारगर उपाय मास्क और दूरी दो हाथ हर किसी को नसीब है। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी इससे हुए परहेज ने हालात कहाँ से कहाँ पहुँचा दिए। लगता नहीं कि पूरे देश के लिए एक अध्यादेश लागू हो जिसमें सबको कम से कम 6 महीने के लिए उम्र (बच्चों, बड़ों बूढ़ों) के हिसाब से तय मास्क या मुँह, नाक को ढ़कने व परस्पर दूरी रखने की अनिवार्यता हो। अब भी इस जरा सी सावधानी से महामारी को चुनौती दी जा सकती है। काश अब भी आम और खास इसे समझ पाते।

ऋतुपर्ण दवे

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