फिर जातिवाद पर आधारित होंगे चुनाव!

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नाराज़ किसानों का किसे मिलेगा फायदा?

हिसार (सच कहूँ/डॉ. संदीप सिंहमार)। हरियाणा में 2024 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव (Assembly Election) व देशभर में होने वाले लोकसभा चुनाव के दौरान जातिवाद का कार्ड एक बार फिर हावी रहेगा। राजनीतिक पार्टियों की इस रणनीति का जहाँ हरियाणा के विधानसभा चुनाव में सीधा असर पड़ेगा। वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान हरियाणा सहित उत्तर प्रदेश में भी प्रभाव देखने को मिलेगा। Hisar News

इस दोनों प्रदेशों में हमेशा जाट व नॉन जाट पर राजनीति होती आई है, जिस परंपरा की फिर से निभाने के प्रयास किए जा रहे हैं।जाट व नॉन जाट की राजनीति को लेकर कांग्रेस पार्टी के दोनों हाथों लड्डू रहे हैं। कांग्रेस के पास हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा व कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे जाट चेहरे हैं तो वहीं कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री कुमारी सैलजा व वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष उदयभान जैसे नॉन जाट चेहरे भी है।

2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सभी दिग्गज हारे थे | Hisar News

2019 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सभी जाट दिग्गज नेता कैप्टन अभिमन्यु,सुभाष बराला,ओपी धनखड़ व वीरेंद्र सिंह की पत्नी भी चुनाव हार गए थे। उसके बावजूद भी भाजपा ने प्रदेशाध्यक्ष की कमान विधानसभा चुनाव हार चुके उनके ही पूर्व मंत्री ओपी धनखड़ को को सौंपी थी,इससे पहले सुभाष बराला के पास भाजपा की कमान थी,हो टोहाना हल्के से देवेंद्र बबली से चुनाव में भारी मतों के अंतर से मात खा गए थे।

भाजपा ने प्रदेश में पहली बार बहुमत मिलते ही मनोहर लाल को बनाया था मुख्यमंत्री

हरियाणा प्रदेश में पहली बार बहुमत मिलने के बाद भी भाजपा आलाकमान ने प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की कमान नॉन जाट चेहरे मनोहर लाल को सौंपी थी। इसके बाद 2019 के चुनाव में हालांकि भारतीय जनता पार्टी को बहुमत नहीं मिला। लेकिन भाजपा ने जननायक जनता पार्टी के साथ गठबंधन का फिर से सरकार बनाई, पर तब भी मनोहर लाल को ही मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि इस दौरान एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी नॉन जाट मनोहर लाल को व संगठनात्मक नियुक्ति में जाट वोट बैंक को साधते गए ओपी धनखड़ को कमान सौंपी। Hisar News

सभी राजनीतिक पार्टियां लड़ा रही जातिगत राजनीति का दांव-पेंच

जातिगत राजनीति का दांव-पेंच हरियाणा में भाजपा ही नहीं खेल रही, बल्कि कांग्रेस भी ऐसा ही करती आई है। कांग्रेस के सबसे बड़े नॉन जाट चेहरा भजनलाल पर कांग्रेस आला कमान ने जहां सबसे ज्यादा भरोसा किया। भजनलाल को जहाँ तीन बार हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया तो प्रदेशाध्यक्ष की भी जिम्मेदारी दी गई। 2005 के विधानसभा का चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के नेतृत्व में भी लड़ा गया था।

कांग्रेस में 2005 में बाजी मार गए थे भूपेंद्र हुड्डा

पर 2005 में मुख्यमंत्री पद के लिए विधायक बने बिना भी जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा बाजी मार गए। उस वक्त भूपेंद्र सिंह हुड्डा लोकसभा सांसद थे। तब से भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश में जाट वर्ग के बड़े नेता के रूप में बनकर उभरे। पूर्व में हुए जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने जाट समाज के एक मंच से अपने संबोधन में कहा भी था कि वह मुख्यमंत्री से पहले जाट सिपाही है।

राजनीति में कुछ असंभव नहीं | Hisar News

यह वोटों की राजनीति है जनाब। इसमें कुछ भी संभव है। जिस पार्टी को जिस वोट बैंक से फायदा मिलेगा। वह पार्टी इस जाति वर्ग के लिए राजनीति करती आई है और करती रहेगी। वर्तमान में जब भाजपा को यह बात महसूस हुई कि ओमप्रकाश धनखड़ के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान हो सकता है तो तुरंत प्रभाव से ओपी धनखड़ को बदलते हुए कुरुक्षेत्र के सांसद नायब सिंह सैनी को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी गई। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भी नॉन जाट है। इसका सबसे बड़ा कारण किसान आंदोलन के दौरान जाटों का वोट बैंक सभी पार्टियों में बंटना है। Hisar News

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