प्लास्टिक के विरुद्ध जागरूकता ही सबसे बड़ा माध्यम

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आखिर केन्द्र सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रयोग पर पाबंदी लगाकर लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया है। इससे पहले महात्मा गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर देश भर में प्लास्टिक पर पाबंदी लगाने संबंधी संदेश दिया गया था। भले ही इसके पीछे रोजगार समाप्त होने का भी तर्क दिया जा रहा है, फिर भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि प्लास्टिक का प्रयोग देश को किस भयानक मोड़ पर ला खड़ा कर सकता है जिसके लिए किसी भी प्रकार की देरी घातक सिद्ध होगी। भले ही जागरूकता से इसके प्रयोग को कम किया जा सकता है लेकिन इसका समाधान केवल दिखावा करने, या आनाकानी करने से नहीं होने वाला। निर्णय सरकार को लेना होता है लेकिन आम जनता का सहयोग तब ही मिलता है जब लोग खुद किसी कार्य के लिए पहल करें। मोटर वाहन एक्ट इसका ही उदाहरण है।

हरियाणा, महाराष्टÑ सहित कई राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें थी, ने मोटर व्हीकल एक्ट के भारी भरकम जुर्मानों को लागू न करने का निर्णय कर लिया था। आखिर राज्य सरकारों ने एक अन्य रास्ते निकालकर अघोषित रूप से चालान काटने बंद कर दिए थे। सोशल मीडिया पर मोटर व्हीकल एक्ट की नीति पर भी सवाल उठाए गए थे। जहां तक प्लास्टिक की सिंगल यूज के प्रयोग का संंबंध है इसका प्रचार इतना ज्यादा हो चुका है कि इसे झट से या एक माह के भीतर खत्म करना संभव नहीं, इसके लिए इंतजार करना होगा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व में प्लास्टिक उत्पादन में प्रति वर्ष 320 मिलियन टन की वृद्धि हुई है जिसमें से केवल 9 प्रतिशत रिसाइक्लिंग और 12 प्रतिशत जला या फेंक दिया जाता है।

अनुमानित 100 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र और महासागरों में चला जाता है और 80-90 प्रतिशत प्लास्टिक भूमि आधारित स्रोतों से आता है। भारत में हर रोज लगभग 15,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि इसमें से ज्यादा कचरा गड्ढो और नालियों में डाल दिया जाता है। जिससे उचित रिसाइक्लिंग सुविधा के आभाव में नहर और नदियों का बहाव अवरुद्ध हो जाता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, कई प्रदेशों ने बहुत पहले ही प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया था।

दरअसल पिछले 30 वर्षों से हम वातावरण को नजरअंदाज करते आए हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि प्लास्टिक के प्रयोग को बंद करने के सरकारी कार्यक्रमों में भी प्लास्टिक की बोतलों व डिस्पोजल गिलासों का बड़े स्तर पर प्रयोग होता रहा है। प्लास्टिक की पानी की बोतलों का प्रयोग आमजन से लेकर अफसरशाही व नेताओं के जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गई है। यदि सत्ता के उच्च पदों पर बिराजमान नेता व नौकरशाह, पहले खुद प्लास्टिक के प्रयोग न करने की मिसाल पैदा करेंगे तब जनता से परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है। अभी तक राजनीतिक रैलियों के समापन समारोह के बाद प्लास्टिक के डिस्पोजल गिलासों व बोतलों के ढेर लग जाते हैं। दरअसल किसी वस्तु के हटाने से पहले उसका विकल्प तलाशने व उसके लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है। प्लास्टिक के दुष्प्रभावों का प्रचार ही इसका समाधान है।

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