लोकतंत्र में बस कल्चर

Process of Democracy

भ्रष्टाचार व अपराधों के कारण बदनाम हो चुकी राजनीति का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। लोकतंत्र विश्व की सबसे लोकप्रिय राजनीतिक प्रणाली थी, लेकिन पूंजीवादी संस्कृति ने लोकतंत्र के आदर्शों व मूल्यों को बिल्कुल नीचा दिखा दिया है। ताजा प्रकरण झारखंड का है, जहां लोकतंत्र तमाशा बन गया है। सत्तापक्ष झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द होने से सरकार पर संकट गहरा रहा है। सत्तापक्ष पार्टी दलबदल से बचाव करने के लिए अपने विधायकों को बसों में लेकर घूम रही है। यही हाल कुछ माह पूर्व महाराष्टÑ में देखा गया था जब शिवसेना के विधायकों को असम लाया गया। अब यह रूटीन ही बन गया है कि जब सरकार को खतरा हो तब सत्ताधारी दल अपने विधायकों को गुप्त जगहों पर छिपा देता है। अभिव्यक्ति को महत्व देने वाला लोकतंत्र अब बसों की भागदौड़ की जंग में तब्दील हो गया है। वास्तव में राजनेताओं पर विश्वास सा नहीं रह गया।

कुछ नहीं पता चलता कि ऊंट किस करवट बैठ जाए। यहां तक कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी यह भरोसा नहीं कि उनके विधायक उनके साथ खड़े रहेंगे या नहीं। पार्टियों को ज्यादा डर यही होता है कि उनके विधायक किसी लालच में आकर पार्टी न छोड़ जाएं। राजनीति इतनी ज्यादा कमजोर हो गई है कि विधायकों को कमरों में बंद करने की नौबत आ गई है। वास्तव में विधायक आदर्श नहीं कायम रख सके। अब वे अपने जुबान के पक्के नहीं रहे। इस मामले में पार्टियां भी अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकतीं। पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं ने राजनीति को महज सत्ता प्राप्त करने का साधन बना लिया है। जनसेवा व राष्टÑ सेवा गौण हो गई। पार्टियां अपने नेताओं को राजनीति एक सेवा जैसे उच्च गुण, आदर्श व मूल्य नहीं सिखा सकीं। पार्टी के लिए विधायक केवल एक आंकड़ा बनकर रह गया है।

यदि पार्टियों ने नेताओं को अनुशासन में रहकर सिद्धांतों का आदर्श सिखाया होता तो आज विधायकों के पार्टी छोड़ने का डर नहीं होता। पार्टी अपने नेता की एक-एक योग्यता चुनाव जीतने की क्षमता के तौर पर देखती है। जीतने वाले नेता की कमियों को छुपाया जाता है। दूसरी तरफ विपक्ष को इस मामले में स्पष्ट व ईमानदारी वाला रवैया अपनाते हुए यह बात सार्वजनिक करनी चाहिए कि विधायकों की खरीद-फरोख्त या दबाव की राजनीति नहीं की जा रही। अक्सर सत्तापक्ष यह आरोप लगाता है कि विपक्षी पार्टी उनके विधायकों को लालच दे रही है। आखिर में यह स्वीकार करना होगा कि विधायकों को छुपाने का यह चलन लोकतंत्र के नाम पर कलंक है।

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