डॉ लोहिया ने जलाई थी गोवा मुक्ति संग्राम की अलख

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दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर लुभाता भारत का खूबसूरत शहर गोवा 18 जून को क्रांति दिवस के रूप में मनाता है। इस दिन समाजवादी नेता डॉ. क्टर राम मनोहर लोहिया ने पुर्तगालियों के खिलाफ आंदोलन का शंखनाद किया था। यह दिन गोवा की आजादी की लडाई के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है।

पुर्तगालियों के 550 वर्ष के शासन से गोवा को आजादी दिलाने वाले डॉक्टर लोहिया ने 18 जून को गोवा के लोगों को एकजुट होने और पुर्तगाली शासन के खिलाफ लड़ने का संदेश दिया था। भारत को 1947 में आजादी मिल गई थी, लेकिन इसके 14 साल बाद भी गोवा पर पुर्तगाली अपना शासन जमाये बैठे थे। 19 दिसम्बर, 1961 को भारतीय सेना ने आॅपरेशन विजय अभियान शुरू कर गोवा, दमन और दीव को पुर्तगालियों के शासन से मुक्त कराया था

18 जून 1946 को डॉ. राम मनोहर लोहिया ने गोवा जाकर स्थानीय निवासियों को पुर्तगालियों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए प्रेरित किया था। लंबे अरसे तक चले आंदोलन के बाद 19 दिसम्बर 1961 को गोवा को पुर्तगाली आधिपत्य से मुक्त कराकर भारत में शामिल कर लिया गया था। 1946 में आज ही के दिन डॉ.क्टर राममनोहर लोहिया ने पुर्तगालियों के खिलाफ आंदोलन का नारा दिया था।

तब अंग्रेजी साम्राज्य डूब रहा था, कई बड़े राष्ट्रीय नेताओं का मानना था कि अंग्रेजों के जाते ही पुर्तगाली भी गोवा से कूच कर जाएंगे। पर स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया सहमत नहीं थे कि बिना आंदोलन छेड़े ऐसा संभव हो पाएगा। हालांकि गोवा को पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करवाने में कई साल और लगे।

गोवा की आजादी का शंखनाद समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने किया था। आज भी वहाँ के लोकगीतों में डॉ. लोहिया का वर्णन पौराणिक नायकों की तरह होता है। गोवा की आजादी में लोहिया और उनके समाजवादी साथियों का बड़ा योगदान था।

लोहिया ने पहली बार गोवा के आजादी के मुद्दे को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाया और लोगों का ध्यान आकर्षित करने में सफल हुए। अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए मगर गोवा पर पुर्तगाल का कब्जा बना रहा। लोहिया गोवा मुक्ति आंदोलन के महान सेनानी थे। उन्होंने 1942 से ही गोवा मुक्ति आंदोलन का बीड़ा उठाया।

15 जून 1946 को पंजिम में डॉ. लोहिया की सभा हुई जिसमें तय हुआ 18 जून से सविनय अवज्ञा प्रारम्भ होगा। पुलिस ने टैक्सी वालों को मना कर दिया था। डॉ. लोहिया मड़गाँव सभा स्थल घोड़ागाड़ी से पहुँचे। घनघोर बारिश, 20 हजार की जनता और मशीनगन लिए हुए पुर्तगाली फौज। गगनचुम्बी नारों के बीच डॉ. लोहिया के ऊपर प्रशासक मिराण्डा ने पिस्तौल तान दिया, लेकिन लोहिया के आत्मबल और आभामण्डल के आगे उसे झुकना पड़ा।

पांच सौ वर्ष के इतिहास में गोवा में पहली बार आजादी का सिंहनाद हुआ। लोहिया गिरफ्तार कर लिए गए। पूरा गोवा युद्ध-स्थल बन गया। पंजिम थाने पर जनता ने धावा बोल कर लोहिया को छुड़ाने का प्रयास किया। एक छोटी लड़की को जयहिन्द कहने पर पुलिस ने काफी पीटा। 21 जून को गवर्नर का आदेश हुआ कि आम-सभा व भाषण के लिए सरकारी आदेश लेने की आवश्यकता नहीं।

लोहिया चौक पर झण्डा फहराया गया। गोवा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा पुर्तगाल को तीन माह की नोटिस देकर लोहिया लौट आए। 26 जून 1946 के अंक में महात्मा गांधी ने लेख लिख कर लोहिया की गिरफ्तारी का पुरजोर विरोध किया।

तीन महीने पश्चात डॉ. लोहिया दोबारा गोवा के मड़गाँव के लिए चले। उन्हें कोलेम में ही गिरफ्तार कर लिया गया। 29 सितम्बर से 8 अक्टूबर तक उन्हें आग्वाद के किले में कैदी बनाकर रखा गया, बाद में अनमाड़ के पास लाकर छोड़ा गया। 2 अक्टूबर को अपने जन्मदिन के दिन गांधी जी ने लार्ड बेवेल से लोहिया की रिहाई के लिए बात की। लोहिया पर गोवा-प्रवेश के लिए मनाही हो गई।

गोवा मुक्ति आंदोलन के इतिहास में जिन लोगों ने अपना खून पसीना बहाया और जेल की यंत्रणा सही इस दिन उनका समरण देशवासियों के लिए जरुरी है।

गोवा आंदोलन में समाजवादी नेता डॉ. लोहिया और उनके साथियों की भूमिका अविसमरणीय है जिन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए गोवा को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोहिया के लम्बे जनजागरण के बाद गोवा को आजादी मिली थी।

 

 

 

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