ढाल है मेरी वह मेरा पिता है…

Father's Day
Father's Day:- पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां

धूप हो गम की तो वो वटवृक्ष सा है।
मैं चली पदचिन्ह पर वो लक्ष्य सा है।
अंक भर उसने समेटा वक्ष पर तो,
कौन जाने वक्ष ही वो कक्ष सा है।

उम्र भर हर मोड़ पर जो छाँव करती,
मैं चिड़ी नन्ही सी जिसका चाव करती,
यादें मीठी सी वो आच्छादित लता है।

Saint Dr. MSG
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां

ढाल है मेरी, वह मेरा पिता है!
स्वाभिमानी भी क्यों इतना झुक खड़ा है?
वो मेरी खातिर जमाने से लड़ा है।
रात-दिन निर्भेद सा, दुभर थी जिंदगी।

आगोश में खुद मौत को ही भरती जिंदगी।
महफूज उसकी गोद क्यों? जाने सुता है?
ढाल है मेरी.. वह मेरा पिता है!..
मैं उठी दो पग चली, तो वाह! बोला।

एक मंजिल के लिए हर राह खोला।
पितृ ही जीवन का रेखाचित्र सा है।
बाप ही केवल नहीं वो मित्र सा है।
नीम सी वाणी थी औषध के मानिंद,
अल्पज्ञ ना समझी उन्हें, मेरी खता है।

ढाल है मेरी, वह मेरा पिता है!
आज तन्हा बैठ उनसे बात करती।
उनकी सभी बातों को आत्मसात करती,
आज होती बोध उनकी पदगरिमा,
तब मनाते थे, तो उनसे बात करती।

msg

धूमकेतु से हुए ओझल कभी के।
अश्क से नयना किये बोझिल सभी के।
है मेरे ही साथ हां ये भी पता है।
ढाल है मेरी वह मेरा पिता है।

मैं रहूँ दुनिया में चाहें जिस जगहा,
है अंग-संग ‘‘बघियाड़’’ के वो सब जगहा है।
छोड़ ले ब्रह्मास्त्र तू छाती पे मेरी!
कर्ण जैसे कवच मेरे मेरे भी यथा है।
ढाल है…
                                                                                                                  -बघियाड़

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