सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान अपने किये कर्मों का फल जरूर भोगता है। कई बार इन्सान सोचता है कि मैंने ऐसा कौन-सा कर्म किया है, जिसकी वजह से मैं दु:खी हूं! लोग मिलते हैं कि मैंने इस जीवन में कोई बुरा कर्म नहीं किया, कोई गलत कर्म नहीं किया फिर भी मैं दु:खी हूं, परेशान हूं! तो इसकी वजह होती है इन्सान के संचित कर्म। जन्मों-जन्मों के संचित कर्म इन्सान के साथ जुड़े होते हैं, उन पाप कर्मों को अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, राम का नाम ही खत्म कर सकता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सभी रोगों की मुकमल दवा है अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, राम का नाम।
सच्चे दिल से, सच्ची भावना से कोई प्रभु का नाम लेता है तो जन्मों-जन्मों के पाप कर्म तो कटते ही हैं, जो बेवजह काम-धंधे में बाधा, शरीर में रोगों का लग जाना, जिन्हें कर्म रोग कहते हैं, वो राम-नाम से कट जाया करते हैं। यहां लाखों मरीज आते हैं और अपने अनुभव बताते हैं कि उन्होंने राम का नाम जपा और जन्मों-जन्मों के पाप कर्म कट गए।
जिसकी भावना शुद्ध होती है, वह मालिक को पा लिया करते हैं
कैंसर जैसे रोग, जिन्हें डॉक्टर लाईलाज कहते हैं, जिन्हें थर्ड स्टेज का कैंसर था, वो आज भी जिंदा हैं। ऐसा कैसे संभव है? इस बारे में आप जी फरमाते हैं कि जैसे बच्चा भूखा हो तो मां तड़प उठती है, आपके बच्चे के जरा-सी चोट लग जाए तो आंखों से बेइंतहा आंसू आ जाते हैं। ऐसी ही भावना अगर इन्सान अल्लाह, वाहेगुरु, राम के लिए बनाए, उसे याद करे, उसकी भक्ति करे, तो जिस मालिक ने शरीर बनाया उसके लिए शरीर से रोग निकालना इस तरह है जैसे मक्खन से बाल निकालना।
भगवान आपके पैसे का भूखा नहीं है, अगर ऐसा होता तो अरबों-खरबोंपति तो कभी बीमार ही न होते। वह भगवान भावना से मिलता है। जिसकी शुद्ध भावना होती है, वो मालिक को पा लिया करते हैं। उन्हीं पर मालिक की कृपा-दृष्टि होती है और वो साक्षात् मालिक के दर्शन कर सकते हैं।
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