पक्ष एवं विपक्ष दोनो तरफ से भारत के राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार तय कर लिए गए हैं। इस बार के चुनाव में यूं तो 11 के करीब अन्य उम्मीदवार भी मैदान में उतरे हैं, लेकिन जिन उम्मीदवारों के बीच वास्तविक मुकाबला होना है, रामनाथ कोविंद राजग की ओर से व मीरा कुमार यूपीए की ओर से दलित समुदाय से संबंध रखने वाले हैं।
दोनों उम्मीदवार राजनीतिक पृष्ठभूमि से हैं। दोनों नेताओं में तीन बात समान देखने को मिल रही हैं। पहला, मीरा कुमार व रामनाथ कोविंद अपनी युवावस्था में भारतीय विदेश सेवा एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसे देश की सबसे प्रभावपूर्ण अफसरशाही के लिए चुने जा चुके थे। यहां मीरा कुमार ने कई वर्ष विदेश सेवा की नौकरी भी की है,
लेकिन रामनाथ कोविंद मनपसंद रैंक न मिलने के कारण भारतीय प्रशासनिक सेवा में नहीं गए। तत्पश्चात दोनों ने राजनीतिक जीवन को चुना और लंबे समय तक संसद सदस्य रहे हैं। तीसरी बात जो शुरु में ही बताई जा चुकी है कि ये दोनों नेता दलित हैं। इस बार 14वें राष्ट्रपति के लिए ये चुनाव हो रहा है। एनडीए व यूपीए के पास यदि संभावित वोटों की गिनती करें, तब एनडीए का पलड़ा भारी नजर आ रहा है
और इस बात की पूरी संभावना है कि एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद अगले राष्ट्रपति होंगे। राज्यों, लोकसभा व राज्यसभा में कुल मतों का 60 फीसदी यानि 661278 मतों के करीब एनडीए के पास हैं, बाकि बचे 40 फीसदी मतों में 434241 के करीब मत यूपीए के पास हैं। इस बार लोकसभा में जहां भाजपा गठबंधन एनडीए मजबूत स्थिति में है,
वहीं राज्यसभा में कांग्रेस गठबंधन यूपीए मजबूत स्थिति में है। राज्यों में यदि बिहार, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे बड़े राज्यों को निष्पक्ष मान लिया जाए, तब राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस, भाजपा को मजबूत टक्कर दे रही थी, लेकिन नीतिश कुमार, चंदबाबू नायडू व तमिलनाडू की एआईएडीएमके भाजपा के साथ आ गए हैं।
अत: भाजपानीत राजग का पलड़ा भारी हो गया है। राष्ट्रपति दलों से इतर यदि राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारों की व्यक्तिगत तुलना की जाए, तब मीरा कुमार, रामनाथ कोविंद से ज्यादा दम रखती हैं। मीरा कुमार का राजनीतिक अनुभव व कांग्रेस में रहते हुए भी उनकी बाकी दलों के साथ कोई ज्यादा दूरी नहीं कही जा सकती।
रामनाथ कोविंद भाजपा या यूं कहें कि भाजपा में अध्यक्ष अमित शाह की खोज कहे जाएंगे, क्योंकि भाजपा में इस बार कई शीर्ष नेताओं को यह उम्मीद थी कि वह पार्टी की ओर से राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं, जिनमें व्योवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी प्रमुख रहे हैं।
कुछ दिनों पहले तक संघ प्रमुख मोहन भागवत का भी नाम लिया जाता रहा है। शीर्ष राजनीतिक दलों का राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने में आंतरिक गुणा-भाग जो भी रहा हो, परंतु इतना जरूर स्पष्ट है कि कांग्रेस व भाजपा वर्ष-2019 का लोकसभा चुनाव कहीं न कहीं दलित वर्गों को केन्द्रीय धुरी मानकर लड़ने जा रहे हैं।
क्योंकि अभी राष्ट्रपति फलक पर कोई भी नेता ऐसा नहीं बचा है, जिसे भारत का दलित वर्ग अपना नेता मान रहा हो। एक वक्त में मायावती तेजी से उभरी थीं, लेकिन उनकी यूपी में जो गत हुई है, उसे दलित अब नेता के तौर पर पूरी तरह से भुला चुके हैं। नि:संदेह भावी राष्ट्रपति में भारतीय दलित वर्ग के लिए एक सर्वमान्य नेता तराशे जाने की भी व्यवायद हो रही है।
जबकि सबको पता है कि भारत का राष्ट्रपति कोई राजनीतिक भूमिका नहीं निभाता, लेकिन ये दल उसे एक छलावे की तरह अवश्य दिखाएंगे। जिस पर भारत का दलित समाज मोहित होकर भावी चुनाव में इन राष्ट्रपति दलों की नैया पार लगा सकता है।
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