कारगिल युद्ध में झज्जर के रणबांकुरों ने छुड़ाए थे पाकिस्तान के छक्के

Kargil-war sachkahoon

जिले से 11 जवान हुए थे शहीद

झज्जर (सच कहूँ/संजय भाटिया)। झज्जर को रणबांकुरों की भूमि कहा जाता है। चाहे देश की आजादी की लड़ाई हो या फिर 1962, 65, 71 या फिर 1999 में कारगिल युद्ध। झज्जर के वीर जवानों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर दुश्मनों के छुक्के छुड़ा भारत माता को दुश्मनों के चंगुल से मुक्त करवाया था। 26 अप्रैल 1999 से जुलाई 1999 तक चले इस कारगिल युद्ध में झज्जर के 11 जवानों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपना बलिदान दे दिया, वहीं कई सैनिक देश की रक्षा करते हुए घायल भी हुए थे। लेकिन दुश्मनों को अपने क्षेत्र में कब्जा नहीं करने दिया। दुर्गम क्षेत्रों में जहां दुश्मन पहाड़ियों पर आधुनिक हथियारों से लैस था, तब भी अपना हौसला नहीं छोड़ा और दुश्मनों को मार गिराकर तिरंगा झंडा फहरा दिया। हर वर्ष 26 जुलाई को कारगिल दिवस पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए इन जवानों को आज भी लोग श्रद्धा से याद करते हैं।

इन जवानों ने दी थी प्राणों की आहुति

  • हवलदार हरिओम पुत्र चंदराम खुंगाई (7 जुलाई 1999)
  • सिपाही धर्मवीर पुत्र सूबे सिंह ढाकला (8 जुलाई 1999)
  • ग्रेनेडियर सुरेंद्र पुत्र रण सिंह, सुबाना (16 जून 1999)
  • लांस नायक राजेश पुत्र रामेशवर झांसवा (7 जुलाई 1999)
  • सिग्नल मैन विनोद पुत्र जगदीश, जैतपुर (14 जून 1999)
  • लांस नायक श्याम सिंह पुत्र हुकुमचंद निलौठी (13 जून 1999)
  • असि. कमांडेट आजाद दलाल पुत्र लायकराम, जाखौदा (13 जून 1999)
  • हवलदार जयप्रकाश पुत्र रण सिंह देशलपुर (8 मई 1999)
  • नायक लालाराम पुत्र रिजकराम जटवाड़ा (25 जून 1999)
  • कैप्टन अमित वर्मा पुत्र कर्नल सुरेंद्र सिंह बराही (4 जुलाई 1999)
  • नायक रामफल पुत्र राज सिंह सौलधा (6 जुलाई 1999)

जब तिरंगे में लिपटकर एक साथ आए चार जवान

7 जुलाई 1999 को जिला झज्जर कभी नहीं भूल सकता। 7 जुलाई को जिले के चार वीर जवानों ने हँसते-हँसते भारत माँ के चरणों में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। जैसे ही इन चारों जवानों के तिरंगे में लिपटे हुए पार्थिव शरीर झज्जर पहुंचें थे तो सभी जिलावासियों की आँखें नम थी और भारत माता की जय। शहीद अमर रहे के गगन चुंबी नारे लग रहे थे। भारतीय सेना के इतिहास में जिस प्रकार से 1971 के पाकिस्तान से युद्ध को याद रखा जाता है, ठीक उसी प्रकार कारगिल युद्ध को भी हमेशा याद रखा जाएगा। देश पर कुर्बान होने की जब भी बात सामने आएगी तो झज्जर जिला पूरे देश में अलग ही नजर आएगा।

कारगिल के शहीदों की याद में बना स्मारक

जिला प्रशासन ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों की याद में बाल भवन में एक स्मारक का निर्माण करवाया था। इस स्मारक की एक दीवार पर अशोक चक्र व दूसरी ओर कारगिल विजय ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए सैनिकों के नाम दर्ज हैं। वहीं सरकार ने हर शहीद के गांव में स्मारक भी बनवाए ताकि इन शहीदों की कुर्बानी को याद रखा जा सके।

जिले से सेना में 17 हजार जवान

झज्जर जिले के लिए यह गौरव की बात है कि भारतीय सेना में इस जिले से करीब 17 हजार जवान कार्यरत है। वहीं झज्जर जिले में 63 हजार के करीब पूर्व सैनिक भी हैं, जो अब भी देश की रक्षा के लिए सीमाओं पर जाने के लिए तैयार है।

बोफोर्स साबित हुई थी सबसे बड़ी मददगार

कभी बोफोर्स तोप को लेकर जिस प्रकार से राजनीतिक दलों द्वारा प्रश्न उठाए गए थे। उससे लगा था कि बोफोर्स तोप खरीद कर भारत ने गलती की है। लेकिन कारगिल युद्ध में बोफोर्स दुश्मन के लिए काल बनी। हल्के वजन की इन तोपों ने दुशमन के छक्के छुड़ा दिए थे।

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