इस नई विधि से करें सरसों की खेती, होगा जबरदस्त मुनाफा | Yellow mustard farming

Yellow mustard farming

जीएम सरसों की खेती से पैदावार में वृद्धि: महापात्रा

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (नास) और (Yellow mustard farming) कृषि विज्ञान उन्नयन ट्रस्ट (टास) ने कहा है कि आनुवांशिक रुप से संवर्धित (जीएम) सरसों डीएमएच 11 की खेती से न केवल पैदावार में भारी वृद्धि होगी बल्कि खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भरता को मदद मिलेगी। नास के अध्यक्ष और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा और टास के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह परोदा ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार से जीएम फसलों की खेती को मंजूरी से इस क्षेत्र में अनुसंधान को बल मिलेगा तथा नई नई संकर किस्मों के विकास किये जा सकेंगे जिससे उत्पादन तथा उत्पादकता में भारी वृद्धि होगी।

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Hoarding of Mustard

राजस्थान , पंजाब और हरियाणा में मुख्य रुप से प्रदर्शन खेती की जायेग

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण की दृष्टि से डीएमएच 11 सरसों की खेती शुरू किये जाने की हाल में अनुमति दी है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि मंत्रालय की निगरानी में इस सरसों की प्रदर्शन खेती देश के अलग अलग हिस्सों में की जायेगी। उन्होंने कहा कि डीएमएच सरसों का मात्र दस किलो बीज है। एक हेक्टेयर खेत के लिए एक किलो बीज पर्याप्त होता है । राजस्थान , पंजाब और हरियाणा में मुख्य रुप से प्रदर्शन खेती की जायेगी। अगले दो साल के बाद किसानों को इसके बीज मिलने की उम्मीद है।

Mustard crop

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सरसों की पैदावार को चार टन प्रति हेक्टेयर तक किया जा सकता है | Yellow mustard farming

डा महापात्रा और डा सिंह ने बताया कि वर्ष 2020..21 में एक लाख 17 हजार करोड़ रुपये के खाद्य तेल का आयात किया गया था। यह स्थिति लम्बे समय तक नहीं चल सकती है। उन्होंने कहा कि देश में प्रति हेक्टेयर 1.3 टन सरसों का उत्पादन होता है जबकि चीन और कनाडा में इसका उत्पादन 2.5 टन है। उन्होंने कहा कि जीएम सरसों की पैदावार को चार टन प्रति हेक्टेयर तक किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि देश में 2010 से 2015 तक जीएम सरसों का परीक्षण किया गया था जिस दौरान इसकी पैदावार में अन्य किस्मों की तुलना में 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी थी। डीएमएच 11 किस्म का विकास वरुणा और यूरोप की एक अन्य किस्म के क्रास से किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रदर्शनी खेती के दौरान मधुमक्खी पर इसके प्रभाव का दो साल तक अध्ययन किया जायेगा । उन्होंने कहा कि पहले भी इसके मधुमक्खी पर होने वाले असर का अध्ययन किया गया था और उस पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पाया गया । जीएम सरसों की खेती करने वाले देशों में मधुमक्खी पालन किया जा रहा है और वहां से शहद का निर्यात भी किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि आस्ट्रलिया ने भी इसी माह भारतीय जीएम सरसों की खेती शुरू किये जाने की अनुमति दी है जिससे दुनिया में खाद्य तेल की बढती मांग को पूरा किया जा सके।

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