पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से प्रेरित होकर 34 साल से मस्जिद को संभाल रहा राम बीर

Mosque sachkahoon

पूज्य गुरु जी की ओजस्वी वाणी से मंत्रमुग्ध हो गए थे ग्रामीण

  • गुरुमंत्र लेने के बाद समाज भलाई कार्यों में लिया बढ़ चढ़कर भाग

सोनू कुमार, मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश का जनपद मुजफ्फरनगर जहां दंगों की वजह से बदनाम रहा है। वहीं मुजफ्फरनगर का एक गांव ऐसा भी है, जो सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बना हुआ है। हिन्दू आबादी वाले इस गांव में 130 वर्ष पुरानी मस्जिद अब गांव की धरोहर बनी हुई है। आजादी के वक्त इस गांव से अल्पसंख्यक समाज सैयद हासिम के जिम्मेवार लोगों ने धीरे-धीरे पलायन करना शुरू कर दिया। कुछ सालों बाद सभी गांव से चले गए। उसके बाद गांव में बनी मस्जिद की देखभाल बहुसंख्यक समाज के लोग कर रहे हैं।

अक्सर इस मस्जिद के गेट पर ताला लगा रहता है। सन् 1987 में डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने गांव नेहड़ा में सत्संग किया था। पूजनीय गुरु जी की ओजस्वी वाणी से प्रभावित होकर सत्संग में बड़ी संख्या में लोगों ने नाम गुरुमंत्र लिया और समाज सेवा में जुट गए। गांव निवासी रामबीर कश्यप भी उन्हीं में से एक है। गुरु जी के वचनों से प्रभावित होकर रामबीर पिछले करीब 34 साल से यहां की मस्जिद की देखभाल और साफ सफाई की जिम्मेदारी संभाले हुए है।

सन् 2013 में दगों के दौरान भी रामबीर ने मस्जिद की पूरी देखभाल की

ग्रामीणों ने बताया कि रामबीर हर साल उक्त मस्जिद को रंग-रोगन भी करवाता है। लोग मस्जिद को गांव की अनमोल धरोहर मानते हैं। यही कारण है कि क्षेत्र में चर्चा का केन्द्र बनी हुई है। हर कोई डेरा सच्चा सौदा के सेवादार की तारीफ कर रहे हैं। सन् 2013 में दगों के दौरान भी रामबीर ने मस्जिद की पूरी देखभाल की। जिस वक्त कोई मस्जिद में जाना पसंद नहीं कर रहा था, तब भी रामबीर ने अपनी जान की परवाह किए बिन सतगुरु को हाजिर नाजिर मानते हुए सेवा कार्य जारी रखा।

उत्तर प्रदेश के ब्लॉक मोरना क्षेत्र के गांव नन्हेड़ा में आजादी से पहले अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समाज के लोग मिल-जुलकर रहते थे। मगर आजादी के बाद मुस्लिम परिवार इस गांव से पलायन कर गए। तब से इस गांव में बहुसंख्यक समाज के सर्वजातीय ग्रामीण रह रहे हैं। 2500 के करीब आबादी वाले इस गांव में जाट, हरिजन और ब्राह्मण समाज के लोग निवास करते हैं। गांव की आबादी के बीच 100 साल पुरानी मस्जिद आज भी यहं मुस्लिम समाज के अतीत की कहानी बयां कर रही है।

गांव से मुस्लिम समाज के पलायन के बाद से गांव के हिन्दू इस मस्जिद को गांव की धरोहर मानकर प्रतिदिन साफ-सफाई करते थे। डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने 1987 में यहां सत्संग किया। उसके बाद गांव के रामबीर ने इस मस्जिद की साफ-सफाई और देखभाल करने का मन बनाया। रामबीर ने बताया कि हमें डेरा सच्चा सौदा में सभी धर्मों का आदर सत्कार करना सिखाया जाता है। ग्राम पूर्व प्रधान दारा सिंह अक्सर गांव की चौपाल पर रामबीर के साथ मस्जिद की देख-रेख पर विचार विमर्श करते रहते हैं।

गांव में बने मंदिरों की तरह ही इस मस्जिद की भी डेरा अनुयायियों के साथ ग्रामीण भी मिल जुलकर करते हैं। सर्वधर्म समभाव का संदेश दे रहे डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की स्थानीय के साथ-साथ आसपास के गाँव वाले भी भरपूर प्रशंसा कर रहे हैं, क्योंकि हर मुश्किल घड़ी में ये सबसे पहले आकर मदद करते हैं और समाज के काम आते हैं।

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