मानसून से पहले टिड्डियों को भगाना होगा

Locusts have to be repelled before the monsoon
टिड्डियों को लेकर विश्व खाद्य संगठन और कृषि वैज्ञानिकों ने खतरों की जो भविष्यवाणी की है, उसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। ये टिड्डियां देशी किस्म वाली टिड्डियों की तरह नहीं हैं जिसे कीटनाशक दवाईंयों या स्प्रे करके मारा जा सके। दरअसल, इनका फसलों पर हमला करने का तरीका दूसरे कीटनाशकों से अलहदा है।
फसलों को चंद मिनटों में चट करके फिर से आकाश में जाकर मंडराने लगती हैं। एक जगह जमीन पर स्थिर नहीं रहतीं। इनकी हरकतें देखकर सबसे ज्यादा अन्नदाता परेशान हैं। गनीमत समझे कि इस वक्त सब्जियों के अलावा दूसरी प्रमुख फसलें खेतों में नहीं लगी हैं। खुदा-न-खास्ता अगर गेंहू, दाल, धान या पके गन्ने लगे होते तो और तबाही मचातीं। क्योंकि इन टिड्डियों ने ऐसी तबाही फरवरी में गुजरात और राज्स्थान में मचाई हुई है जब इनका हिंदुस्तान में आगमन हुआ ही था। बहरहाल अब जरूरत इस बात की है, किसी भी हाल में इनका आतंक रोका जाए। क्योंकि कुछ दिनों में मानसून दस्तक देने वाला है। उसके बाद किसान अपने खेतों में धान की रोपाई करेंगे। अगर उस वक्त भी टिड्डियों का आतंक यूं ही जारी रहा था, तो धान की फसल चौपट हो सकती है।
कुछ समय से मानवीय जीवन को नई-नई मुसिबतों से सामना करना पड़ रहा है। शायद कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि ऐसा वक्त भी देखने को मिलेगा, जब कीड़े-मकौड़े भी पेरशानी का सबब बन जाएंगे और उनको लेकर सरकारों को हाई अलर्ट तक जारी करना पड़ेगा। कोरोना वायरस ने पहले से बेहाल किया हुआ अब रही सही कसर टिड्डियों ने पूरी कर दी। टिड्डियों ने सबसे ज्यादा मुसिबतें किसानों के सामने खड़ी की हैं। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि विदेशी टिड्डियों से उनका सामना होगा। कोरोना वायरस ने पहले ही तबाही मचाई हुई है। अब टिड्डियां नई मुसीबत का सबब बन गईं हैं। कई राज्यों में खलबली मचाई हुई है। खड़ी फसलों को चौपट कर रही हैं। इस वक्त खेतों में आम, कद्दू, खीरा, खरबूजा, तरबूज, लौकी, करेला व पान की फसलें लगी हैं टिड्डी दल जमकर नुकसान पहुंचा रही हैं। टिड्डियां ने सबसे पहले दस्तक सर्दियों में यानी जनवरी-फरवरी में दी थी।
इन खतरनाक टिड्डियों का आगमन पांच-छह माह पहले सरहद पार पाकिस्तान से हुआ था। वहां से हिंदुस्तान पहुंची हजारों लाखों की तादाद में टिड्डियों ने बड़े पैमाने पर फसलों को बर्बाद करना शुरू कर दिया है। टिड्डियां ने सबसे पहले बॉर्डर से सटे राज्यों राजस्थान, पंजाब और गुजरात में उत्पात मचाना हुआ किया। जहां कई एकड़ फसलों को नुकसान पहुंचाया। इस समस्या को एक तौर पर पाकिस्तान की साजिश भी नहीं कह सकते, क्योंकि वह खुद टिड्डियों से परेशान रह चुका है। अब जाकर उन्होंने राहत की सांस ली है। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों के इलाके में हजारों एकड़ खड़ी फसलों को टिड्डियों ने चैपट करने के बाद हमारे यहां का रूख किया था।
हिंदुस्तान के विभिन्न राज्यों में टिड्डियां का हमला बीते साल दिसंबर से लगातार जारी है। टिड्डियां ने सबसे पहले गुजरात तबाही मचाई। अनुमान के तौर पर सिर्फ दो जिलों के 25 हजार हेक्टेयर की फसल तबाह होने का आंकड़ा राज्य सरकार ने पेश किया है। टिड्डियों के आतंक को देखते हुए गुजरात सरकार ने प्रभावित किसानों को 31 करोड़ रुपये मुआवजे का ऐलान किया है। वैज्ञानिकों की माने तो इस किस्म की टिड्डी पांच महीने तक जीती है। इनके अंडों से दो सप्ताह में बच्चे निकल सकते हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र के उपक्रम फूड एंड एग्रीकल्चर आग्रेनाइजेशन के मुताबिक एक वर्ग किलोमीटर इलाके में आठ करोड़ टिड्डी हो सकती हैं। एक साथ चलने वाला टिड्डियों का एक झुंड एक वर्ग किलोमीटर से लेकर कई हजार वर्ग किलोमीटर तक फैल सकता है। पाकिस्तान से दिसंबर में हिंदुस्तान में जितनी संख्या में टिड्डियां आईं थीं, अब उनसे सौ गुना की वृद्वि हो चुकी है। इनके प्रजनन का सिलसिला लगातार जारी है। केन्या, इथियोपिया और सोमालिया टिड्डियों के आतंक से सबसे ज्यादा आहत हुए। कई सालों तक वहां टिड्डियों का आतंक रहा। इस समय जो टिड्डियां फसलों को बर्बाद कर रही हैं व न पाकिस्तान की जन्मी हैं और न भारत की। अफ्रीका के इथियोपिया, युगांडा, केन्या, दक्षिणी सूडान से निकलकर ओमान होते हुए पाकिस्तान और उसके बाद भारत पहुंची हैं।
नई किस्म ये टिड्डियां कुछ ही घंटों में फसलों को चट कर जाती हैं। ये टिड्डियां छह से आठ सेंटीमीटर आकार की कीड़ानुमा हैं इनकी खासियत यही है ये हमेशा लाखों-हजारों की समूह में उड़ती हैं । टिड्डियों का दल एक साथ खड़ी फसलों पर हमला करता है। पाकिस्तान सरहद से भारत के तीन राज्य राजस्थान, पंजाब और गुजरात की सीमाएं मिलती हैं। इन तीन राज्यों में सर्दियों के वक्त टिड्डियों जमकर कहर बरपाया था। अब ये दूसरे राज्यों में फैल गईं हैं। खेतों में इस वक्त ज्यादातर हरी सब्जियों और फलों की फसलें उगी हुई हैं जिनकी मुलायम पत्तियों को टिड्डियां चबा-चबा कर बर्बाद कर रही हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान इनके आतंक से खासे परेशान हैं। किसान अपने फसलों को बचाने के लिए दिन-रात चैबीस घंटे खेतों की रखवाली कर रहे हैं। टिड्डियों को भगाने के लिए कई देशी और आधुनिक तरीके भी अपना रहे हैं। महिलाएं ढोल और बर्तन लिए खेतों में खड़ी हैं। आवाज से टिड्डियां कुछ समय के लिए तितर-बितर हो जाती हैं, लेकिन जैसे ही आवाज धीमी पड़ती हैं टिड्डियों का झुंड़ फिर से हमलावर होता है। औरैया, इटावा, एटा जिलों में लोग टिड्डियों को भगाने के लिए पानी की बौछारें क रहे हैं। कीटनाशक स्प्रे भी कर रहे हैं। लेकिन टिड्डियां फिर भी नहीं भागती।
फरवरी माह में टिड्डियों के आतंक से पाकिस्तान की भी सांसे फूल गईं थीं। टिड्डियों ने उन्हें इस कदर परेशान कर दिया था जिससे इमरान खान को पाकिस्तान में राष्ट्रीय आपातकाल तक घोषित करना पड़ा था। टिड्डियां नहीं भगाने को लेकर पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने राजनीतिक मुद्दा भी बनाया दिया था। संसद में बहस भी हुई थी। उनके नेता सीधे तौर पर इमरान को टिड्डियों को लेकर कटघरे में खड़ा कर रहे थे। तब विपक्ष ने यह तक कह दिया था कि ऐसी हुकूमत का क्या काम जो कीड़े-मकोड़े तक न भगा पाती हो। तब बकायदा इमरान खान टिड्डियों को लेकर एक एक जांच टीम भी गठित की थी। टिड्डियां कहां से आई इसकी तह तक वह जांच टीम भी नहीं पहुंच पाई। उनके वैज्ञानिकों का बड़ा दल और कृषि मंत्रालय लगातार खोज में लगा रहा, उन्हें भी सफलता नहीं मिली। कमोबेश, वैसी ही स्थिति कुछ हमारे यहां भी बनीं हुई है।
उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकार सबसे ज्यादा परेशान है। परेशान होकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार से इस टिड्डियों से निपटने को लेकर मदद मांगी है। राजस्थान में अभी तक हजारों एकड़ फसलें टिड्डियों के आतंक से चौपट हो चुकी हैं। आकाश में मंडराती टिड्डियां एक साथ फसलों पर हमला करती हैं। उन्हें भगाने के कारण कुछ लोग घायल भी हुए हैं। टिड्डियों ने किसानों पर भी हमला किया है। मधुमक्खी की भांति टिड्डियां इंसानों पर हमलावर हो रही हैं। टिड्डियां इंसानों के सीधे आंखों पर चोट मारती हैं। राजस्थान को पार करके टिड्डियां पंजाब में भी दस्तक दे चुकी हैं। पंजाब में भी टिड्डियों को लेकर सतर्कता बरतनी शुरू हो गई है। खेतों में ढोल-नगाड़ों का इंतजाम किया हुआ है। टिड्डियों के झुंड़ को देखते ही किसान तेजी से ढोल बजाने लगते हैं। ढोल की आवाज सुनकर टिड्डियां भाग जाती हैं।
हमारे यहां बाहरी टिड्डियों का हमला पहले भी होता रहा है। सन् 1993 में भी विदेशी टिड्डियों ने फसलों पर जमकर तबाही मचाई थी। पकी खड़ी गेंहू की फसल को चट कर दिया था। किसानों को समझ में नहीं आया था कि ये टिड्डियां किस किस्म की हैं। तब कई किसानों को भी टिड्डियों ने घायल किया था। लेकिन टिड्डियों का मौजूदा हमला उससे भी बड़ा है, शायद उतना बड़ा जितना 1962 में हुआ था। चीन के साथ जब भारत की जंग छिड़ी थी, तब भी टिड्डियों ने कमोबेश इस तरह ही हमला बोला था। उस वक्त ये लगा था इसमें चीन की हरकत है, लेकिन बाद में पता था टिड्डियां ईराक से आईं थीं। उन टिड्डियों ने चीन में तबाही मचाई थी। फिलहाल केंद्र व राज्य सरकारें इस आफत को गंभीरतासे ले रही हैं। मीटिंगों का दौर जारी है। हल निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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