शाह सतनाम जी धाम सरसा में उमड़ी साध-संगत : बिगड़ा मन गुरु का ना पीर का : पूज्य गुरु जी

शाह सतनाम जी धाम में हुआ नामचर्चा का आयोजन

सरसा। शाह सतनाम जी धाम, सरसा में रविवार को नामचर्चा का आयोजन किया गया। भीषण गर्मी के बावजूद बड़ी संख्या में साध-संगत ने नामचर्चा का लाभ उठाया। इस अवसर बड़ी-बड़ी स्क्रीनों पर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के अनमोल वचन भी चलाए गए। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मन इन्सान के अंदर एक ऐसी नेगेटिव पावर है, जो इन्सान को तिगड़ी नाच नचाती है। इन्सान के अंदर हमेशा दो तरह की पावर चलती हैं। एक पॉजीटिव और दूसरी नेगेटिव। जो नेगेटिव पावर है उसका स्रोत मन है और जो पॉजीटिव पावर देती है उसे आत्मा कहते हैं। हमारे धर्मों में मन की आवाज और आत्मा की आवाज कहा जाता है। मन बड़ी जालिम ताकत है। इन्सान बैठा कहीं और होता है और पल झपकते ही मन कहीं का कहीं ले जाता है। मन का काम इन्सान को भक्ति से दूर करने का होता है।

मन कभी भी इन्सान को ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा-रब्ब की भक्ति में नहीं लगने देता। मन हमेशा जब आप भक्ति पर बैठते हैं तो अजीबोगरीब सोच देना शुरू कर देता है। कई बार आप भक्ति में बैठे हैं और मन आपको पूरी दुनिया में घुमा रहा होता है। आप भक्ति में बैठते हैं तब वो-वो बातें याद आती हैं, जो पहले कभी याद आई ही नहीं। इन्सान अगर बुरे कर्म करता है तो मन खुश होता है और अच्छे कर्म करता है तो मन नाराज होता है और आपको रोकता है। कई लोग सोचते हैं कि आत्मा तो परमात्मा की अंश है वो मन के आगे हार कैसे जाती है? वाकयी आत्मा में जबरदस्त पावर है, मन से करोड़ों गुणा बढ़कर। लेकिन जब भगवान ने ये शरीर बनाया तो काल-महाकाल को यह वचन दिया कि आत्मा अपने पिछले जन्मों का लेखा-जोखा भूल जाएगी और जाहिरा चमत्कार दिखाकर कोई इस कलियुग में आत्मा को परमात्मा से जोड़ेगा नहीं। तो इससे आत्मा की जो शक्ति है वो कम हुई, दूसरे शब्दों में आप मन को खुराक देते रहते हैं, झूठ बोलना, ठग्गी, बेईमानी, भ्रष्टाचार, पाप और अत्याचार करना, यह सब मन की खुराक हैं।

आत्मा की एकमात्र खुराक ईश्वर की भक्ति है जोकि आप करते नहीं। तो मन वैसे भी काल के देश में रहता है, काल का एजेंट है और आप उसे दिन रात खुराक देते चले जाते हैं तो उससे मन और हावी हो रहा है और मन के अधीन जब इन्सान हो जाता है तो वो उसे पलक झपकते ही आसमान में ले जाता है। अभी पलक झपकी नहीं कि पाताल में कब पहुंच गए पता ही नहीं चलता। मन बड़ा जालिम है, जो भी मन के अनुसार चलते हैं, जो भी मन के आगे मजबूर हो जाते हैं वो इन्सान कभी सुखी नहीं रह सकते, हमेशा दु:खी रहते हैं, परेशान रहते हैं। ये सब करवाता मन है और भुगतती आत्मा है। आपके दिलो दिमाग में जो बुरे ख्यालात आते हैं, बुरी सोच आती है, एक तरह से वो आत्मा का घात है। आपको एक उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि एक बुजुर्ग माता थी। उनके पास दो पालतु जीव थे। एक बकरा और एक बंदर। दोनों को बराबर प्यार करती थी। दोनों के लिए भोजन देती थी। इन दोनों में बकरा शांत और बंदर बेइंतहा शैतान था।

एक दिन माता सब्जी वगैरहा काट रही थी। खाने पीने का सामान चारपाई पर रखा हुआ था। अचानक किसी ने संदेश दिया कि आपके यहां मेहमान आने वाले हैं। माता सारा सामान चारपाई पर छोड़कर दुकान पर चली गई। पीछे से बंदर ने देखा कि बड़ा सुनहरी मौका है, माता पहले तो कभी चारपाई पर ऐसे खाने-पीने का सामान नहीं छोड़ती। बंदर ने अपना रस्सा गले से निकाला। और सारा सामान चट कर गया। ऊपर पड़ोसी ये सब देख रहा था। खा-पीकर जब बंदर वापिस जाने लगा तो उसने बकरे का रस्सा गले से निकाल दिया और खुद का गले में पहन लिया। माता बाजार से घर पहुंची तो देखा कि चारपाई तो खाली है और थोड़ी झूठन पड़ी है और बकरा इर्द-गिर्द घुम रहा है। माता ने आव देखा न ताव एक डंडा उठाया और बकरे को पीटना शुरू कर दिया। काफी डंडे पड़े और बंदर ये देख तालियां मार रहा था कि मुझे मजा आ रहा है। तो ऊपर से पड़ोसी ने आवाज दी कि ताई! ये आप क्या कर रही हैं? तो वह कहने लगी कि बेटा मैंने इन्हें पालतू बनाया, कभी भोजन की कमी नहीं आने देती, लेकिन देखो ये बकरा मेरा सारा सामान चट कर गया।

पड़ोसी हंसता हुआ उस माता के पास आया और कहने लगा, ताई! ये कारगुजारी बकरे की नहीं है, वो जो महाश्य ताली बजा रहे हैं ना यानि बंदर, उसने सब किया है। उसने अपना रस्सा गले से निकाला, यहां रखा सामान चट कर गया और जाते-जाते बकरे का रस्सा निकाल गया। तो माता सोचने लगी ओह, काम उसने किया है गलत और डंडे इसके पड़े हैं। इसी तरह गलत करता सब कुछ मन है, लेकिन डंडे आत्मा के पड़ते हैं। हालांकि आत्मा बहुत बलशाली है, पर इन्सान ने खुदमुखत्यारी की वजह से आत्मा को खुराक नहीं दी, वो दब गई और मन की खुराक दिन-रात चुगली, निंदा, काम वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ये सब खुराक मन की हैं, और आप दिन-रात दिये जा रहे हैं। तो मन बलवान है और आत्मा दब गई। कई लोग दिमाग को ही मन कहते हैं।

एक सज्जन मिले, इंग्लिश के ज्ञाता थे, कहने लगे मन का मतलब है माइंड। वाकयी ऐसा लगने लगा है, क्योंकि मन के अधीन हो गए हैं बुद्धि-विवेक। मन के कारण इन्सान कुछ और सोचता ही नहीं, विषय-विकारों में पड़ा रहता है। मन की आवाज सुनता है और ये मन इन्सान के दिमाग में हमेशा गलत विचार भर देता है। कहीं आप अकेले बैठे हैं, कोई आपके पास नहीं, ये मन आपको इस तरह से तिगड़ी नाच नचाएगा कि आपका कितना अकाज हो गया, आप सोच भी नहीं पाएंगे। आप बैठे-बैठे पता नहीं कहां चले गए, किसी के साथ बुरा कर रहे हैं, किसी का बुरा सोच रहे हैं, लैग पुलिंग, चुगली-निंदा, ईर्ष्या आदि ये मन करवाता है और मन के अधीन लोग भगवान को मानना बंद कर देते हैं। मन जब हावी हो जाता है तो ये किसी गुरु, पीर-फकीर की नहीं सुनने देता। बिगड़ा मन गुरु का ना पीर का। जब मन बिगड़ने पर आता है तो किसी गुरु, पीर-फकीर की बात को मानने नहीं देता।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि किसी सज्जन ने लिखा कि मैंने ठान ली कि मैं मन से लड़ूंगा और मैंने सोचा कि भक्ति करूंगा और आप कहते हैं कि जिसको भक्ति का शौक हो वो शाम को रोटी कम खाए। कहने लगा कि मैंने दोपहर को सोचा कि आज शाम को खाना कम खाएंगे। कहने लगा कि मुझे तो भूख उसी वक्त लगनी शुरू हो गई। शाम को खाना बना, रोजाना खाने में मैं मीन-मेख निकाला करता था, खाना स्वाद नहीं, खाना कच्चा है, खाने में नमक नहीं, मिर्ची नहीं। कहने लगा कि उस दिन खाना क्या स्वाद लगा, कहने सुनने से परे। मन कहता कि खाये जा। अंदर से आत्मा की आवाज आई कि तूने वायदा किया है सुमिरन करेंगे। मन कहता कि आज कोई जरूरी है क्या, कल को कर लेंगे, अरे बड़ी मुश्किल से कई दिनों के बाद इतनी स्वादिष्ट सब्जियां बनी हैं। स्वादिष्ट भोजना बना है।

कहने लगा कि पहले मैं दो रोटी खाता था और उस दिन साढ़े तीन खा गया। अब नींद तो नेचुरली आएगी। फिर भी सोच कर लेटा कि भगवान! सुबह दो से पाँच बजे के बीच में उठा देना। मैं सो गया। सुबह तीन बजने में पाँच मिनट थे, मालिक ने रहमत की तो आँख खुल गई। सामने टाईमपीस था, निगाह मारकर देखा कि अभी तो तीन बजने में पाँच मिनट हैं। मन कहता है कि पाँच मिनट बर्बाद मत कर। करवट ली और सो गया और जब सुमिरन के लिए उठा तो सुबह के आठ बज चुके थे। सोचा कि ओह! ये क्या हुआ? कहने लगा कि गुरु जी उस दिन से लगा हूँ मन के साथ कुश्ती लड़ने। कभी मन ऊपर मैं नीचे और कभी मैं नीचे और मन ऊपर यानि दोनों ही हालात में मन ऊपर है। मन आदमी को मालिक की भक्ति नहीं करने देता।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि एक फकीर जंगल में रहा करते थे। रिद्धि-सिद्धि को मानते थे। काफी भक्ति करते थे। एक दिन वो किसी दुकान पर सामान लेने आए। मन से बातें कर रहे थे। मन! तू बड़ा शैतान है। किसी को कभी भी गिरा सकता है। मन कहता हाँ, तो अपने आप मन से बातें करते-करते दुकान पर पहुंच गए। फकीर सामान लेने लगा, दूसरे लोग भी सामान ले रहे थे। फकीर थोड़ा साइड में हो गया कि चलों मैं थोड़ा बाद में सामान लेता हूृँ। फकीर अंदर से मन को कहने लगा, तू बड़ा चालबाज है, बड़े चलित्र दिखाता है, क्या यहां थोड़ा सा चलित्र दिखाएगा? मन कहता अभी लो। मन ने फकीर के दिमाग पर असर किया और उस रिद्धि-सिद्धि के भक्त को पता ही नहीं चला कि कब उसकी अंगुली शहद में गई और दीवार पर खींच दी। अब दीवार पर मक्खियां भिनभिनाने लगीं। मक्खियां भिनभिनाई तो छिपकली दौड़ी चली आई।

जैसे ही छिपकली आई और उसने मक्खियों को लपकना शुरू किया तो दुकानदार की पालतु बिल्ली दूर छिपकली के पास कूद कर पहुंची। इधर एक ग्राहक का शिकारी कुत्ता था और उसने शिकार सामने देख बिल्ली के ऊपर छलांग लगा दी और बिल्ली को चीर फाड़ कर रख दिया। दुकानदार को बहुत गुस्सा आया। वो ग्राहक के साथ लड़ने लगा कि तूने मेरी बिल्ली को मारा। ग्राहक कहने लगा कि मैंने बिल्ली को नहीं मारा बल्कि इस कुत्ते ने मारा है। दुकानदार कहने लगा कि कुत्ता तो तेरा है। तो फिर मेरी बिल्ली को क्यों मारा? ग्राहक कहने लगा कि आपने बिल्ली को संभालकर क्यों नहीं रखा? कुत्ते के सामने छोड़ोगे तो कुत्ता तो बिल्ली को खाएगा ही। दोनों में बहस और जूतमपेल शुरू हो गया। फकीर एक साइड में खड़ा था और अंदर से मन बोला कि इतना ही चलित्र काफी है या थोड़ा बड़ा दिखाऊं। फकीर ने हाथ बांधे कि इतना ही काफी है और नहीं चाहिए। क्योंकि सारा किया धरा तो शहद की अंगुली का था। तो मन दोस्त बनकर धोखा देता है।

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