पद की प्रतिष्ठा बने प्रणब मुखर्जी

माननीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपनी विलक्षण प्रतिभा, निष्पक्षता एवं संवैधानिक कर्त्तव्यों को बखूबी निभाने के लिए याद रखे जाएंगे। कार्याकाल पूरा होने पर प्रणब ने सरकार एवं विपक्ष के विषय में जिस तरह से अपने विचार रखे हैं, वह राजनीतिक, संसदीय व लोकतांत्रिक प्रणाली में उन द्वारा बिताए लम्बे समय एवं गहन अनुभव का प्रमाण हैं।

प्रणब मुखर्जी ने अपनी कांग्रेस पृष्ठभूमि के बावजूद भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के साथ यहां किसी तरह के तनाव बनने की कभी स्थिति पैदा नहीं होने दी, वहीं सरकार को उसके अच्छे-बुरे शासन प्रबंध के प्रति भी प्रशंसा व नसीहतें दी हैं।

प्रणब मुखर्जी एक बेहतरीन स्टेटसमैन के तौर पर जाने जाएंगे, चूंकि उन्होंने कभी अहसास ही नहीं होने दिया कि भारत का राष्ट्रपति महज एक रबड़ की मोहर है। जाते-जाते भी प्रणब जी सरकार को सचेत कर गए हैं कि आर्थिक अध्यादेश एक लोकतांत्रिक देश में सही नहीं है, वहीं विपक्ष को भी चेताया कि जोश की बजाय संयम अच्छा है।

प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में नोटबंदी व जीएसटी जैसे क्रांतिकारी निर्णय हुए जिससे देश की आर्थिक गतिविधियों में काफी उथल-पुथल मची। परंतु सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति से उपरोक्त दोनों निर्णय पूरी तरह से लागू हो चुके हैं।

आतंकवाद जो कभी भारत व इजरायल जैसे देशों की समस्या थी व अब उसका रूप वैश्विक हो चुका है पर भी प्रणब मुखर्जी का रूख कठोर रहा, उन्होंने भारत की न्यायपालिका द्वारा फांसी से दण्डितों की 34 दया अपीलों में से 30 को खारिज किया।

दया अपीलों में कुछ तो खूंखार आतंकियों की भी थी। अजमल कसाब, अफजल गुरू, याकूब मेनन जैसे आतंकी प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में ही फांसी पर लटकाए गए। नि:संदेह प्रणब मुखर्जी के विचार एवं शासन कला भावी राजनीतिज्ञों के लिए एक उच्च कोटि की मार्गदर्शक साबित होंगी।

भावी राष्ट्रपतियों के लिए भी प्रणब मुखर्जी ने एक अलिखित आचरण संहिता को छोड़ा है। भारतीय लोकतंत्र में अनेका-नेक राजनीतिक मतभिन्नताएं हैं, परंतु प्रणब मुखर्जी ने फिर भी इस देश की संसदीय व्यवस्था में बेमिसाल शासन प्रबंध दिया। निश्चित ही प्रणब मुखर्जी ने देश के सर्वोच्चय पद की गरिमा को बढ़ाया है, जोकि नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के लिए भी प्रेरणादायी रहेगी।

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