नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को प्रिवेंशन आॅफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने वाला फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर , न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने इस कानून को चुनौती देने वाली 241 याचिकाओं की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने आरोपी की गिरफ्तारी, तलाशी, कुर्की जब्ती अधिकार समेत कई प्रावधानों को उचित ठहराया है। पीठ ने हालांकि, कहा कि वर्ष 2019 में संसद द्वारा पीएमएलए में संशोधन को (धन विधेयक के रूप में लागू करने को चुनौती देने के मामले में ) सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना है। यह मामला पहले ही उस पीठ के समक्ष लंबित है।
भारत में मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित कानून
भारत में मनी लॉन्ड्रिंग का चर्चा में आना लोकप्रिय ‘हवाला लेनदेन’ के रूप में जाना जाता है। भारत में यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय 1990 के दशक के दौरान हुआ था जब इसमें कई नेताओं के नाम उजागर हुए थे। भारत में मनी लॉन्ड्रिंग कानून, 2002 में अधिनियमित किया गया था, लेकिन इसमें 3 बार संशोधन (2005, 2009 और 2012) किया जा चुका है। 2012 के आखिरी संशोधन को जनवरी 3, 2013 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली थी और यह कानून 15 फरवरी से ही लागू हो गया था। पीएमएलए (संशोधन) अधिनियम, 2012 ने अपराधों की सूची में धन को छुपाना , अधिग्रहण कब्ज़ा और धन का क्रिमिनल कामों में उपयोग इत्यादि को शामिल किया है।
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