साढ़ूपुर नरसंहार में 42 साल बाद दोषी को आजीवन कारावास

Shikohabad News
घरों में घुसकर एससी वर्ग के 10 लोगों की गोली मार कर की गई थी हत्या

घरों में घुसकर एससी वर्ग के 10 लोगों की गोली मार कर की गई थी हत्या

  • 10 के विरुद्ध लगाई गई थी चार्जशीट, नौ आरोपितों की पहले हो चुकी है मृत्यु

शिकोहाबाद (सच कहूँ न्यूज)। 42 वर्ष पूर्व देशभर में सनसनी फैलाने वाले साढ़ूपुर नरसंहार में कोर्ट का निर्णय बुधवार को आया। एससी (SC) वर्ग के घरों में घुसकर ताबड़तोड़ फायरिंग कर 10 लोगों की हत्या करने के वाले को जिला एवं सत्र न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अन्य आरोपितों की पहले ही मृत्यु हो चुकी है। सजा पाने वाला भी वृद्ध है। पुलिसकर्मी उसे सहारा देकर कोर्ट से वैन तक ले गए।

30 दिसंबर 1981 की शाम 6.30 बजे मक्खनपुर रेलवे स्टेशन (Makkhanpur Railway Station) के निकट गांव साढ़ूपुर में जो हुआ। उससे पूरा देश हिल गया। अचानक आए दूसरे समुदाय के हमलावरों ने एससी वर्ग के लोगों को निशाना बनाकर ताबड़तोड़ फायरिंग की। जिससे चमेली, प्रेम सिंह, बैकुंठी, सुख देवी, कैलाश, शालू उर्फ हरिशंकर, शगुना देवी, सुरेश, पार्वती और शीला की मौत हो गई। वहीं प्रेमवती और सोमवती घायल हो गई थीं। मरने वालों में आठ साल के बच्चे से लेकर 60 साल के वृद्ध भी शामिल थे। मक्खनपुर के सहायक स्टेशन मास्टर की सूचना के आधार पर शिकोहाबाद रेलवे स्टेशन के तत्कालीन लिपिक डीसी गौतम ने टेलीफोन पर शिकोहाबाद पुलिस को दी थी। एएसएम को ये सूचना साढ़ूपुर के तत्कालीन प्रधान मुनी चंद्र ने दी थी।

क्लर्क की सूचना पर ही पुलिस (Police) ने इस मामले में अनार सिंह यादव, गंगा दयाल यादव निवासी गढ़ी दानसहाय और जयपाल निवासी गलामई के विरुद्ध हत्या और जानलेवा हमले की प्राथमिकी दर्ज कर ली। विवेचना में सात नाम और प्रकाश में आए। मुकदमे के दौरान अनार सिंह और जयपाल सहित नौ आरोपितों की मृत्यु हो गई थी। वहीं गंगा दयाल को जिला जज हरवीर सिंह ने दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई। नरसंहार के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्व नाथ प्रताप सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और मुलायम सिंह सहित देश और प्रदेश के कई नेता साढ़ूपुर पहुंचे थे।

ग्रामीणों का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) आई थीं, लेकिन उनका हैलीकाप्टर नहीं उतर पाया था। शासन की ओर से मामले की पैरवी कर रहे जिला शासकीय अधिवक्ता क्राइम राजीव प्रियदर्शी ने बताया कि जिस समय घटना हुई उस समय फिरोजाबाद जिला नहीं बना था। इसलिए मामले की सुनवाई पहले मैनपुरी में हुई। बाद में फाइल यहां आई। फाइल इतनी पुरानी हो गई थी कि पन्ने पलटते ही फट जाते थे। कोर्ट ने 55 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है।

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