महंगाई की मार झेल रहे मिट्टी के मटके

Earthen Pots sachkahoon

सच कहूँ/सुभाष, ऐलनाबाद। गर्मी का सीजन आते ही तापमान में बढ़ोतरी होने के साथ लोग अब ठंडा पानी पीने लगे हैं। जिस कारण ठंडे पानी के लिए मिट्टी के मटकों (Earthen Pots) की डिमांड भी बढ़ने लगी हैं। इस बार मटकों के दाम में बढ़ोत्तरी भी देखने को मिल रही है। पिछले साल जो मटका 50 रुपए का आम लोगों को नसीब हो रहा था। वही मटका अब 90 रुपए तक मिल रहा है।

शहर के वार्ड नंबर 6 व वार्ड नंबर 3 कुम्हारों का मोहल्ला में मिट्टी के मटके बिक रहे हैं। आम लोग भी पिछले 2 वर्षों से कोरोना की मार को देखते हुए पीने के लिए घड़े का पानी काफी पसंद कर रहे है। वहीं चिकित्सक भी मटके के पानी को काफी फायदेमंद बता रहे है। मटका खरीददार सोहन लाल सोनी व आशा रानी ने बताया कि पिछले सीजन में जो मटका हमने 50 रुपए का खरीदा था, वहीं अब 90 रुपए का मिल रहा है।

मिट्टी न मिलने से तेल के दाम बढ़ने से बढ़े मटकों के दाम

मटका विक्रेता राम चन्द्र कुम्हार का कहना है कि अब हमारा यह व्यवसाय ना के बराबर रह गया है। हमारे समाज के लोग इस व्यवसाय से धीरे-धीरे किनारा कर रहे हैं। पहले मटके (Earthen Pots) बनाने के लिए जो मिट्टी हमें आसानी से मिल जाया करती थी। अब उसी मिट्टी को लाने में हमें भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जिस कारण हमारी मेहनत भी बढ़ गई है। मिट्टी की कमी और इसे बर्तन लायक बनाने में काफी कठिन प्रक्रिया होती है।

साथ ही मिट्टी लाने वाले परिवहन का भी खर्च बढ़ा है। जिसका असर मिट्टी के घड़ों पर दिख रहा है। उन्होंने कहा कि शहर में मिट्टी के बर्तन बनाने का काम काफी कम हो गया है। वहीं मुखराम कुम्हार का कहना है कि कोरोना काल में महंगाई में बढ़ोतरी हुई है। मटकों को बेचने के लिए हमें शहर से गांव की तरफ भी जाना पड़ता है। डीजल-पेट्रोल के दामों में बढ़ोत्तरी की मार हर तरफ दिखाई दे रही है। उन्होंने बताया कि घड़ा बनाने वाली काली चिकनी मिट्टी भी अब महंगी हो गई है। एक साल पहले 1000 रुपए में मिलने वाली एक ट्रॉली मिट्टी अब 1300 से 1500 रुपए में मिल रही है।

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