अगर आप इन वचनों पर अमल कर लो आपको मिलेगी दोनों जहाँ की खुशी

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ऑनलाइन गुरुकुल के माध्यम से साध-संगत को दर्शन दिए। रूहानी सत्संग में पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कई बार लोग ये भी पूछते हैं मेडिटेशन क्या है। मेडिटेशन-ध्यान, ध्यान कौन सा ध्यान? आप कहते हैं ना मैं घर से बाहर जा रहा हूँ मां घर का ध्यान रखना, भाईसाहब घर का ध्यान रखना। आप खेतों में काम धंधा करते हैं तो समझदार बंदा जानकर बंदा ध्यान से करना ये काम, दुकान में काम करते हैं तो आप कहते हैं कि ये काँच का सामान है इसको आराम से रखना, ध्यान रखना। ये ध्यान शब्द तो जगह-जगह इस्तेमाल आता है।

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लेकिन मेडिटेशन कौन सा ध्यान अपने इन सारे ध्यानों को एक जगह एकत्रित करना है। आपके विचार, बैठे यहां हो विचार खेतों में, घर में, परिवार में, बच्चों में और-और जगहों पर चला जाता है। तो उस ध्यान को एकत्रित करना ही मेडिटेशन कहते हैं। ध्यान एकाग्र हो जाएगा, जी हां! हो जाता है कैसे आप अपनी दोनों आंखों के बीच नाक के ऊपर ललाट माथे की ये जगह जिसे दसवां द्वार कहा जाता है। तीसरी आंख यानी दसवां दरवाजा, दो आँखें हैं तीसरी नेचुरली …बंद है नौ दरवाजे खुले हैं, बाहर से जो दिखते हैं दो कान, दो आंख, दो नाक, एक मुंह और दो इंन्द्रियां। ये खुले दिखते हैं बॉडी के दरवाजे हैं लेकिन ये दसवां बंद है।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आपने करना क्या है। आंखें बंद करनी है, गुरुमंत्र भगवान के वो शब्द जो गुरु ने प्रैक्टिकल करके देखे हों उसे कहते है गुरुमंत्र या नाम-शब्द, या कलमा, मैथड ऑफ मेडिटेशन वो लेकर ध्यान को यहां लगाएं और फिर अभ्यास करें। पहले जीभा से फिर ख्यालों से, अगर आपका ध्यान भटक रहा है तो एकांत में जाइए, कमरा बंद कीजिए और उसमें थोड़ा सा बोलके ऊंची आवाज में जाप कीजिए। इससे क्या होगा जब आप जीभा से करते हैं, दिमाग और जीभा, जब आप ध्यान से करते हैं दिमाग और जब बोलके करोगे तो आपकी सारी ज्ञानेन्द्रियां बिजी हो जाएंगी। आपकी बोलने की शक्ति, सुनने की शक्ति, देखने की शक्ति, सूंघने की शक्ति, स्पर्श क्योंकि जीभा से बोल रहे हैं तो स्पर्श हो रहा है, आप हाथ जोड़े हैं तो स्पर्श हो रहा है तो इस तरह दिमाग सुन रहा है। सारी शक्तियों को एक ही शब्द सुनाएंगे तो उनको आखिर हार मानके बाकी तरफ से ध्यान हटाके दोनों आंखों के बीच ध्यान लगाना पड़ेगा और ये ही मेडिटेशन है जो भगवान तक लेकर जाता है।

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