जसपाल के जज्बे के आगे दिव्यांगता भी हुई ‘नतमस्तक’

Jaspal sachkahoon

दोनों हाथ नहीं फिर भी किसी सहारे का मोहताज नहीं : जसपाल

  • करीब 17 वर्ष पूर्व एक हादसे में गंवा दिए थे दोनों हाथ

सच कहूँ/राजू, ओढां। कई बार जिंदगी में ऐसे मुकाम आ जाते हैं, जिससे जिंदगी नीरस लगने लगती है। हारा हुआ इंसान मन में गलत कदम उठाने की सोच लेता है। लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो विकट परिस्थितियों में भी न केवल हौंसला नहीं खोते अपितु निराश लोगों में भी आशा की किरण जगा देते हैं। इसका एक उदाहरण ओढां खंड के गांव मलिकपुरा में जसपाल इन्सां के रू प में देखा जा सकता है। इस इंसान के आत्मविश्वास एवं हौंसले के समक्ष दिव्यांगता भी नतमस्तक हो गई। उक्त व्यक्ति से जब ‘सच-कहूँ’ संवाददाता राजू ओढां ने बातचीत की तो उसने हादसे से लेकर अब तक की पूरी दास्तां बयां कर दी। करीब 40 वर्षीय जसपाल इन्सां ने बताया कि उनका लोहे व बैल्डिंग का कार्य है। वर्ष 2004 में उसे बिजली का करंट लग गया था। इस हादसे के बाद उसकी जान तो बच गई, लेकिन उसके दोनों हाथ कोहनी तक काटने पड़े। जसपाल ने बताया कि इस हादसे ने उसकी जिंदगी को एक तरह से खत्म कर दिया था। वह बूरी तरह से टूट चुका था।

Jaspal sachkahoon

पूज्य गुरु के वचन बने मार्गदर्शक

जसपाल ने बताया कि दोनों हाथ गंवाने के बाद उसे ये लगने लगा था कि अब जिंदगी कैसे कटेगी। इसी बीच उसने अपने गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के वचन सुने कि चाहे परिस्थितियों कितनी भी विकट हों हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। अपने गुरु के यही वचन उसके मार्गदर्शक बने और उसने ये प्रण कर लिया कि वह अपनी दिव्यांगता को खुद पर हावी नहीं होने देगा। जसपाल के आत्मविश्वास और हौंसले के आगे फिर उसकी दिव्यांगता भी नतमस्तक नजर आई। जसपाल ने कहा कि उसे गर्व है कि वह डेरा सच्चा सौदा का अनुयायी।

किसी सहारे का मोहताज नहीं जसपाल

जसपाल के दोनों हाथ कोहनी तक कटे होने के बावजूद भी वह किसी सहारे का मोहताज नहीं है। कस्सी से कार्य करने के अलावा रोजमर्रा के लगभग सभी कार्य ही नहीं करता अपितु रंग-रोगन भी कर लेता है। जसपाल अपने पिता खेता सिंह इन्सां द्वारा बनाए गए लोहे के दरवाजे व अन्य यंत्रों पर कृत्रिम हाथोंं से रंग-रोगन करता है। उसकी कला व आत्मविश्वास पर सभी लोग उसकी प्रशंसा किए बगैर नहीं रहते। जसपाल खाना खाने, कपड़े बदलने के अलावा कृत्रिम हाथ से सुंदर लिखाई करने सहित रोजमर्रा के तकरीबन सभी कार्य बिना किसी सहारे के कर लेता है।

सच-कहूँ का सच्चा सिपाही है जसपाल

जसपाल इन्सां सच-कहूँ का एक सच्चा सिपाही है। अपने गांव मलिकपुरा में वह पिछले कई 10 वर्षों से लगातार सच-कहूँ का घर-घर वितरण कर रहा है। सुनने में भले ही ये कुछ अटपटा लग रहा होगा, लेकिन ये बिल्कुल सत्य है। जसपाल ने बताया कि वह सुबह 5 बजे उठकर नारा लगाकर गले में थैला टांगकर पैदल ही घर-घर सच-कहूँ वितरण की सेवा करता है। जसपाल अपने मुंह के जरिए थैले से अखबार निकालता है और फिर उसे पाठक को आदर सहित दे देता है। इस कार्य में जसपाल करीब एक घंटा लगाता है। जसपाल ने बताया कि ये सब पूज्य गुरु जी की रहमत व अशीर्वाद से संभव हो रहा है।

सेवा कार्यांे में लेता है बढ़-चढ़कर भाग

जसपाल इन्सां अपने घर के कार्य के अलावा सेवा कार्यों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेता है। गांव नुहियांवाली के साध-बेला धाम आश्रम में निर्माण कार्य के दौरान जसपाल ने करीब एक माह तक लगातार सेवा कार्य किया था। जिसमें कस्सी के कार्य से लेकर रंग-रोगन तक का कार्य शामिल था। इसके अलावा भी जसपाल को जब किसी भी जगह सेवा की सूचना मिलती है तो वह तुरंत वहां पहुंच जाता है। दोनों हाथ न होने के बावजूद भी जसपाल एक सामान्य व्यक्ति जितना कार्य कर लेता है। नामचर्चा में जसपाल का कहना है कि अब उसे जिंदगी से कोई गिला नहीं है।

‘‘मैं हौंसला खो चुके उन लोगों से आह्वान करता हूँ कि जिंदगी में सु:ख-दु:ख व विकट परिस्थितियां आती-जाती रहती हैं, लेकिन अगर आपके पास आत्मविश्वास व हौंसला है तो सब-कुछ संभव है। जिंदगी को जीने का ढंग बदलने की आवश्यकता है। हादसे के बाद एक बार तो मुझे भी जिंदगी बोझ लगी, लेकिन अब मुझे जिंदगी से कोई गिला नहीं है।

जसपाल इन्सां।

‘‘जसपाल ब्लॉक का कर्मठ सेवादार है। उसके सेवा के जज्बे व आत्मविश्वास को मैं सलाम करता हूं। नुहियांवाली में सेवा कार्य के दौरान मैंने उसका जज्बा देखा था। जसपाल उन लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है जो दिव्यांगता के आगे घुटने टेक देते हैं। हमारी ब्लॉक कमेटी को जसपाल जैसे सेवादार पर गर्व है।

केवल कृष्ण इन्सां, ब्लॉक भंगीदास (दारेवाला)।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।