अफगानिस्तान में भारत को मजबूत बनना होगा

Afghan Government

अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद पाकिस्तान द्वारा इस देश में अपने पैर जमाने की लगातार कोशिशें की जा रही हैं। तालिबान सरकार को मान्यता देने के साथ ही अफगानिस्तान में 4 करोड़ जनता की मदद के नाम पर पाकिस्तान यहां बड़ी भूमिका निभाने के लिए धर्म का इस्तेमाल भी कर रहा है। पाकिस्तान ने रविवार को इस्लामाबाद में आॅर्गेनाईजेशन आॅफ इस्लामिक कॉरपोरशन (ओआईसी) सम्मेलन करवाकर अफगानिस्तान की मौजूदा परिस्थितियों की दुहाई दी है लेकिन भारत के लिए राहत की बात यह है कि अफगानिस्तान के पूर्व राष्टÑपति हामिद कर्जाई ने ही सम्मेलन में पाकिस्तान के पैर तक नहीं लगने दिए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पूर्व अफगानी सरकारों को भी भ्रष्ट सरकारें कहकर तालिबानियों की अप्रत्यक्ष तौर पर प्रशंसा की है। दरअसल पाकिस्तान मुस्लमान देशों के विदेश मंत्रियों की मौजूदगी में अफगानिस्तान के मुद्दे पर न सिर्फ अपनी वाहवाही और ठेकेदारी लेना चाहता है बल्कि भारत को इस अफगानिस्तान से बाहर रखने के लिए प्रयासरत है।

वहीं दूसरी तरफ उसी दिन भारत में भी मध्य एशिया के देशों का सम्मेलन हुआ, जिसमें अफगानिस्तान में पैदा हुई अशांति के संदर्भ में भारत और मध्य एशिया के देशों के आपसी संबंधों पर व्यापारिक गतिविधियों पर चर्चा की गई। दरअसल इस सम्मेलन में भारत ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि भारत और मध्य एशिया के देशों के दरमियान व्यापार और अन्य गतिविधियों के लिए अफगानिस्तान में अमन-शांति होना बेहद आवश्यक है। इसके साथ ही अफगानिस्तान की धरती को किसी देश के खिलाफ दहशतगर्दी कार्रवाईयों के लिए न इस्तेमाल करने पर भी जोर दिया गया। नई दिल्ली में हुए सम्मेलन में कजाखिस्तान-तजाकिस्तान सहित पांच मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों की मौजूदगी भारत का पक्ष मजबूत करती है।

यह पांच देश ओआईसी के सदस्य हैं। ईरान की चाहबहार बंदरगाह के विकास संबंधी मध्य एशियाई देशों की दिलचस्पी भी भारत के लिए फायदेमंद साबित होगी। राहत की बात यह है कि भारत ने बिना धार्मिक पत्ते का इस्तेमाल किए मध्य एशियाई देशों के साथ एकजुटता की कूटनीति अपनाकर अफगानिस्तान पर अपना पक्ष स्पष्ट और मजबूत किया है। भारत ने पाकिस्तान की तरह तालिबानों के कसीदे पढ़ने पर भी संकोच किया है व वहां अमन-शांति की बात कही जो अपने-आप में अफगान जनता की बेहतरी के लिए है। अफगानिस्तान में किसी भी अच्छे बदलाव के लिए वहां अमन-शांति का कायम होना सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारत को अपनी विचारधारा और अंतरराष्टÑीय आवश्यकताओं के संबंध में लगातार प्रयास करते रहना चाहिए।

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