लम्पी रोग: सावधानी और सतर्कता बेहद जरूरी: डॉ. महावीर चौधरी

सरसा (सच कहूँ न्यूज)। गौवंश में फैल रही लंपी बीमारी का प्रकोप जिला सरसा में देखा जा रहा है। लंपी बीमारी से निढाल होने वाले पशुओं की स्थिति हरियाणा राज्य में काफी गंभीर बनी हुई है। और ऐसे में ये बीमारी हरियाणा की सीमाओं को पार कर जिला सरसा के विभिन्न गांवों में बनी गौशालाओं में भी प्रवेश कर गई है। आपको बता दें कि लम्पी स्किन रोग के बारे में किसानों और पशुपालकों में जागरूकता फैलाने के लिए पशुपालन विज्ञान केंद्र द्वारा अगस्त और सितंबर महीने में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। जिसमें सिरसा के विभिन्न गांवों में जाकर डॉ. महावीर चौधरी, पशुपालन विशेषज्ञ पशुपालकों को लम्पी रोग के बचाव व रोकथाम की जानकारी देंगे। पशु विशेषज्ञ ने कहा कि पशुओं में फैल रही लम्पी बीमारी को लेकर पशुपालकों को सावधानी और सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है।

रोग का परिचय: लम्पी स्किन रोग मुख्य रूप से गौवंशीय पशुओं में फैलने वाला एक विषाणु जनित एवं संक्रामक रोग है। संक्रमण के 4-14 दिनों के भीतर पशुओं में इस बीमारी के लक्षण देखे जाते हैं। इस रोग में मृत्युदर कम होती है।

रोग के लक्षण: इस रोग में पशु को तेज बुखार, नाक व मुँह से पानी का गिरना, भूख नहीं लगना, दूध में कमी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। पशु की त्वचा पर मोटी-मोटी गांठें हो जाती हैं, जो फूटने पर घाव में बदल जाती हैं।

बीमारी का फैलाव: इस बीमारी का फैलाव मुख्य तौर पर मक्खी, मच्छर, जूं, चीचड़ आदि के माध्यम से होता है। बीमार पशु की लार, दूषित चारा व पानी से भी फैल सकता है। रोगी पशु का रखरखाव एवं उपचार करने वाला व्यक्ति भी रोग फैला सकता है।

बीमारी आने पर पशुपालक इन बातों को रखें ध्यान

1. जिस पशु में रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई दें उस पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें।
2. घाव के उपचार के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
3. स्वस्थ पशुओं के दैनिक कार्य करने के बाद ही रोगी पशुओं के दैनिक कार्य करें।
4. पशुओं में रोग का फैलाव मक्खी-मच्छरों एवं चीचड़ों के जरिये होता है। इसलिए उनके उन्मूलन के तरीके अपनाएं।
5. पशु बाड़े में नियमित रूप से साफ-सफाई रखें।
6. पशु बाड़े में हवा-रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था रखें।
7. पशु बाड़े के आसपास पानी एकत्रित ना होने दें। गड्ढ़ों को मिट्टी से भर दें।
8. प्रभावित क्षेत्र से पशुओं की आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दें। यह बीमारी के फैलाव को रोकने में मदद करेगा।
9. नियमित अंतराल पर पशुशाला का विसंक्रमण करते रहें।
10. प्रभावित पशुबाड़े के आसपास के बाड़ों के स्वस्थ पशुओं पर भी बाह्य परजीवियों की रोकथाम के उपाय करें।
11. बीमारी के प्रकोप के समय पशुओं की खरीद फरोख्त से बचें।

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