…त्याग की ऐसी और कोई मिसाल गूगल पर भी न मिली!

Haryana Flood

Shah Satnam Ji Green S Welfare Force : प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बचाव राहत कार्यों में जुटे कई लोग नजर आते हैं। कोई अपनी कानूनी ड्यूटी निभाता है तो कोई अपनी आजीविका के लिए निकलता है। परंतु इस माहौल में वे लोग भी हैं जो न तो तनख्वाह लेते हैं और न ही उनकी कोई सरकारी ड्यूटी है और न ही वे किसी की मदद के सहारे आगे आते है। यह लोग सिर्फ और सिर्फ दूसरों की भलाई के लिए ही अपने कामकाज छोड़कर और अपनी जान का जोखिम उठाने के लिए तैयार रहते हैं। यह दृश्य पंजाब-हरियाणा में घग्गर में आई बाढ़ (Haryana Flood) के दौरान भी देखा गया।

इन परोपकारी लोगों के आने की एक ही वजह स्वैच्छा हैं। यह स्वैच्छा के साथ पानी से घिरे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे हैं, पीड़ितों को भोजन और पशुओं के लिए चारा पहुंचा रहे हैं। 5-10 फुट गहरे पानी में वह उतर जाते हैं और यह लोग यह भी लिखकर देते हैं कि मानवता भलाई कार्यों में हमारी जान भी चली जाए तो इसकी जिम्मेवारी हमारी अपनी है। यह भी अजूबा है कि इन लोगों के पास अपना स्वयं का ही खाना-पीना और यातायात के अपने ही साधन हैं। यह किसी से पानी भी नहीं मांगकर पीते और दूसरों को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए रौद्र बनी नदी में भी उतर जाते हैं।

खुद का खर्चा करके पहुंचते हैं और किसी पर बोझ बने बिना दूसरों की भलाई के लिए जुट जाते हैं। त्याग की ऐसी कोई और मिसाल ढूंढनी बेहद कठिन है। सिर्फ तस्वीर खिंचवा कर घरों को चले जाना इनकी फितरत में नहीं। आमतौर पर नाले, माइनर का पानी किसी से संभाला नहीं जाता और यह नदियों के साथ नाता जोड़ लेते हैं। ये धन्य कहलाने के काबिल शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग के मैंबर जिनके दिलों में मानवता की सेवा के लिए स्वैच्छा पैदा की है सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल रुहानी रहबर पूज्य संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने। Haryana Flood

पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणा से इन सेवादारों ने तो 2004 में अंडमान निकोबार टापुओं जैसे अनजान क्षेत्रों, सूनामी के समय बेमिसाल सेवा की थी। रक्तदान करना तो इनके लिए बांए हाथ का काम है। जो पानी ट्रक जैसे बड़े वाहनों को एक खिलौने की तरह बहाकर ले जाए, उस पानी के खतरनाक बहाव में उतरकर किसी की जान बचाना, बहाव को रोकना, नदियों को नकेल डालने जैसा होता है। यह असंभव और बड़ा कार्य किसी रुहानी प्रेरणा, दृढ़ इच्छाशक्ति, समर्पण और त्याग की भावना से ही संभव है।
संपादक

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