बचपन

मैं बचपन को बुला रही थी
बोल उठी बिटिया मेरी,
नंदन-वन सी फल उठी वह
छोटी-सी कुटिया मेरी।
‘माँ ओ’ कहकर बुला रही थी
मिट्टी खाकर आई थी,
कुछ मुँह में, कुछ लिए हाथ में
मुझे खिलाने लाई थी।
मैंने पूछा-यह क्या लाई?
बोल उठी वह-‘माँ काओ’,
फूल-फूल मैं उठी खुशी से
मैंने कहा-‘तुम्हीं खाओ।’
-सुभद्राकुमारी चौहान

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