बरकरार रही एग्जिट पोल्स की साख

The reputation of the remaining exit polls

एग्जिट पोल्स की भविष्यवाणी इस बार तकरीबन सटीक साबित हुई। कांग्रेस पार्टी की भांति उन्हें भी संजीवनी और जीवनदान मिल गया। क्योंकि विगत कुछ सालों से एग्जिट पोल की विश्वसनीसता पूरी तरह से धूमिल हो गई थी। क्योंकि हर बार अपने रूझानों के लिए मुंह की खा रहे थे। लेकिन मौजूदा पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर दिए अपने आंकलनों पर खरे उतरे हैं। लेकिन, हां अगर इस बार भी उनके आंकलन सही साबित नहीं होते तो उनपर भविष्य में कोई विश्वास नहीं करता। कमोबेश एग्जिट पोल्स की स्थिति कुछ कांग्रेस की ही तरह हो गई थी। जनता न कांग्रेस को तवज्जों दे रही थी और न ही एग्जिट पोल को। लेकिन परिणाम आने के बाद आवाम की मनोसोच दोनों के प्रति बदल गई है। देश को अब दोनों भाने लगे हैं। कांग्रेस भी अच्छी लग रही है और एग्जिट पोल भी मोहने लगे हैं। बौरतलब है कि विगत सप्ताह संपन्न हुए पांच विधानसभाओं के चुनाव के तुरंत बाद अपने आदत से मजबूर खबरिया चैनलों ने एग्जिट पोलों की एक साथ बौछार कर दी। इस बार ज्यादातर चैनलों के आंकलन विपक्षी पार्टी यानी कांग्रेस की तरफ दशार्एं थे, जबकि सत्ताधारी पार्टी को पिछड़ता दिखाया था। परिणाम के एक दिन पहले ही एग्जिट पोल ने दोनों प्रमुख सियासी दलों की धड़कने बढ़ा दी थी। हालांकि कांग्रेस एग्जिट पोल के मुताबिक उनके रूझानों पर ही जश्न मनाने में लग गई थी। तो वहीं भाजपा नेताओं के मांथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं थी। एग्जिट पोल्स को देखकर भाजपा में खलबली मच गई और वरिष्ठ नेताओं के बीच मनन-मंथन का दौर शुरू हो गया। क्योंकि भाजपा इन चुनाव को ही आगामी लोकसभा चुनाव का सेमीफाइन मानकर चल रही थी। क्योंकि उनकी तैयारियां लोकसभा को ध्यान में रखकर की थी।

हांलाकि भाजपा को पूरा विश्वास था कि एग्जिट पोल पूर्व की तरह झूठे ही साबित होंगे और रूझान उनके मुताबिक होंगे। लेकिन हुआ उलटा। एग्जिट पोल इस बार सही साबित हुए। ये सच है कि इस बार एग्जिट पोल को गंभीरता से कोई नहीं ले रहा था। यही वजह थी कि एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पूरी तरह से दांव पर लगी थी। क्योंकि अगर इस बार भी बेअसर साबित होते तो इनसे आमजन का विश्वास लगभग खत्म हो जाता। दरअसल पूर्व के कई एग्जिट पोल हवा-हवाई साबित हुए हैं। तीन साल पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम में सभी चैनल मुंह की खा चुके हैं।

उस वक्त सभी चैनलों के एग्जिट झूठे साबित हुए थे। दरअसल विगत कुछ बर्षों से एग्जिट पोलों की साख पर सवाल खड़े होने लगे थे। क्योंकि चैनलों का अतित्साह होना और जल्दबाजी के चलते पिछले कुछ सालों से इन एग्जिट पोलों की ही पोल खुल चुकी थी। मालूम हो जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हुए, तो अधिकतर चैनलों ने भाजपा को जीतता हुआ दशार्या था। लेकिन रिजल्ट आने के बाद पता चला की जिसकी सरकार बना रहे थे वह सिर्फ तीन ही सीटों पर सिमट गई। खैर, अतीत को ध्यान में न रखकर खबरिया चैनलों ने इस बार अपनी इज्जत बचा ली। अपने पर लोगों का विश्वास कायम रखा। कांग्रेस के अलावा इस बार किसी भी चैनल ने अपने एग्जिट पोलों में दूसरी पार्टियों को आसपास भी नहीं ठहरने दिया। सभी चैनलों ने भाजपा को बेदखल कर दिया था। राजस्थान में भाजपा एक तिहाई सीट आने का दावा कर रही थी, लेकिन चैनलों ने उन्हें पहले ही हारता हुआ दिखा था। राजनीतिक पंडितों का तो साफ कहना था कि अगर भाजपा हारेगी तो उसका मुख्य कारण राममंदिर पर जनता से वादाखिलाफी माना जाएगा। और हुआ भी कुछ वैसा ही।

दरअसल मौजूदा पांच विधानसभाओं के इलेक्शन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्र व राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था। इन्हें जीतने के लिए सत्ताधारी पार्टी ने अपनी पूरी मशीनरी लगा रखी थी। पूरी ताकत झोंक दी थी। लेकिन परिणाम से पूर्व ही एग्जिट पोल्स ने उन्हें परेशानी में डाल दिया। हालांकि भाजपा एग्जिट पोल पर भरोषा नहीं कर रही थी। लेकिन जब परिणाम आया तो खबरिया चैनलों के रूझानों पर मुहर लग गई। ये सच है अगर परिणाम एग्जिट पोलों से विपरित होते तो चैनलों की विश्वसनीसता खतरे में पड़ जाती। क्योंकि इसके बाद भविष्य में कोई भी एग्जिट पोलों पर विश्वास नहीं करता।

देखा जाए तो एग्जिट पोल्स ने चुनाव परिणामों का क्रेज खत्म कर दिया है। एक जमाना था लोग परिणाम की तारीख का इंतजार करते थे। लेकिन एग्जिट पोल पहले ही खलल डाल देते हैं। दरअसल हमारे लिए एग्जिट पोल्स की सच्चाई को जानना बहुत जरूरी होता है। एग्जिट पोल्स महज अनुमान भर होते हैं। रिसर्च और सर्वे एजेंसियों के साथ मिलकर न्यूज चैनलों द्वारा जारी होने वाला एग्जिट पोल मतदान केंद्रों में पहुंचने वाले मतदाताओं और मतदान संपन्न होने के बाद के अनुमानों पर आधारित होता है। एग्जिट पोल के नतीजों से सिर्फ चुनावों की हवा का रुख पकड़ में आता है। एग्जिट स्थिति नहीं।

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