“Interview with सच कहूँ” – अयोध्या मामला : वक्त मंदिर-मस्जिद से आगे सोचने का है: इकबाल अंसारी

time has come to think beyond RamMandir Maszid says Iqbal Ansa

हिंदुस्तान के सबसे नासूर मसले का फिलहाल (time has come to think beyond RamMandir Maszid says Iqbal Ansari) पटाक्षेप हो गया है। लेकिन आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उसी मसले को फिर से कुरेदना चाहता है। मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए रिव्यू पिटीशन दायर करेगा। लेकिन अयोध्या केस मामले के मुख्य पक्षकार मोहम्मद इकबाल अंसारी उनके इस फैसले से ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखते। कोर्ट द्वारा सुनाए अंतिम फैसले को वह स्वीकार करके है। पूरे मसले पर सच कहूँ प्रतिनिधि रमेश ठाकुर ने उनसे विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से।

 मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की फैसले के खिलाफ जब बैठक आयोजित हुई तो आप नहीं गए? | Ram Mandir

इस संबंध में मेरे पास जानकारी नहीं(time has come to think beyond RamMandir, Maszid says Iqbal Ansari) थी। बैठक  के  दिन मुझसे सुबह के  वक्त सुन्नी वक्फ बोर्ड के एडवोकेट जफरयाब जिलानी ने संपर्क किया था। मैंने उनको बताया कि मैं कोर्ट का फैसला मान चुका हूं तो फिर दोबारा से मसले पर बात करना ठीक नहीं होगा। लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बैठक में रिव्यू पिटीशन दायर करने का निर्णय लेने वाले हैं। रिव्यू पिटीशन से संबंधित खबरें मुझे मीडिया के जरिए पता चली। मुझे लगता है इस मुद्दे पर एक बार फिर कुछ लोग राजनीति करना चाहते हैं। मुद्दे से प्रचार पाना चाहते हैं और खुद को सियासी अखाड़े में स्थापति करना चाहते हैं। लेकिन उनके बहकावे में शायद ही मुल्क के लोग अब आएं। आधुनिक आवाम बहुत समझदार है। वह बेवजह के मसलों में उलझना नहीं चाहती।

 मसले का जब एक बार निर्णय हो गया है तो दोबारा से कुरेदने का क्या मतलब?| Ram Mandir

मैं भी वैसा ही मानता हूं जैसा पूरा मुल्क। देखिए, जनाब मैं कई मर्तबा कह चुका हूं कि मैं मामले का एकलौता पक्षकार नहीं हूं और भी हैं। फैसले के बाद कौन क्या सोचता है मुझे फर्क नहीं पड़ता। पर, हां मुझे अब इस मसले से खुद को अलग रखना है जिसका फैसला मैं उसी दिन से कर चुका हूं। जब सुप्रीम कोर्ट की पंचीय बैंच ने अंतिम फैसला सुनाया था। हमनें कोर्ट का निर्णय मान लिया है। मंदिर मसले पर मेरे अलावा कई और नए पक्षकारों का उदय हो चुका है। इसलिए कोई भी पक्षकार कहीं जाए, इसमें मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है। फिलहाल हम फिर कोर्ट नहीं जा रहे हैं और दूसरे लोग जा रहे हैं इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है। बहुत समय बर्बाद कर लिया लेकिन अब मैं अपने काम-धंधे में लग गया हूं। मुद्दे को जेहन से भी निकाल दिया है।

कोर्ट ने झगड़े को सुलझाने के लिए बीच का रास्ता भी निकाला है।

मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन भी दी जाएगी? | Ram Mandir

मैं पूरी तरह से सहमत हूं। पर, दी हुई पाचं एकड़ जमीन को लोग खैरात मान रहे हैं। ठीक है अगर खैरात लगती है तो उस पर मस्जिद नहीं, स्कूल या अस्पताल बना दिया जाए। मुझे लगता शायद खैरात का फितूर अपने मन में पालने वाले लोग इसे भी नकार देंगे। जिन्होंने खैरात की बात कही है उनका मैं नाम नहीं लेना चाहता। लेकिन ऐसे लोग ही कौम में मतभेद पैदा करने का काम कर रहे हैं।

फैसले से पहले इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि कोर्ट मुस्लिम पक्षकारों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए पांच एकड़ जमीन देने की बात कहेगी। देखिए, अब मस्जिद बनें, या मंदिर दोनों का सरकार अपनी निगरानी में निर्माण कराए। इसमें राजनीति नहीं होने दी जाए। बहुत हो गई राजनीति, अब तौबा कर लेना चाहिए। हमें अमन-शांति और भाई चारे के रास्ते पर चलना चाहिए। ऐसा करने से ही सौहार्द पैदा होगा।

 खैरात भी बता रहे हैं और शरियत के खिलाफ भी?| Ram Mandir

शरियत में ऐसी बेफिजूल बातों का ज्रिक नहीं है। ये सभी बनावटी बातें हैं। देखिए, मैं आलिम या मौलाना तो हूं नहीं? इतनी गहराई की बातें मेरे पल्ले नहीं पड़ती। खुदा तो हर जगह वास करता है। बस, मानने और समझने की जरूरत है। फर्क समझना है तो दो जिंदा उदाहरण सामने हैं। जैसे हिंदू धर्म के लोग पत्थरों में ईश्वर को खोजते हैं, वैसे ही मुसलमान मस्जिद में दीवारों पर माथा रखकर अल्लाह के होने का एहसास करते हैं। इस लिहाज से मस्जिद कहीं भी बनें, किसी को फर्क नहीं पड़ना चाहिए। हालांकि मसला कोर्ट के अधीन हैं उनको ही तय करके सरकार को आदेश देना है। उसे भी सर्वमान्य होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आप कितने खुश हैं? आपके पिता जी ने भी लंबी लड़ाई लड़ी,

जिंदा होते तो वह भी शायद खुश होते? | Ram Mandir

बिल्कुल खुश होते। दरअसल, उनकी और मेरी सोच एक जैसी रही है। जिंदा होते तो वह भी वैसा सोचते जैसा मैं सोच रहा हूं। उनको न्याय सिस्टम पर अटूट विश्वास था। मंदिर मसले को उन्होंने कभी भी उग्रता से नहीं लिया। मसले को उन्होंने हमेशा भाई-चारे से सुलझाने की वकालत की। दरअसल, उनको मुल्क बहुत प्यारा था। इसलिए उनके लिए मुल्क पहले था, मंदिर-मस्जिद बाद में। दोनों समुदाय के प्रति समानभाव से सोचते थे। आज जिंदा होते तो निश्चित रूप से कोर्ट के निर्णय से संतुष्ट होते।

 खबरें ऐसी भी हैं कि आपको न बोलने के लिए डराया भी गया?| Ram Mandir

हद है, मुझे भला कोई क्यों डराएगा? पहाड़ थोड़ी न टूट रहा है मेरे ऊपर। घुटने टेकने का सवाल ही नहीं? बहरहाल, मेरे संबंध में कोई क्या सोचता है सोचे, मुझे फर्क नहीं पड़ता। अगर मैं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ भी ठपली बजाता रहूं तो अच्छा लगेगा क्या? मुझे कुछ लोगों ने आठ नबंवर के बाद भी बरगलाने की कोशिश की। उन्होंने कहा मैं मुख्य पक्षकार के तौर पर आगे भी लड़ाई जारी रखंू। पर, मैंने अपने विवके का इस्तेमाल किया और निर्णय किया कि अब आगे कुछ नहीं? फैसले पर जब पूरे मुल्क की स्वीकृति है तो मैं अलहदा होकर क्यों बेसुरा राग अलापूं।

-रमेश ठाकुर

 

 

 

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