103 वर्ष पुराना इतिहास समेटे पुराना भव्य दरवाजा

Nehra Bhavan Old Grand Door

कभी यहां ठहरते थे आफिसर व राजनीतिक लोग, आज तरस रहा अपने ही वजूद को (Nehra Bhavan Old Grand Door)

सच कहूँ/राजू  ओढां। गांव नुहियांवाली की मुख्य चौपाल में स्थित बड़े दरवाजे के नाम से प्रख्यात ईमारत आज अपने ही वजूद को तरस रही है। गांव के बड़े बूजुर्गां के अनुसार किसी समय में ये दरवाजा आस-पड़ोस के गांवों में भी चर्चा का विषय था। इस भव्य दरवाजे में कभी न के वल गांव बारातें उतरती थी बल्कि आफिसर या राजनीतिक लोगों से यहीं पर मिलते थे। कभी पूरे गांव को आश्रय देने की क्षमता रखने वाला ये भव्य दरवाजा मौजूदा समय में मुरम्मत या उचित देखरेख के अभाव में अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। बूजुर्गां के अनुसार करीब 150 फुट लंबे, 40 फुट चौड़े व करीब 25 फुट ऊंचे इस दरवाजे का इतिहास करीब 103 वर्ष पुराना है।

  • इसकी दयनीय हालत के मद्धेनजर नेहरा गौत्र के लोगों ने एकत्रित होकर इसके जीर्णाेद्वार की हामी भरी है।
  • उनका कहना है कि इस दरवाजे का इतिहास गांव के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है।
  • इसके अंदरूनी भाग पर ध्यान न दिए जाने के चलते इसकी छत व दीवारें जर्जर अवस्था में पहुंचनी शुरू हो गई है।

गांव की शान माना जाता था ये दरवाजा :-

गांव के बड़े बुजुर्गां दुनीराम नेहरा, बलवीर नेहरा, अमीलाल, भागाराम, मुखराम के अलावा पूर्व सरपंच रामकुमार नेहरा, सोहन लाल नेहरा, औमप्रकाश नेहरा, काशीराम, देवीलाल व सुरेश कुमार आदि ने बताया कि करीब 103 वर्ष पूर्व उनके बूजुर्गां रामकरण, गणेशा राम, मेवा राम व चंदूराम आदि ने ग्रामीणों के सहयोग से इस दरवाजे का निर्माण कच्ची र्इंटोंं से करवाया था। बुजुर्गां के अनुसार वर्ष 1917 में हुई भारी बरसात के कारण ये दरवाजा ढ़ह गया। जिसके बाद इसका पक्की र्इंटों से पुनर्निर्माण किया गया। इसके निर्माण में लाखों र्इंटे लगाई गई हैं।

बारातें रूकती थी, राहगिर करते थे आराम

बूजुर्गां के अनुसार पुरात्तन समय में लोग इसे सांझे कार्य के लिए प्रयुक्त करते थे। गांंव में आने वाली बारात का ठहराव भी यहीं किया जाता था। इसके अलावा गांव में जब भी कोई आॅफिसर या राजनीतिक आता तो वह ग्रामीणों से यही मिलता था। ये दरवाजा लोगों की उपस्थिति के कारण समय गुलजार रहता था। गांव के बूजुर्ग यहां चौपड़-पासे खेला करते थे। कुछ वर्षांे तक यहां पर सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक की शाखा भी चली। साधन संपन्नता, समय के अभाव व बिरादरी के लोगों का एक-दूसरी जगहों पर चले जाने के कारण इसकी देखेरख नहीं हो पाई। बुजूर्गां के अनुसार करीब 10 वर्षांे से इसकी देखरेख नहीं हुई। जिसके चलते ये खस्ता हालत में पहुंच गया है।

लोग हुए एकत्र, कहा करवांएगे जीर्णाेद्वार

  • वैसे तो ये गांव की पुरात्तन सांझी धरोहर है।
  • लेकिन नेहरा गौत्र के लोगों की ओर से ही इसकी देखरेख की जाती रही है।
  • क्योंकि इसके निर्माण में इसी गौत्र के बूजुर्गां का बड़ा योगदान माना जाता है।
  • गौत्र के लोगों ने इसके जीर्णाेद्वार को लेकर एक जुटता दिखाई है।
  • उनका कहना है कि वे बूजुर्गां की पुरानी निशानी को पुन: सहजते हुए इसका जीर्णाेद्वार करवाएंगे।

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