प्यारे सतगुरू जी ने बारिश करवाकर भक्त की शंका दूर की

Mastana ji

भक्त माला सिंह पुत्र श्री दल सिंह गांव बुधरवाली श्री गंगानगर का निवासी है। उसने बताया कि सन् 1957 की बात है शाह मस्ताना जी महाराज बुधरवाली गांव में पधारे हुए थे। इस गांव व आसपास के इलाके की साध-संगत की अर्ज पर आप जी ने डेरा बनवाना शुरू कर दिया। उन्हीं दिनों इस इलाके में जोर से आंधी चला करती थी और काफी समय से वर्षा भी नहीं हुई थी। मनमुख लोग इस बात का प्रचार कर रहे थे कि जिधर डेरा बन रहा है उधर से ही वर्षा आया करती थी। इस ओर बेपरवाह जी ने डेरा बनवाना शुरू कर दिया है। इस लिए अब वर्षा नहीं आएगी। इस गांव का प्रीतम सिंह भी इन मनमुख लोगों में शामिल था। डेरा बनाने के लिए साध-संगत ने गांव के तालाब में से कच्ची ईटें निकाली हुई थी । सेवादार जब भी सेवा करते तो ऊंची आवाज में ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ का नारा लगाते। एक दिन कुछ भक्त ईटों की ट्रॉली भरकर डेरा सच्चा सौदा बुधरवाली में ला रहे थे।

जो भक्त ट्रॉली के ऊ पर बैठे थे। ऊंची आवाज में ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ के नारे लगाते आ रहे थे। रास्ते में प्रीतम सिंह ने जब भक्तों को खुशी-खुशी सेवा करते देखा तो उससे सहन नहीं हुआ। वह इस ईर्ष्या से आग बबूला हो गया। और ट्रॉली पर बैठे भक्तों पर पत्थर मारने लगा। सेवादारों ने मालिक के हुक्म में रहते उसे कुछ नहीं कहा। और सीधा डेरा सच्च सौदा में चले आए। उस समय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज दरबार में टहल रहे थे। सेवादारों ने सारी बात आप जी को सुनाई। इस पर सतगुरू जी ने वचन फरमाए, ‘‘वरी, आप ही सीधा हो जाएगा।’’ सेवादारों ने अर्ज की कि सांई जी! अगर आपका हुक्म तो हम उसको पकड़कर ले आएं। इस पर दयालु शहनशाह जी ने वचन फरमाए, ‘‘वह आप ही यहां आ जाएगा, और सीधा हो जाएगा उसे कुछ नहीं कहना।

’’ तभी कुछ लोग इकट्ठे होकर आप जी के पास आए और वर्षा के लिए अर्ज की। इस पर दाता जी ने फरमाया, ‘‘पुट्टर , यहां बारिश करवाने नहीं आए मालिक की रजा में रहना चाहिए। बारिश करे तो उसकी मर्जी न करे तो भी उसकी मौज।’’ उस दिन भी अंधेरी चल रही थी। और आश्रम में भी काफी धूल मिट्टी जमा हो गई । जो साध-संगत वहां सेवा कर रही थी उन्हें बहुत ही मुश्किल हुई। अत: साध-संगत भी मन ही मन वर्षा करने के लिए अरदास करने लगी कि हे शहनशाह जी! अगर बारिश हो जाए तो रेत को हटाना आसान हो जाएगा।

कुल मालिक दाता जी तो सभी के अंदर की जानते हैं। संगत की जायज इच्छा को जल्दी सुनते हैं। बस! फिर क्या देर थी थोड़े समय बाद ही बारिश शुरू हो गई। रात भर बरसात होती रही। उन निंदा करने वालों की शंका भी दूर हो गई, जो यह कहते थे कि डेरा बनने की वजह से बरसात नहीं हो रही। प्रीतम सिंह भी अपने किए पर अंदर ही अंदर पश्चाताप करने लगा। कुछ दिन बाद वह हौसला करके डेरा सच्चा सौदा, बुधरवाली में आया। उसने सच्चे पातशाह जी के चरणों में अपनी गलती के लिए माफी मांगी और वह सदा के लिए मालिक का भक्त बन गया।

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