प्रभावी उपायों के बिना पटरी पर नहीं आएगी शिक्षा व्यवस्था

Education Policy 2020
लॉकडाउन के कारण बंद स्कूलों के समाधान का हल इसके खुल जाने के बाद भी नजर नहीं आ रहा। जबकि निजी क्षेत्र के स्कूलों ने बच्चों को ऑनलाईन क्लासेज देने का तरीका निकाला है लेकिन इस तरीके में हर विद्यार्थी को समझ पड़े या इससे पढ़ाई में उनकी रूचि बने यह पूरी तरह संभव नहीं है। ऑनलाईन स्टडी यूनिवर्सिटी व कॉलेज छात्रों के लिए अच्छा समाधान है। बच्चे व युवा हर परिवार को प्यार होते हैं। बड़े हर जोखिम उठाने को तैयार हैं लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को किसी जोखिम में नहीं डालना चाहते, खासकर जब जोखिम कोरोना जैसा जानलेवा हो।
देश में 21 हजार के करीब ऐसे स्कूल हैं यहां लड़कियों के लिए शौचालय तक नहीं है। एक लाख 49 हजार ऐसे स्कूल हैं यहां साफ पानी भी उपलब्ध नहीं है, ऐसे स्कूलों में सैनेटाईजर की व्यवस्था हो सकेगी। वह तो भूल ही जाइए। जहां तक सोशल डिस्टैंसिंग का सवाल है वह बड़ी कक्षाओं व कॉलेज यूनिवर्सिटी के छात्र तो पालन कर लेंगे लेकिन प्राइमरी व मिडिल कक्षाओं के बच्चों से तो उसकी भी उम्मीद नहीं की जा सकती। अभी राज्य व केन्द्र सरकार बच्चों को अगली कक्षाओं में अपग्रेड कर रहे हैं, अपग्रेडेड बच्चों के लिए नई किताबें, नई क्लासेज के सेलेब्स को पूरा करना बहुत बड़ी चुनौती है चूंकि ऑनलाईन स्टडी में शिक्षा देना वहां पर ही संभव है जहां किसी की पहुंच में कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन, इंटरनेट व बिजली की सुविधा उपलब्ध हो। हालात यह हैं कि देश के 15 करोड़ परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं, जो अपने बच्चों का पेट बड़ी मुश्किल से भर पाते हैं उन्हें ऑनलाईन शिक्षा दे पाना अभी पूर्णत: नामुमकिन है। स्कूली क्लासेज में औड़-ईवन का फार्मूला भी नहीं चल सकता कि आधे छात्र एक दिन आएं, आधे अगले दिन आएं।
कारोबार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण देश की शिक्षा व्यवस्था है जोकि अगले कई महीनों तक या यूं कहें कि कोरोना के विरुद्ध प्रभावी उपाय किए बिना पटरी पर नहीं लौट सकती। ऐसे माहौल में गरीब व सरकारी क्षेत्र के स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे निजी क्षेत्र के सुविधा सम्पन्न बच्चों से बुरी तरह पिछड़ जाएंगे। शिक्षा ही वह साधन है जोकि गरीब को गरीबी से मुक्ति पाने में रास्ता दिखाती है। कोरोना लॉकडाउन में शिक्षा से वंचित रहे बच्चों का भविष्य बचाने के लिए सरकार, शिक्षा व समाज सेवा के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को पहल करनी होगी। दो सप्ताह या महीने बाद ही सही लॉकडाउन भले खोल लिया जाएगा परन्तु कोरोना का असर तो तब ही रूक सकेगा जबकि इससे बचाव व उपचार की सम्पूर्ण दवा हासिल होगी। जिस देश में हर साल स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या लाखों में हो वहां पढ़ाई को बचाने के लिए इसके प्रबंधों पर बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।