‘किसान आंदोलन’ ने हर जाति और धर्म को किया ‘एक’

पुराने गिले शिकवे भुला आए साथ

मुजफ्फरनगर (सच कहूँ ब्यूरो)। देश के अन्नदाता कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग और एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून बनाने की मांग को लेकर दो महीने से सड़क पर हैं। सरकार से 11 दौर की वार्ता विफल हो चुकी है। लेकिन इस सबके बीच एक सुखद पहलू इससे सामाजिक और राजनीतिक चेतना जरूर जग गई है। लोग अपनी पुरानी रंजिशें, अदावतें और गिले-शिकवे भुलकर साथ आकर खड़े हो गए हैं। वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगों के चलते जाटों और मुस्लिमों के बीच गहरी खाई पैदा हो गई थी, जो अब सात साल के बाद पटती दिख रही है। यही कारण है कि किसानों के हक में जाट, मुस्लिम, दलित, सिख सहित तमाम समुदाय गाजीपुर बॉर्डर से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में हो रही महापंचायतों में पहुंच रहे हैं।

गणतंत्र दिवस की घटना के बाद दिल्ली का किसान आंदोलन मानों बिल्कुल खत्म होने को था। चार किसान संगठन इससे अलग हो गए थे। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत भी आंदोलन खत्म करने को तैयार दिख रहे थे, लेकिन उनके भाई व किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत की आँखों से निकले आंसुओं ने किसान आंदोलन में नई जान फूंक दी। इसके बाद 29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत ने किसान आंदोलन के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी जातियों और धर्मों को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया, जो 29 सितंबर, 2013 को सरधना (मेरठ) में हुई पंचायत के बाद टूट गया था।

दंगे के बाद टूट गई थी भाकियू

काकड़ा, कुटबा, कुटबी, लाख बावड़ी, फुगाना सहित नौ गांव इन दंगों की आग में झुलसे थे। इसी दंगे से गुलाम मोहम्मद जौला बहुत आहत हुए, जिसे एक वक्त भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेन्द्र सिंह टिकैत का बेहद करीबी माना जाता था। गुलाम जौला ही वो शख्स हैं, जो टिकैत के आंदोलन में मंच संचालन संभालते थे। लेकिन दंगे से दु:खी होकर वे भारतीय किसान यूनियन से अलग हो गए और ‘भारतीय किसान मजदूर मंच’ नाम से अपना संगठन बनाया था। गुलाम जौला के किसान संगठन में मुस्लिम समुदाय तेजी से जुड़े, इसका असर भारतीय किसान यूनियन पर पड़ा। हालांकि, किसान आंदोलन एक बार फिर से गुलाम मोहम्मद जौला को किसान यूनियन के करीब ले आया है।

भाजपाइयों के तीखे बोल बने एकजुटता की वजह

भारतीय किसान यूनियन के मुजफ्फरनगर मंडल महासचिव राजू अहलावत कहते हैं कि बीजेपी नेताओं के उन बयानों से जिसमें उन्होंने किसानों को गद्दार, आतंकवादी और खालिस्तानी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है, उससे भी किसानों को धक्का लगा है और अपनी तमाम अदावतों को भुला दिया है और फिर से एकजुट हुए हैं।

जब गुलाम मोहम्मद जौला की बात से छा गई थी खामोशी

मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में 29 जनवरी को बुलाई गई किसान महापंचायत में गुलाम मोहम्मद जौला ने नरेश टिकैत और आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी की मौजूदगी में कहा था जाटों ने दो गलतियां की हैं, जिसके चलते आज यह दिन देखने पड़े। पहली गलती चौधरी अजित सिंह को चुनाव हराकर और दूसरी गलती मुसलमानों पर हमला करके उनसे अपने आपको अलग कर लिया। इस पर पूरी महापंचायत में खामोशी छा गई थी और इसका किसी ने भी विरोध नहीं किया, क्योंकि सभी को अपनी गलती का अहसास था।

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