बातचीत पटरी पर, लेकिन दिल खोलना होगा

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किसानों और सरकार की मीटिंग को लेकर प्रधानमंत्री ने पहली बार दखल देकर मामले प्रति सरकार के पक्ष को स्पष्ट किया है। प्रधानमंत्री का इस मामले में बोलना नयी स्थितियों की तरफ संकेत करता है। सरकार के पक्ष में गंभीरता भी झलकती है वहीं दूसरी तरफ किसान संगठनों ने भी लाल किले वाली घटना की कड़ी निंदा की है।

गणतंत्र दिवस के दिन घटी घटना से लाईन से नीचे उतरी किसानों और सरकार की बातचीत एक बार फिर पटरी पर आ गई है। कल बातचीत फिर होगी। वास्तव में किसानों और सरकार की बातचीत का सिलसिला 22 जनवरी को ही टूट गया था। किसान कृषि कानूनों को रद्द करने के बिना मानने वाले नहीं थे और सरकार कानूनों को डेढ़ साल के लिए रोकने से अधिक कुछ करने को तैयार नहीं थी। गणतंत्र दिवस मौके यदि बुरी घटनाएं न भी घटती फिर भी बातचीत शुरू होनी मुश्किल थी। इससे यह साबित होता है कि लाल किले की घटना ने किसान संगठनों और सरकार दोनों को बुरी तरह झंझोड़ा है। सरकार को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि कहानी लाल किले पर झंडे तक पहुंच जाएगी, इसलिए सरकार इस मसले को निपटाने के लिए गंभीर नजर आ रही है।

खास कर प्रधानमंत्री का सर्व पार्टी मीटिंग में यह कहना कि केंद्रीय कृषि मंत्री की ओर से कानूनों पर डेढ़ साल की रोक की पेशकश बरकरार है। किसानों और सरकार की मीटिंग को लेकर प्रधानमंत्री ने पहली बार दखल देकर मामले प्रति सरकार के पक्ष को स्पष्ट किया है। प्रधानमंत्री का इस मामले में बोलना नयी स्थितियों की तरफ संकेत करता है। सरकार के पक्ष में गंभीरता भी झलकती है वहीं दूसरी तरफ किसान संगठनों ने भी लाल किले वाली घटना की कड़ी निंदा की है और खासकर इसके आरोपियों को किसानी आंदोलन से बाहरी व्यक्ति बताया है। किसान इस बात से भी परेशान नजर आ रहे हैं कि बाहरी व्यक्तियों ने उनको बदनाम करने की कोशिश की है। अपने बयानों से किसान संगठनों ने साबित कर दिया है कि वह हिंसा के विरूद्ध हैं और बातचीत के द्वारा मसले भी सुलझाना चाहते हैं।

लाल किले की घटना वाले आरोपियों की किसान संगठनों के खिलाफ बयानबाजी भी उनके मुख्य किसान संगठनों से अलग होने की पुष्टि करती है। किसान और सरकार दोनों पक्ष कानून व्यवस्था संबंधी जान चुके हैं। अच्छी बात है कि बहुत जल्द ही दोनों पक्ष अपने आप को संभाल कर बातचीत को फिर से पटरी पर लेकर आए हैं परंतु आगामी होने वाली मीटिंग का हाल पहली 12 मीटिंगों वाला नहीं होना चाहिए। दोनों पक्षों को दिल खोल कर मामले को सुलझाने के लिए आगे आना चाहिए। मीटिंग सिर्फ मीटिंग के लिए नहीं होती बल्कि मुद्दे को महत्व देकर इमानदारी और वैज्ञानिक नजरिए से आगे बढ़ने की जरूरत है। विद्वानों, विज्ञानियों और प्रतिभाशााली राजनीतिक हस्तियों के देश में किसी मुद्दे का अनसुलझे रहना देश की साख का भी सवाल है।

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