महंगाई और कृषि नीतियां

देश में थोक सूचकांक पर आधारित महंगाई दर अक्टूबर माह में 1.48 प्रतिशत थी। पिछले साल अक्टूबर माह में यह जीरो प्रतिशत थी, लेकिन इस बार आलू के रेट खास चर्चा में रहे। 10-15 रुपए किलोग्राम मिलने वाले आलू 45 रुपए तक बिक रहा है। इस वर्ष आलू का भाव दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गया है जबकि प्याज के रेट भी 70 रुपए तक हैं। देश में उत्पादन कम होने पर सरकार ने भूटान से आलू मंगवाया है। सब्जियों में महंगाई की चर्चा उस वक्त हो रही है जब देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद यकीनी बनाने के लिए किसानों द्वारा आंदोलन किया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या किसानों को मार्केट की नई स्थिति के अनुसार बदलने के लिए तैयार नहीं होना चाहिए? आज पंजाब के जालंधर कपूरथला सहित कई जिलों के किसान गेहूँ की बजाय आलू की काश्त को पहल देते हैं उनकी फसल ज्यादातर सही रेट पर बिकती है।

इसी प्रकार महाराष्ट्र में प्याज की फसल ज्यादा होती है। यदि किसान नई फसलों की तरफ ध्यान दें तब कुछ भी असंभव नहीं। गिनती के किसान विशेषकर छोटे किसानों ने सब्जी की काश्त कर सड़क किनारे सब्जी बेचनी शुरू की है जो ताजा व साफ पानी की होने के कारण हाथों-हाथ बिक जाती है। सब्जियों की खेती करके भी गेहूं-धान से ज्यादा कमाई की जा सकती है। यदि किसान प्रगतिशील व जागरूक होकर इस तरफ ध्यान दें तब आम लोगों को सब्जी भी सही रेटों पर मिल सकती है और किसान खूब लाभ भी कमा सकते हैं। मंडी की डिमांड के अनुसार कृषि में बदलाव बेहद आवश्यक है। सैकड़ों प्रगतिशील किसानों ने पॉली हाऊस बनाकर सब्जियों की काश्त में नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं।

किसान संगठनों को भी इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। किसान संगठन किसानों को नई कृषि के लिए प्रेरित कर आधुनिक कृषि के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करें। भले ही किसानों का मार्गदर्शन करना सरकारों की जिम्मेदारी है लेकिन किसानों को खुद भी हालातों पर नजर रखते हुए खुद बदलने के प्रयास करने चाहिए। व्यापार के संबंध में कहा जाता है कि व्यापारी बाजार पर पूरी नजर रखता है और समय के अनुसार काम बदल लेता है। किसान को समय की नब्ज पहचाननी चाहिए एवं उन फसलों को काश्त पर ध्यान देना चाहिए जिनकी बाजार में मांग है।

 

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