पंजाब विधानसभा चुनाव: निर्णायक भूमिका निभाएंगे डेरा श्रद्धालु

Punjab Assembly Elections sachkahoon

सच कहूँ/अनिल लुटावा, अमलोह/पटियाला। विधानसभा हल्का अमलोह में एक लाख 44 हजार 482 वोटर हैं। आगामी 20 फरवरी को यहां के वोटर कुल 178 पोलिंग बूथों पर मतदान कर विधानसभा (Punjab Assembly Elections) क्षेत्र अमलोह के राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों की किस्मत तय करेंगे, वहीं वोटरों की चुप्पी ने उम्मीदवारों की चिंता बढ़ा दी। इस बार कई नए समीकरण बने हुए हैं। चुनावों में केवल सात दिन शेष हैं, उम्मीदवार भी जी-तोड़ मेहनत में जुट गए हैं।

विस क्षेत्र अमलोह पर 2002 से लेकर 2017 तक कांग्रेस का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार बीजेपी, आम आदमी पार्टी और संयुक्त समाज मोर्चा के अलावा कई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं। इस बार अमलोह में निर्दलीय उम्मीदवार और कुछ नई पार्टियों को छोड़ दें तो मुख्य मुकाबला सत्तापक्ष कांग्रेसी के काका रणदीप सिंह नाभा, शिरोमणी अकाली दल के गुरप्रीत सिंह राजू खन्ना और ‘आप’ के उम्मीदवार गुरिन्दर सिंह के बीच है।

टकसालियों की नाराजगी पड़ सकती है काका को भारी: अमलोह से दो बार चुनाव जीतकर विधायक और अब राज्य के कृषि मंत्री बने काका रणदीप सिंह नाभा हलके में किए विकास कार्यों पर वोट मांग रहे हैं लेकिन वे अपने ही पार्टी के वरिष्ठ टकसाली कांग्रेसियों को साथ लेकर चलने में असफल हैं। पिछले दिनों तकरीबन दो दर्जन के करीब टकसाली कांग्रेसी, कांग्रेस पार्टी को अलविदा कहकर अलग-अलग पार्टियों में चले गए हैं। जिसका विधायक(Punjab Assembly Elections) काका रणदीप सिंह नाभा को नुक्सान हो सकता है।

हलका अमलोह में शिअद और बसपा के संयुक्त उम्मीदवार गुरप्रीत सिंह राजू खन्ना, जोकि 2017 में चुनाव हारने के बावजूद भी हल्के में लगातार प्रचार कर रहे हैं। राजू खन्ना अपनी लगातार दर्ज करवाई उपस्थिति के आधार पर वोट मांग रहे हैं। शिरोमणी अकाली दल का विरोध करने वाले भी राजू खन्ना के प्रति सोफ्ट कार्नर रखते हैं। राजू खन्ना ही एक ऐसा उम्मीदवार है जिसका न अपनी पार्टी में और न ही हल्का अमलोह में कोई विरोध हुआ। अकाली दल-बसपा गठबंधन पूरी मेहनत से राजू खन्ना के लिए दिन-रात एक कर रहा है।

यदि बात आम आदमी पार्टी की करें तो इस सीट पर भी पूरे पंजाब की तरह ‘आप’ की हवा बताई जा रही है लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ‘आप’ के उम्मीदवारों का जिला फतेहगढ़ साहिब के हलकों में पृष्टभूमि ठीक नहीं है। पहले 2014 की लोक सभा चुनावों में भी 54,144 वोटों के बड़े अंतर से आम आदमी पार्टी की टिकट से बड़ी जीत प्राप्त करने वाले हरिन्दर सिंह को लेकर भी लोगों में निराशा है। लोगों का मानना है कि उन्होंने कोई काम नहीं करवाए, यहां तक कि उनकी अनदेखी के कारण अनुदान भी वापस हो गई।

गुरिन्द्र सिंह भी मजबूत उम्मीदवार: आप के उम्मीदवार गुरिन्दर सिंह, जोकि चार-पांच माह पूर्व हलके में नजर आए हैं। हलके में उनकी गतिविविधयां जारी हैं। ‘आप’ में अच्छा प्रभाव रखने वाले गुरिन्द्र सिंह मैनीफेस्टो कमेटी के मैंबर भी हैं लेकिन 2017 के चुनावों में चुनावों के को-इंचार्ज रहे हैं। 2017 के बाद पंजाब के प्रदेश संगठन इंचार्ज रहे हैं और अब कौर समिति के सदस्य हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि हलका के वोटरों के मन में यह भी शंका है कि यदि गुरिन्द्र भी हरिन्दर खालसा और गुरप्रीत सिंह भट्टी की तरह जीतने या हारने के बाद हलके में नजर नहीं आए तो वोटर क्या करेंगे।

भाजपा के संयुक्त उम्मीदवार कंवरवीर सिंह टौहड़ा की बात करें तो पार्टी द्वारा अचानक टिकट देने पर भाजपा के लोकल उम्मीदवारों को निराश किया है जोकि पिछले लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे थे। विधानसभा (Punjab Assembly Elections) हलका अमलोह के शहर अमलोह और मंडी गोबिंदगढ़ में हिंद वोटरों को बड़ी संख्या है, जिनका उन्हें लाभ मिल सकता है।

पिछले बार 3679 वोट के अंतर से जीत थे काका

इस बार डेरा सच्चा सौदा सरसा के श्रद्धालुओं की वोट निर्णायक भूमिका निभाएगी। यहां डेरा श्रद्धालुओं के तकरीबन 15 से 16 हजार वोट हैं। 2017 के चुनावों में काका रणदीप सिंह ने 3679 वोटों के अंतर से जीत प्राप्त की थी, लेकिन इस बार 12 उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में होने के कारण जीत-हार का फैसला केवल कुछ हजार वोट में होगा। अब सभी दलों के उम्मीदवारों की नजरें डेरा श्रद्धालुओं के वोट पर टिकी हुई है।

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