लघु कथा : रिया का स्वाभिमान

Riya-laghu-katha

रिया कमरे के एक कोने में पड़ी सिसक रही थी। कल रात पहली बार राहुल ने उस पर हाथ उठाया था। खता क्या थी उसकी? बस यही न कि उसने राहुल के देर रात घर लौटने की वजह पूछ ली थी। इस जरा से सवाल पर राहुल अपना आपा खो बैठा और गालियों की बौछार शुरू कर दी। ऊपर जाते हुए हड़बड़ी में उसका पैर सीढ़ियों से टकरा गया तो उसका खुन्नस निकलने के लिए उसने अपनी बेल्ट निकली और रिया के ऊपर दनादन बरसने लगा। उससे भी मन न भर तो लात-जूतों की भी बरसात कर दिया। राहुल का यह वीभत्स चेहरा देख रिया सन्न रह गई।

उसने सपने में भी नहीं सोच था कि कभी यह दिन भी देखना पड़ेगा। पूरे परिवार के खिलाफ जाकर उसने राहुल से विवाह किया था। राहुल थोड़ा गुस्सैल स्वभाव का था। किसी भी बात पर बहुत जल्द अपना आपा खो देता था। पर फिर अगले ही पल माफी मांग कर रिया को मना लेता था। तुम्हे तो पता है न गुस्से में मैं अपना नियंत्रण खो देता हूँ। तुम ऐसा कोई काम करती ही क्यों हो जिससे गुस्सा आता है मुझे। और वह हर बार इसकी गलतियों को नजरअंदाज कर उसे माफ कर देती थी।

मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। तुम्हारे बिना मैं जीने की सोच भी नही सकता। मैं अपनी जान दे दूंगा। मां ने बोला: आज वह तुझे गालियां देता है, कल को तुझपर हाथ भी उठाएगा। जिस बेटी को इतने नाजों से पाला है हमने उसे जान-बूझकर नरक में नहीं धकेल सकते। आज तुझे उसकी गलतियां नहीं दिख रही, पर एक वक्त आएगा जब तुझे एहसास होगा कि हमारा कहना सही था।

सबके लाख समझाने के बावजूद पर वह नहीं समझी। और आखिरकार वह राहुल के साथ अपने सुखमय जीवन की कल्पना में खोई अपने घर परिवार वालों को छोड़ निकल गई। जब तक पास में घर से लाए हुए पैसे थे, शादी के बाद के शुरूआती कुछ महीने तो बहुत अच्छे गुजरे। जैसे ही पैसे खत्म होने लगे, छोटी-छोटी बातों पर दोनों में तकरार होने लगा। पर फिर भी दोनों आपस मे सुलह कर लेते थे। वक्त बीतने के साथ राहुल ने एक नौकरी पकड़ ली जिसकी तनख्वाह बहुत ही कम थी। जैसे-तैसे दिन गुजरने लगे। लेकिन, अब राहुल का रवैया फिर से पहले की तरह होने लगा। बात-बात पर चिड़चिडाना, गालियां देना। फिर भी रिया यह सब सह रही थी। उसे विश्वास था कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा।

लेकिन आज तो हद हो गई। इतनी छोटी सी बात पर वह इस तरह का बर्ताव करेगा, उसने सपने में भी नहीं सोचा था। राहुल ने न केवल उसके जिस्म पर ही घाव नहीं दिए थे वरण उसके मासूम मन को भी पूरा छलनी कर दिया था। आज उसे मां की बहुत याद आ रही थी। सारी बातों को सोचने के बाद उसने कुछ निर्णय लिया। सुबह में जब राहुल की नींद खुली तो रिया कहीं नजर नहीं आई।

रात का गुस्सा ठंडा हो चुका था सो वह उसे आवाज देते हुए पूरे घर मे ढूंढने लगा पर, रिया कहीं नजर नहीं आई। ‘शायद पूजा घर में होगी’ यह सोच उसके कदम ऊपर के कमरे की ओर बढ़ने लगे। रिया वहां भी नहीं थी पर, वहां एक लिफाफा पड़ा था। खोलकर देखा तो मंगलसूत्र और एक चिट्ठी रखी थी। मैंने अबतक तुम्हारे हर बुरे बर्त्ताव को इस उम्मीद से नजरअंदाज किया था कि कभी तो तुम्हें अपनी गलतियों का एहसास होगा और तुम यह सब हमेशा के लिए बंद कर दोगे। लेकिन आज मैं गलत साबित हो गई। जिस प्रेम और सम्मान की मुझे ख्वाहिश थी वो सब खत्म हो गया और अब मेरा स्वाभिमान मुझे इजाजत नहीं देता कि मैं यहां एक पल भी रहूं। मुझे तुमसे अब कोई उम्मीद नहीं है। मैं तुम्हे छोड़कर जा रही हूं, हमेशा के लिए। मुझे ढूंढने की कोशिश भी मत करना। आज तुमसे जुड़े सभी बंधनों से खुद को आजाद करती हूं-रिया। ऐसा लगा जैसे आसमान घूमने लगे हो। अपना सर पकड़े राहुल धम्म से सोफे पर गिर पड़ा।

-मोनिका राज

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