कोयला आयात निर्देशों को वापस लिया जाए: एआईपीईएफ

Fire in Coal Furnaces Sachkahoon

जालंधर (सच कहूँ न्यूज)। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर कोयला आयात निर्देशों को वापस लेने की मांग की है। एआईपीईएफ के प्रवक्ता विनोद गुप्ता ने बुधवार को कहा कि पर्याप्त मात्रा में कोयला उपलब्ध होने के बावजूद केन्द्र सरकार ने राज्यों को कोयले का आयात करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने बताया कि संसद को सोमवार को सूचित किया गया कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है, तो फिर विद्युत मंत्रालय, ने सभी उत्पादक कंपनियों को समयबद्ध तरीके से कोयले की 10 प्रतिशत आवश्यकता के लिए आयात निर्देश क्यों जारी किए।

एआईपीईएफ ने 26 जुलाई को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कोयला आयात निदेर्शों को वापस लेने की मांग की है। श्री गुप्ता ने कहा कि अब कोयला और खान मंत्रालय द्वारा स्पष्टीकरण के तहत आयातित कोयले की अतिरिक्त लागत की प्रतिपूर्ति विद्युत मंत्रालय द्वारा की जानी चाहिए।

उल्लेखनीय है कि विद्युत मंत्रालय द्वारा प्रशासनिक दबाव के तहत अधिकांश राज्य उत्पादक कंपनियों और एनटीपीसी को कोयले के आयात के लिए सहमति देने के लिए मजबूर किया गया था। बिजली मंत्रालय ने सभी राज्य उत्पादक कंपनियों को लिखा है कि यदि घरेलू कोयले के साथ सम्मिश्रण 15 जून तक शुरू नहीं किया जाता है तो संबंधित डिफाल्टर थर्मल पावर प्लांटों का घरेलू आवंटन में पांच प्रतिशत की और कमी की जाएगी। पिछले कुछ महीनों में, सभी राज्यों और यहां तक कि निजी उत्पादन कंपनियों को 10 प्रतिशत कोयले का आयात करने का निदेश दिया गया है। केंद्र द्वारा कोयला आयात न करने वालों को धमकी दी गई थी। कोल इंडिया से आपूर्ति बंद करने से यह उल्लेख किया जा सकता है कि एनटीपीसी के कोयला आयात आदेश का 86.5 प्रतिशत अडानी के पास रखा गया है।

देश में कोयले की कोई कमी नहीं

कोयले की कमी पर राज्यसभा में बताया गया है कि देश में कोयले की कोई कमी नहीं है। वर्ष 2021-2022 में अखिल भारतीय कोयला उत्पादन 778.19 मिलियन टन (एमटी) था, जबकि वर्ष 2020-2021 में यह 716.083 टन था। इसके अलावा, चालू वित्त वर्ष (जून 2022 तक) में, देश में ) 204876 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन है। श्री गुप्ता ने कहा कि इस संदर्भ में अब कोयले के जबरन आयात के लिए राज्य थर्मल और राज्य जेनकोस द्वारा किए गए अतिरिक्त व्यय की प्रतिपूर्ति / क्षतिपूर्ति उन राज्यों को की जानी चाहिए जिन्हें मजबूर किया गया था, जबकि देश में कोयले की कोई कमी नहीं थी।

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