1947 के विभाजन का दर्द-बुजुर्गों की जुबानी: अशांत पाक से रात के अंधेरे में भारत पहुंचा था शांति का परिवार

Shanti Devi sachkahoon

पाकिस्तान के जिला डेरा गाजी खान में था गांव सोकर

सच कहूँ/संजय मेहरा, गुरुग्राम। 15 अगस्त 1947 को जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो करोड़ों लोगों के सामने दिक्कतें खड़ी हो गई थी। नवजात बच्चों से लेकर बुजुर्ग, सभी का जीवन खतरे में पड़ गया था। इन्हीं में से एक थीं शांति देवी व उनका परिवार। उस समय शांति देवी की उम्र मात्र 16 साल थी। परिवार में खुशहाली थी, लेकिन बंटवारे ने खुशहाली को बदहाली में बदल दिया।

बंटवारे के 74 साल बाद इस समय शांति देवी की उम्र 90 साल हो चुकी है, लेकिन जब भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय की बात होती है तो शांति देवी की कमजोर हो चुकी नजरों के सामने उस समय का पूरा नजारा पिक्चर की तरह चलने लगता है। वे बताती हैं कि उनका गांव सोकर तहसील तौंसा शरीफ, जिला डेरा गाजी खान था। उस समय तक भारत अविभाजित था। उस वक्त शादी की उम्र का कोई बंधन, नियम नहीं थी। इसलिए कम उम्र में ही शांति देवी की शादी हो चुकी थी। उनके परिवार में उनके पति बोधराज गाबा, देवर सोहनलाल तथा जवाहरलाल गाबा सभी संयुक्त परिवार के रूप में रहते थे।

सारा परिवार बहुत खुशहाली से जीवन व्यतीत कर रहा था। अचानक 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो उन्हें पता चला कि उनका सोकर गांव भारत विभाजित होने पर पाकिस्तान में आ गया है। इसलिए अब उन्हें वह स्थान छोड़कर कहीं और जाना पड़ेगा। इस सूचना के बाद से तो पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ सा टूट गया। वहां परिवार की तरह रह रहे सारे मित्रों को, जायदाद को छोड़कर कहीं और जाने के लिए दिल नहीं मान रहा था। फिर भी वहां से निकलना मजबूरी बन गई थी। शांति देवी के परिवार ने व अन्य सभी परिवारों ने पाकिस्तान का गांव सोकर छोड़ने में ही भलाई समझी। क्योंकि पाकिस्तान में इंसान ही इंसानों के दुश्मन बन गये थे।

सरपंच व पुलिसवालों ने की थी मदद

हालांकि गांव के सरपंच, वहां के थानेदार व अन्य पुलिस कर्मचारियों ने उनकी सहायता भी की। रात के अंधेरे में सभी डीजी खान जिला छोड़कर आजाद भारत में पहुंच गये। यहां पहुंचने पर फिजां बदली हुई थी। कोई समस्या नजर नहीं आई। खाने पीने की अच्छी व्यवस्था थी। ठहरने के लिए तम्बू लगाए हुए थे। शांति देवी के मुताबिक उनके परिवार को कैथल जिला अलॉट हुआ था। कुछ समय तक कैथल में रहने के बाद में गुरुग्राम जिले में स्थानांतरित किया गया। यहां अर्जुन नगर में एक कच्ची कोठी दी गई। यहां आने के बाद पूरे परिवार ने बहुत मेहनत की। उसी मेहनत के बल पर आज उनके पास सब कुछ है। शांति देवी के चार पुत्र सुभाष गाबा, हरीश गाबा, देवेन्द्र गाबा, दिनेश गाबा व एक पुत्री सरोज है। जीवन खुशहाली से बीत रहा है।

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