एकता का महामंत्र
सहनशीलता का यह महामंत्र ही हमारे बीच एकता का धागा अब तक पिरोये हुए है। इस महामंत्र को जितनी बार दोहराया जाए, कम है।
लाखों मजदूरों का एक राज्य से दूसरे में जाना जोखिम भरा
मजदूरों की वापिसी भी सरकारों के लिए बड़ी अग्नि परीक्षा ही है। लाखों मजदूरों को रवाना करने से पहले क्या इतनी बड़ी संख्या में उनके कोरोना टैस्ट संभव हो सकेंगे? रास्ते में कोरोना बचाव से पूरे नियमों की पालना हो सकेगी? ये कई सवाल हैं जिनके प्रति सतर्क रहने और जिम्मेदार होने की आवश्यकता है।
माल्या के प्रत्यर्पण से बैंक लुटेरों में बढ़ेगा खौफ
भारतीय बैंक आज घोटालों के कारण संकट में फसें हुए हैं। विजय माल्या जैसों को कड़ी सजा मिलती है तो फिर बैंकों के कर्ज लेकर डकारने वाले अपराधियों में खौफ पैदा होगा। इसके अलावा बैंकों के भ्रष्ट अधिकारियों को भी कड़ा संदेश जायेगा।
विद्यासागर का जवाब
मार्शल ने अपने एक रिश्तेदार को पास करने की सिफारिश की। पर सिद्धांतवादी विधासागर ने साफ कहा कि मैं इस तरह की बेईमानी नहीं कर सकता। विधासागर जी का यह खरा जवाब सुनकर मार्शल की बोलती बंद हो गई। इसके बाद उसने फिर कभी ऐसी सिफारिश नहीं की।
इरफान का शांति संदेश
इरफान ने इस विचार को बुलंद किया था कि इस्लाम में आतंकवाद और हिंसा के लिए कोई जगह नहीं। इस्लाम प्यार, अमन व भाईचारे का संदेश देता है। मैंने जैसा इस्लाम समझा है उसका अर्थ शांति और भाईचारा है, आतंकवाद नहीं। जो लोग यह करते हैं, वो इस्लाम को समझ ही नहीं पाए हैं।
चीन की चालाकी पर ताला
कोरोना महामारी से भारतीय कंपनियों के सामने वित्तीय संकट उपस्थिति हुआ है। ऐसी स्थिति में टेकओवर की मंशा रखने वाले चीन और दूसरे देशों की गिद्ध दृष्टि भारतीय कंपनियों पर लगी हुई थी। सरकार ने समय रहते इन देशों की मंशा को पहचान लिया और एफडीआई नियमों में संशोधन करके चीन सहित दूसरे वर्चस्ववादी देशों के मनसूबों पर पानी फेर दिया ।
प्रेरणास्त्रोत: हार और जीत
हमारे लिए यश-अपयश, जीवन-मरण, सुख-दुख, मित्र-शत्रु सभी एक समान होते हैं। हमें हार और जीत के फेर में पड़ना ही नहीं चाहिए।' जीव गोस्वामी को अपनी भूल का अहसास हो गया। उन्होंने तुरंत क्षमा मांग ली।
देशवासी अपने आपको मुर्गी न समझें, क्या समझें?
जिस देश में सरकार व बैंकर्स ने देश के ईमानदार करदाताओं व बचतकर्ताओं का मजाक बनाकर रख दिया हो तब उस देश में नागरिक अपने आपको एक मुर्गी से ज्यादा समझें भी तो क्या समझें? क्योंकि कभी कर्ज लेकर उद्योगपति भाग जाते हैं, कभी पूरा बैंक ही धराशायी हो जाता है।
ईमानदारी के अभाव में बस्तियां बसी, इंसान उजड़ा
ईमानदारी दिवस राजनीतिक झूठों, फरेब एवं धोखाधड़ी की रोकथाम के लिए एक अभियान है, आम जनजीवन में बढ़ती अनैतिकता एवं बेईमानी, राजनेताओं के बढ़ते झूठ एवं व्यवसाय में अनैतिकता एवं अप्रामाणिकता ने जीवन को जटिल बना दिया है । उन्नत एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिये ईमानदारी आधारभूत तत्व है।
मानवता को समर्पित 72 साल Dera Sacha Sauda
डेरा सच्चा सौदा रूहानी स्थापना दिवस व
‘जाम-ए-इन्सां गुरू का’ की वर्षगांठ पर विशेष
जब-2 पृथ्वी पर पाप बढ़ते हैं संत-सतगुरु इन्सान के चोले में अवतार धारण करते हैं और भूली-भटकी रूहों को अपनी दया मेहर से समझाकर वापिस निज देश ले जाने के काबिल बनाते हैं। ...
सही दिशा में बढ़ें
कोई भी काम आनन-फानन में शुरू करने के बजाय हमें पहले उसके हर पहलू पर गंभीरता से सोच लेना चाहिए। आपकी दिशा सही होगी, तभी मेहनत रंग लाएगी।
कोरोना विरुद्ध ड्यूटी कर रहे कर्मवीरों के स्वास्थ्य का रखें ध्यान
कोरोना योद्धाओं का स्वास्थ्य भी देश के लिए सुरक्षा का मुद्दा है। यदि ये योद्धा स्वस्थ रहेंगे फिर ही वे लोगों को कोरोना से बचा सकेंगे। विशेष रूप से पुलिस कर्मचारी कुछ बच्चों के जन्मदिन के अवसर पर उनके घर में केक देकर आए। बच्चों के प्रति पुलिस कर्मचारियों का स्नेह व भावना सराहनीय है लेकिन महामारी के दौर में इस प्रकार का संपर्क किसी खतरे से भी खाली नहीं।
अब बड़ा सवाल, लॉकडाउन बढ़ेगा या…नहीं?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते सोमवार को राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो चर्चा की है। वीडियो चर्चा और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अभी लॉकडाउन का सिलसिला जारी रह सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक चूंकि कोरोना संक्रमितों की संख्या मेंं लगातार बढ़ोतरी हो रही है, उसके मद्देनजर पूरी तरह लॉकडाउन हटाना खतरनाक साबित हो सकता है।
समाज का संकट
महर्षि बोले, ' जिस तरह जीर्ण-शीर्ण शरीर को एक वैद्य बचा सकता है उसी तरह विचारक और शिक्षाशास्त्री जीर्ण-शीर्ण मस्तिष्क को बचा सकते हैं। आज समाज को ऐसे ही लोगों की आवश्यकता है।
जिंदगी की जंग में आर्थिक कुर्बानी छोटी
नि:संदेह आर्थिकता किसी देश की रीढ़ होती है लेकिन आर्थिकता भी तो मानव समाज के लिए है। बिना मानव कारें, कोठियां व उच्च स्तरीय रहन-सहन किस काम का?